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विजय गाथा : महिला सेनानियों के अदम्य शौर्य को नमन

25 वर्ष पूर्व 26 जुलाई 1999 को भारतमाता के वीर सपूतों ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटाकर कारगिल की दुर्गम चोटियों पर भारत का तिरंगा फहराया था। लगभग दो माह तक चले इस घोर युद्ध में भारत के 527 सैनिक बलिदान हुए थे और 1400 के करीब घायल।

by पूनम नेगी
Jul 28, 2024, 06:00 am IST
in भारत, विश्लेषण, श्रद्धांजलि
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कारगिल का युद्ध भारतीय सेना की जांबाजी और पराक्रम के लिए जाना जाता है। 25 वर्ष पूर्व 26 जुलाई 1999 को भारतमाता के वीर सपूतों ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटाकर कारगिल की दुर्गम चोटियों पर भारत का तिरंगा फहराया था। लगभग दो माह तक चले इस घोर युद्ध में भारत के 527 सैनिक बलिदान हुए थे और 1400 के करीब घायल। परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव, राइफलमैन संजय कुमार; महावीर चक्र से सम्मानित- लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, मेजर राजेश सिंह अधिकारी, मेजर विवेक गुप्ता, कैप्टन एन केंगुरुसे तथालेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड नोंग्रम की शौर्य गाथाएं हमारे अंतस में आज भी राष्ट्रभक्ति का ज्वार भर देती हैं। इन्हीं में एक न भूलने वाली शौर्यगाथा है भारतीय सेना के एयर फोर्स रेस्क्यू मिशन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनने वाली दो जांबाज भारतीय महिला पायलटों गुंजन सक्सेना व श्रीविद्या राजन की।

इस युद्ध में जब भारत-पाकिस्तान की सेना आमने-सामने थी। दोनों तरफ से लगातार गोलीबारी हो रही थी। भारतीय वायुसेना लगातार सैनिकों तक मदद पहुंचा रही थी और पाकिस्तान की सेना का सामना भी कर रही थी। युद्ध के दौरान एक समय ऐसा भी आया, जब वायु सेना को कारगिल की बटालिक और द्रास घाटियों में फंसे अपने घायल जवानों को सुरक्षित लाने के लिए और पायलट की ज़रूरत थी। उनके ज़्यादातर पुरुष पायलट पहले ही ड्यूटी पर थे।

सेना को अपने घायल सैनिकों तक दवाई, भोजन और ज़रूरी मदद पहुंचाने के लिए और पायलट चाहिए थे। ऐसे में वायुसेना ने अपनी दो महिला पायलटों फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्‍सेना और फ्लाइट लेफ्टिनेंट श्रीविद्या राजन को मदद के लिए भेजने का निर्णय किया। वायुसेना के अनुसार ये दोनों महिला पायलट ऊधमपुर में तैनात थीं। जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो श्रीविद्या राजन पुरुष अफसरों के साथ भेजी जाने वाली पहली महिला अफसर बनीं। इसके दो दिन बाद गुंजन सक्‍सेना ने उन्‍हें ज्वाइन कर लिया था।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार  इस युद्ध में फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्‍सेना और फ्लाइट लेफ्टिनेंट श्रीविद्या राजन; दोनों ने ही अपने-अपने चीता हेलिकॉप्टर में उड़ान भरी और पाकिस्तानी सेना के हमले से खुद को बचाते हुए अपने सैनिक साथियों तक मदद पहुंचायी। उन्होंने द्रास और बटालिक की घाटियों में दवा और भोजन पहुंचाया। घायल सैनिकों को तुरंत अस्पताल पहुंचाने का काम भी किया। वह अपने घायल सैनिकों को वापस भी लेकर आयीं। इसके साथ ही, इन दोनों महिला पायलटों का एक काम पाकिस्तानी सेना की स्थिति का जायजा लेना भी था। जिसके लिए कई बार उन्होंने लाइन ऑफ कंट्रोल के बहुत पास से उड़ानें भरीं।

एक बार जब गुंजन उड़ान भर रही थीं तो पाकिस्तानी सेना ने उनके हेलिकॉप्टर पर मिसाइल छोड़ी। इस हमले से गुंजन का हेलिकॉप्टर बाल-बाल बचा। दोनों ऐसे इलाके में उड़ान भरती थीं, जहां से वह पाकिस्तानी सेना की मिसाइलों की जद में आ सकती थीं। लेकिन वे डरी नहीं और इस मिशन के लिए छोटे चीता हेलीकॉप्टर से पहली बार युद्ध क्षेत्र में उड़ान भरी। जबकि न तो उनके पास आत्म रक्षा के लिए कुछ था और न बड़े मिसाइलों के सामने भिड़ने के लिए छोटे चीता हेलिकॉप्टर क्षमतावान थे; लेकिन जान की परवाह किए बिना दोनों ने उड़ान भरी और अपने मिशन को पूरी कुशलता से अंजाम दिया।

Topics: राष्ट्रभक्ति का ज्वारपाकिस्तानी सेनाMaineपाञ्चजन्य विशेषभारत-पाकिस्तान की सेनाअदम्य शौर्य को नमनशौर्यगाथा
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