कैप्टन केशिंग क्लिफर्ड नोंगुम का नाम भारतीय सेना के उन वीर सपूतों में शामिल है जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा की और अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। उनके जीवन और बलिदान की गाथा हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
कैप्टन केशिंग क्लिफर्ड नोंगुम का नाम भारतीय सेना के उन वीर सपूतों में शामिल है जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा की और अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। उनके जीवन और बलिदान की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कैप्टन केशिंग क्लिफर्ड नोंगुम का जन्म 7 मार्च 1975 को शिलांग, मेघालय में हुआ था। एक सामान्य परिवार में जन्मे कैप्टन क्लिफर्ड की प्रारंभिक शिक्षा शिलांग में ही हुई। उनके भीतर बचपन से ही देशभक्ति और सेवा की भावना थी। उनकी शिक्षा और चरित्र निर्माण में उनके परिवार और समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
सेना में प्रवेश
कैप्टन क्लिफर्ड ने ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (ओटीए), चेन्नई से अपनी सैन्य शिक्षा प्राप्त की। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने 5 सितंबर 1997 को 12 जम्मू एवं कश्मीर लाइट इन्फैंट्री (12 जैक लाई) में कमीशन प्राप्त किया। यह बटालियन उस समय सियाचिन ग्लेशियर में तैनात थी, जहां का मौसम और परिस्थिति अत्यंत कठिन होती है।
सियाचिन से बटालिक सेक्टर तक
ग्लेशियर पर अपनी सेवा के बाद, कैप्टन क्लिफर्ड की बटालियन को ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत बटालिक सेक्टर में तैनात किया गया। यह ऑपरेशन विजय (कारगिल युद्ध) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसमें भारतीय सेना ने अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया।
ऑपरेशन विजय और पॉइंट 4812
12 जैक लाई की चार्ली कंपनी को दुश्मन के कब्जे वाली महत्वपूर्ण पॉइंट 4812 पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया। यह क्षेत्र बटालिक सेक्टर में स्थित था और इसकी चढ़ाई बेहद कठिन और खतरनाक थी। कैप्टन क्लिफर्ड को इस क्षेत्र पर दक्षिण-पूर्व दिशा से हमला करने की जिम्मेदारी दी गई।
कैप्टन क्लिफर्ड की वीरता
दुश्मन ने सुरक्षित बंकरों और चट्टानों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी, जिससे भारतीय सेना को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था। कैप्टन क्लिफर्ड ने स्थिति का गहन विश्लेषण किया और पाया कि दुश्मन की किलेबंदी पर उनकी फायरिंग बेअसर हो रही थी। उन्होंने अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए अपने सैनिकों का नेतृत्व किया और दुश्मन के बंकरों में ग्रेनेड फेंके। उनकी इस कार्रवाई में दुश्मन के छह सैनिक मारे गए।
अंतिम बलिदान
गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, कैप्टन क्लिफर्ड ने सुरक्षित बाहर निकाले जाने से इंकार कर दिया और अंतिम क्षण तक दुश्मन पर फायरिंग करते रहे। उनकी इस कार्रवाई ने उनके साथियों को पॉइंट 4812 पर कब्जा करने के लिए महत्वपूर्ण समय प्रदान किया। उनके अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और प्रबल पराक्रम ने भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा को बरकरार रखा।
महावीर चक्र से सम्मानित
कैप्टन केशिंग क्लिफर्ड नोंगुम ने 1 जुलाई 1999 को अपने देश की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की। उनके अतुलनीय साहस और बलिदान के लिए उन्हें स्वतंत्रता दिवस 1999 के अवसर पर (मरणोपरांत) महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान भारतीय सेना का दूसरा सबसे बड़ा युद्ध सम्मान है, जो उनके अद्वितीय साहस और बलिदान को मान्यता देता है।
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