बंटवारे के दौरान झगड़े शुरू हो गए थे। पिताजी रात में गलियों में लाठी लिए पहरा देते। हम सभी परिवार वाले 28 जुलाई को घर से निकलकर लाहौर गए। इसके बाद मोगा, जहां एक जानकार था, उसी के घर रुके। उस घर के ठीक सामने एक कचहरी थी, जहां ट्रकों में भरकर लाशें आती थीं।
हीरालाल चावला
गुजरांवाला (पाकिस्तान)
विभाजन के समय मेरी उम्र 7 साल थी। परिवार का अपना व्यापार था। हम गुरु नानकपुरा में रहते थे। तब मैं दूसरी कक्षा में था। स्कूल में हमें एक सरदार वजीर सिंह पढ़ाते थे। हमारे घर में एक गाय, एक भैंस थी। घर से कुछ दूर गुरुद्वारा था। पिताजी का चीनी का कारोबार था। वे चावला खांडवाले के नाम से मशहूर थे। हम पांच भाई-बहन थे। बंटवारे के दौरान झगड़े शुरू हो गए थे।
पिताजी और अन्य मुहल्ले वाले रात में गलियों में लाठी लिए पहरा देते। हम सभी परिवारवाले 28 जुलाई को घर से निकलकर लाहौर गए। इसके बाद मोगा, जहां एक जानकार था, उसी के घर रुके। उस घर के ठीक सामने एक कचहरी थी, जहां ट्रकों में भरकर लाशें आती थीं।
कुछ दिन बाद हम लुधियाना आए। फिर दिल्ली आ गए। पिताजी जी ने मुझे एक सर्राफ की दुकान पर लगा दिया, जहां मैं गहने धोया करता था। रोज चार आने मिला करते थे। धीरे-धीरे पिताजी ने सदर बाजार में पटरी पर कपड़े की दुकान लगानी शुरू कीे। आगे वहीं दुकान ले ली और 1977 तक चलाई।
हम सभी भाइयों की आगे नौकरी लग गई थी। मैंने बीएड किया। जिस विद्यालय में पढ़ता था, उसी में शिक्षक की नौकरी मिल गई। मुझे अच्छे से याद है हमारा पड़ोसी परिवार भी भारत आया था। बाद में उनका बेटा पाकिस्तान का अपना घर देखने गया था, परंतु वहां से आज तक नहीं लौटा।
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