मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु की सरकारी स्कूलों में स्टूडेंट के नाम के साथ जातिसूचक नामों जैसे ‘आदिवासी’ शब्द का प्रयोग अनुचित है। उनका कहना है कि इससे वहां पर पढ़ने वाले बच्चों पर ‘कलंक’ की तरह होता है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से ऐसे शब्दों को हटाने को कहा और मुख्य सचिव को उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
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मामले की सुनवाई हाई कोर्ट के जस्टिस एस एम सुब्रमण्यम और जस्टिस सी कुमाराप्पन की बेंच ने की। बेंच ने यह टिप्पणी हाल ही में कल्लकुरिची जिले के कलवरायण हिल्स में अपनी जान गंवाने वाले एससी/एसटी समुदाय के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
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हाई कोर्ट ने क्षेत्र में कल्याणकारी योजनाओं के संबंद में महाधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत स्थिति रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि ऐसा देखा गया है कि क्षेत्र के स्कूल ‘सरकारी आदिवासी आवासीय विद्यालय’ के नाम से संचालित हो रहे हैं। स्कूलों में ‘आदिवासी’ नामों का इस्तेमाल किया जाना निस्संदेह वहां पढ़ने वाले बच्चों पर कलंक लगेगा।
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कोर्ट ने ये भी कहा कि वे लोग किसी आदिवासी स्कूल में पढ़ रहे हैं, न कि किसी स्कूल में। कोर्ट का कहना है कि इसका नाम बदलकर केवल ‘सरकार स्कूल’ कर दिया जाना चाहिए।
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