मस्जिद में 'कोई भी' आ सकता है ! राहुल गांधी आखिर इतना झूठ क्यों बोलते हैं?
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मस्जिद में ‘कोई भी’ आ सकता है ! राहुल गांधी आखिर इतना झूठ क्यों बोलते हैं?

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बजट पर न बोलते हुए, धर्म पर बोलना शुरू किया और महाभारत की अपने अनुसार व्याख्या की। फिर एक बार उन्होंने हिंदुओं को नीचा दिखाते हुए, यह साबित करने का प्रयास किया कि हिंदुओं में भेदभाव होता है तो वहीं मुस्लिमों में मस्जिद में कोई भी जा सकता है

by सोनाली मिश्रा
Jul 31, 2024, 04:18 pm IST
in भारत, विश्लेषण
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संसद के बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बजट पर न बोलते हुए, धर्म पर बोलना शुरू किया और महाभारत की अपने अनुसार व्याख्या की। फिर एक बार उन्होंने हिंदुओं को नीचा दिखाते हुए, यह साबित करने का प्रयास किया कि हिंदुओं में भेदभाव होता है तो वहीं मुस्लिमों में मस्जिद में कोई भी जा सकता है। यह बहुत ही हास्यास्पद है कि वे बार-बार संसद में धर्म पर बात करते हैं और तथ्यों को नकार कर अपने अनुसार व्याख्या करने लगते हैं। जब वे संसद में यह कह रहे थे कि मस्जिद में कोई भी अंदर जा सकता है, उसी समय केरल में एक कॉलेज में लड़कियां केवल इसलिए चर्च द्वारा संचालित कॉलेज में एक कमरे में नमाज पढ़ने को लेकर आंदोलन कर रही थीं, प्रिंसिपल को घेर रही थीं कि उन्हें कॉलेज में ही जुमे की नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए। उन्हें अनुमति इसलिए नहीं चाहिए थी कि आसपास कोई मस्जिद नहीं थी, बल्कि उन्हें यह अनुमति इसलिए चाहिए थी क्योंकि मस्जिदों में लड़कियों के प्रवेश की अनुमति नहीं होती है, इसलिए उन्हें कॉलेज में ही नमाज पढ़ने दी जाए।

जहां एक ओर केरल में ये लड़कियां मस्जिद में नमाज नहीं पढ़ सकती हैं, इस कारण कॉलेज का माहौल बिगाड़ रही थीं, तो वहीं तेलंगाना उच्च न्यायालय ने “अखबारी शिया” मुस्लिम औरतों को यह अधिकार दिया कि वे भी मस्जिद में नमाज पढ़ सकती हैं। इससे पहले वक्फ बोर्ड ने वर्ष 2007 में “उसूली” समुदाय की महिलाओं को नमाज पढ़ने की इजाजत दी थी, मगर “अखबारी” मुस्लिम महिलाओं को नहीं। इस पर हाईकोर्ट ने यह कहा कि “अखबारी संप्रदाय की महिलाओं को उसूली महिलाओं जैसी छूट नहीं मिलती है, तो यह भेदभाव होगा।”

वहीं सुप्रीम कोर्ट में एक मामला इस पर लंबित है कि – क्या मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में बिना किसी रोकटोक के नमाज पढ़ सकती हैं। महिलाएं बिना किसी भेदभाव के मस्जिदों मे जा सकती हैं या नहीं। प्रोफेसर दिलीप मण्डल ने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि ‘सुप्रीम कोर्ट के नौ जज की संवैधानिक पीठ इसकी सुनवाई कर रही है। केस करने वाली मुस्लिम महिला का कहना है कि ये भेदभाव है और यह संविधान के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन है। इसे संविधान पीठ ही सुन सकती है।’

https://x.com/Profdilipmandal/status/1818289384631971931?

इसके अतिरिक्त राहुल गांधी को शायद यह भी नहीं पता होगा कि इस्लाम में अक्सर फिरकों के अनुसार ही मस्जिदें होती हैं। आए दिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान में शिया मस्जिदों पर हमले के समाचार आते हैं। राहुल गांधी पसमांदा मुस्लिमों के साथ होने वाले भेदभाव पर भी बात नहीं करते। वे उस भेदभाव की ओर देखना ही नहीं चाहते, जिसके चलते देशज पसमांदा मुस्लिम समाज न जाने कितनी कठिनाइयों का सामना कर रहा है।

जब राहुल गांधी हिंदुओं में भेदभाव को लेकर हिंदुओं को कोस रहे हैं, उन्हीं दिनों पवित्र सावन में भारत के कोने-कोने में कांवड़िया अपने उन्हीं भोलेनाथ को जल अर्पित करने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर रहे हैं। लाखों की भीड़ एकसाथ चल रही है। वे मात्र भोले के भक्त हैं। वे अपने भोले को जल अर्पित करने के लिए चले जा रहे हैं। मगर हिंदुओं को विभाजित करने वाले राहुल गांधी इन काँवड़ियों की धार्मिक शुचिता के विरुद्ध रहते हैं।

जिस समय राहुल गांधी संसद में मस्जिदों में भेदभाव नहीं है की बात कर रहे थे, अर्थात हिंदुओं को कोस रहे थे, उसी समय एक समय में भारत का ही भूभाग रहे पाकिस्तान पर इस्लाम के दो फिरकों में जमीन के एक टुकड़े को लेकर जंग चल रही थी।

पिछले सात दिनों से पाकिस्तान में खैबर पख़्तूनख़्वा में जमीन के एक छोटे टुकड़े को लेकर शिया और सुन्नी समुदाय के कुछ लोगों में इस सीमा तक विवाद बढ़ गया है कि अब तक दर्जनों लोगों की जानें जा चुकी हैं। और अब खुलेआम ये ऐलान हो रहे हैं कि शिया चुपचाप चले जाएं। सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो हैं, जिनमें शिया मुस्लिमों को धमकी दी जा रही है और कहा जा रहा है कि यदि कोई भी शिया वाहन दिखाई दे गया तो सुन्नी लोग हमला कर देंगे।

बीबीसी से लेकर हर अखबार इस संघर्ष की खबरों से भरा है और साथ ही उन्हीं पोर्टल्स पर कुछ छिटपुट झगड़े की खबरों के साथ ये भी समाचार हैं कि लाखों काँवड़िए जलाभिषेक के लिए जल लेकर आ रहे हैं। मगर राहुल गांधी या तो देखते नहीं या फिर कहा जाए कि उनका भाषण लिखने वाले लोग ये दो दृश्य उन्हें दिखाना नहीं चाहते हैं। भारत में मुस्लिम महिलाएं बिना किसी भेदभाव के मस्जिदों में प्रवेश की लड़ाई लड़ रही हैं, यह राहुल जी को नहीं दिखता है।

बीबीसी के अनुसार रविवार को बूशहरा में लाशों की अदला बदली भी हुई है। इसके तहत सुन्नी कबीले ने 11 लाशें शिया कबीले के हवाले की हैं, जबकि शिया कबीले ने तीन लाशें सुन्नी कबीले को दी हैं।

शिया मस्जिदों पर हमले के भी समाचार आते रहते हैं। अभी हाल ही में शिया मुस्लिमों द्वारा मनाया जाने वाला मुहर्रम बीता है, जिनमें कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिनमें सुन्नी मुस्लिमों ने कहा कि वे लोग इसे नहीं मनाते हैं। और यह भी कहा कि शिया मुस्लिम नहीं होते हैं।

यही बात पाकिस्तान में भी कही जाती है कि शिया अल्पसंख्यक हैं। शिया मुस्लिमों पर हिंसा से पहले अहमदिया समुदाय पर पाकिस्तान में हिंसा होती रही है। सुन्नी और शिया समुदाय के लोग अहमदिया समुदाय के लोगों को मुस्लिम नहीं मानते हैं। शायद राहुल गांधी को यह भी नहीं पता होगा कि पिछले ही वर्ष भारत में भी जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द ने आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के उस प्रस्ताव का समर्थन किया था, जिसमें अहमदिया मुसलमानों को ग़ैर-मुस्लिम बताया गया था। इस प्रस्ताव का कांग्रेस की ओर से कोई भी विरोध नहीं किया गया था। इस प्रस्ताव के विरोध में तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने उत्तर दिया था कि आंध्र प्रदेश वक़्फ बोर्ड का प्रस्ताव नफ़रत फैलाने का अभियान है और इससे देश भर में विभाजन बढ़ेगा।

आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने जब ऐसा पहली बार कहा था तो इसे आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, और न्यायालय ने इस पर रोक लगाई थी, परंतु इस रोक के बावजूद वर्ष 2023 में वक्फ बोर्ड ने यह घोषणा की थी कि जमीयत उलेमा के फ़तवा के परिणास्वरूप अहमदिया समुदाय को काफिर घोषित किया गया है और ये मुसलमान नहीं हैं। राहुल गांधी का बयान और यह समाचार कि पाकिस्तान में एक अहमदिया मुस्लिम डॉक्टर की हत्या उनके क्लीनिक में ही कर दी गई थी, लगभग साथ ही आए हैं।

https://twitter.com/PressSectionSAA/status/1817133235899355326?

राहुल गांधी का भाषण लिखने वाले का उद्देश्य हिंदुओं के साथ न्याय नहीं है बल्कि हिंदुओं में जातिगत आधार पर विभाजन कराना है। नहीं तो ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि जब हिन्दू धर्म की महत्वपूर्ण यात्रा “काँवड़ यात्रा” चल रही है, जब भोले के भक्त लाखों की संख्या में जल अर्पण करने के लिए जा रहे हैं, उस समय संसद में जाति की बात उठाकर विभाजन का विमर्श बनाने का षड्यन्त्र रचा जाए, और जिस समय भारत में और विश्व में इस्लाम में तमाम तरह के भेदभाव और भिन्नताओं के आधार पर मुकदमे, बहसें, उपद्रव और हत्याएं हो रही हों, उस समय मस्जिद में “कोई भी आ सकता है” का विमर्श बनाया जाए।

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