राष्ट्रीय स्वयं सेवक (RSS) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि संघ बीते 99 वर्षों से सतत राष्ट्र के पुनर्निर्माण और समाज की सेवा में लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता-अखंडता एवं प्राकृतिक आपदा के समय में समाज को साथ लेकर संघ के योगदान के चलते समय-समय पर देश के विभिन्न प्रकार के नेतृत्व ने संघ की भूमिका की प्रशंसा भी की है।
अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते तत्कालीन सरकार द्वारा शासकीय कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक संगठन की गतिविधियों में भाग लेने के लिए निराधार ही प्रतिबंधित किया गया था। शासन का वर्तमान निर्णय समुचित है और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुष्ट करने वाला है।
सरकारी कर्मचारी संघ की गतिविधियों में ले सकेंगे हिस्सा
आपातकाल में इंदिरा गांधी सरकार की तानाशाही खुलकर सामने दिखी थी, लेकिन उससे पहले भी तानाशाही कदम उठाए जा रहे थे। मोदी सरकार ने ऐसे ही एक आदेश को वापस लिया है।
58 साल पहले 1966 में असंवैधानिक आदेश जारी किया गया था। इसके तहत सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था। मोदी सरकार ने यह आदेश वापस ले लिया है। मूल आदेश को पहले ही पारित नहीं किया जाना चाहिए था।
अब बताते हैं कि यह प्रतिबंध क्यों लगाया गया था। बात है 7 नवंबर 1966 की। भारतीय संसद में गोहत्या के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसका विरोध किया था। आरएसएस-जनसंघ ने लाखों लोगों का समर्थन जुटाया था। विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने निर्दोश लोगों पर गोलीबारी की थीइ। इसमें कई लोग मारे गए।
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