भारतीय संस्कृति में ‘विवाह’ सोलह संस्कारों में से एक जीवन का वह महत्वपूर्ण संस्कार है, जिसके होने के बाद धर्म की पूर्ति के लिए अर्थ एवं कामनाओं के पुरुषार्थ की पूर्णाहुति देते हुए मोक्ष की प्राप्ति ये चार पुरुषार्थ प्रत्येक मनुष्य के जीवन के लिए अनिवार्य लक्ष्य हैं। इसके लिए मनुष्य जीवन को चार भागों में बांटकर आश्रम व्यवस्था की रचना हिन्दू धर्म में की गई है । इस जीवन दर्शन एवं विचार से ईसाई समाज में जन्में स्विट्जरलैंड के मार्टिन और जर्मनी की उलरिके इतनी अधिक प्रभावित हुए कि वे विवाह संस्कार में बंधने के लिए अपने देशों को छोड़कर भारत आ पहुंचे, जहां गुरुपूर्णिमा के शुभअवसर पर दोनों ने परिणय सूत्र में बंधते हुए अपने एक नए जीवन की शुरूआत की है।
स्पेन यात्रा के दौरान हुई थी दोनों की मुलाकात, अपने को जानने की यात्रा ले आई भारत
दरअसल, मार्टिन ज्यूरिख में रहते हैं और पेशे से लीगल ऑडिट कंपनी में अधिकारी हैं। वहीं, जर्मनी की म्यूनिख शहर की उलरिके एक नर्स हैं। दोनों की पहली मुलाकात एक यात्रा के दौरान स्पेन में हुई, जहां दोनों ही एक-दूसरे के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए, यह यात्रा तो कुछ समय के बाद समाप्त हो गई, लेकिन इसके साथ ही जीवन की एक नई यात्रा शुरू हो गई, वह यात्रा है प्रेम की यात्रा। दोनों की घण्टों फोन पर बातें होना शुरू हो गई थीं। किसे क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं, इन सभी पहलुओं पर गहन विचार एवं चर्चा के बीच एक पक्ष जीवन को देखने का नजरिया भी था, जिसमें कि दोनों ने अपने दुनिया घूमने के दौरान भारतीय दर्शन को भी समझने की कोशिश की थी। दोनों को ही भारत का हिन्दू धर्म एवं सनातन व्यवस्था बहुत व्यवहारिक एवं तार्किक लगी और इसके साथ ही ईसाई मत में पैदा होने के बाद भी इन दोनों ने तय किया कि अब हमें हिन्दू जीवन पद्धति के अनुसार साथ रहना चाहिए, लेकिन विवाह हिन्दू रिति एवं परंपराओं के साथ कर विवाह संस्कार में बंधने के बाद ।
दूसरी ओर इन दोनों के जीवन में एक घटना और घट रही थी, वह थी अपने को जानने की, आगे इसी आध्यात्मिक खोज ने उन्हें मध्य प्रदेश के शिवपुरी के विश्व आध्यात्मिक संस्थान प्रमुख डॉ. रघुवीर सिंह गौर से ऑनलाइन मिलवा दिया। दोनों ने ही इन्हें अपना गुरु मान लिया, फिर वे गुरुजी के दर्शन करने भारत आने लगे। मार्टिन ने अपने गुरुजी के सानिध्य में विवाह करने की इच्छा जताई, जिस पर गुरु की आज्ञा मिलते ही उलरिके भी भारत आ गईं और फिर दोनों विवाह के पवित्र संस्कार में बंधकर दो से एक हो गए हैं।
हिन्दू धर्म के ज्ञान को जानने का बड़ा कारण बनी सोशल मीडिया
हिन्दू जीवन दर्शन, सनातन संस्कृति एवं ईसाईयत के बीच अपने को लेकर उलरिके कहती हैं कि मैं सोशल मीडिया के जरिए सबसे पहले हिन्दू धर्म के संपर्क में आई, भारत की ज्ञान परंपरा के बारे में जानने की जिज्ञासा समय बीतने के साथ बढ़ती ही जा रही थी, तभी मैं गुरुजी यानी कि डॉ. रघुवीर सिंह गौरजी से जुड़ी। मैंने भारत के बारे में उनके माध्यम से और अधिक जाना। उनके आध्यात्मिक प्रवचनों में बहुत गहराई है, वह व्यक्ति के होने के सही अर्थ बताते हैं। उनके इन प्रवचनों से भारतीय संस्कृति में रुचि दिन-प्रतिदिन बढ़ती रही । जब मार्टिन से विवाह करने का विचार आया, तो मुझे हिन्दू विवाह पद्धति सबसे अधिक व्यवहारिक एवं तर्क संगत लगी और तभी मैंने तय किया कि शादी मैं हिन्दू विधि से ही करूंगी। मार्टिन भी इसके महत्व को समझ चुके थे, वे भी इस बात के लिए राजी थे कि हमारा विवाह हिन्दू संस्कार से ही होना चाहिए।
मार्टिन को चर्च से शादी करना नहीं लगा सही , हिन्दू जीवन में विवाह एक संस्कार है
वे कहती हैं, कि जब मार्टिन से स्पेन में छुट्टियों में मुलाकात हुई थी, तब मैंने भी नहीं सोचा था कि भविष्य हमें यह संबंध कहां लेकर जाएगा, लेकिन वह गुरुजी ही हैं, जिनकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद से हम दोनों आज विवाह के बंधन में बंधे हैं । इस दौरान मार्टिन भी अपना अनुभव सुनाते हैं, वे बोले- उनका तीसरी बार भारत आना हुआ है। ईसाई मत में पैदा हुआ हूं, आज भी मत से तो ईसाई ही हूं, किंतु विचारों में व्यापक विस्तार हुआ है, मुझे चर्च से शादी करना सही नहीं लगा, हिन्दू जीवन में विवाह एक संस्कार है, यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरूषार्थ की पूर्ति के लिए जरूरी बताया गया है, हालांकि जीवन में जो ब्रह्मचर्य का संकल्प लेते हैं, उन्हें इससे मुक्ति दी गई है, किंतु यह सिर्फ विशेष स्थिति में है।
भारत में आकर मिलती है, मानसिक शांति
मार्टिन कहते हैं, मेरी मुलाकात उलरिके से स्पेन में हुई थी। तब से हम दोनों के बीच बाते होने लगीं और फिर लगा कि हम दोनों को एक साथ रहना चाहिए, मेरिज कर लेनी चाहिए। उन्होंने बताया कि वे गुरुजी से पांच साल पहले जुड़ गए थे और उनके स्लोगन ‘सेवकाई में प्रभुताई’ शब्द का अर्थ जाना तो पता चला कि हमने अपने जीवन के 45 साल व्यर्थ ही गंवा दिए। इसके बाद गुरु जी के सानिध्य में अध्यात्म की दुनिया से जुड़ गए और उन्हीं की प्रेरणा से इससे पहले दो बार भारत आ चुके हैं, यहां आकर मुझे अत्यधिक मानसिक शांति मिलती है।
उन्होंने कहा, अब शादी के लिए तीसरी बार भारत आया हूं। मेरे लिए सबसे ज्यादा जरूरी इस शुभ निर्णय में गुरुजी का आशीर्वाद लेना था। उनसे मैंने अपने विवाह के बारे में जब बातचीत की तो उन्होंने मुझे भारतीय संस्कृति को जानने के लिए मेहर बाबा की एक पुस्तक पढ़ने को दी। पुस्तक का अध्ययन करते ही मेरे मन में सनातन धर्म और हिन्दू संस्कृति के बारे में जानने की अनेक जिज्ञासाएं जाग उठीं, जिनके समाधान में गुरुजी ने बड़ा कार्य किया। उन्होंने हिन्दू विवाह पद्धति के बारे में बताया और मैं ऐसा करने के लिए तैयार हो गया। इसके लिए हम दोनों ही 11 जुलाई को शिवपुरी आ गए थे, यहां आने के बाद से लगातार हिन्दू विवाह रिति से जुड़े आयोजन चालू रहे और अंतत: अब हम दोनों पाणिग्रहण संस्कार से परिणय सूत्र में बंध गए हैं ।
परिणय संस्कार की साक्षी अग्नि, इसलिए इसका महत्व कई गुना है अधिक
इनके साथ ही शक्तिपात के विशेषज्ञ गुरुजी डॉ. रघुवीर सिंह गौर का कहना है कि मार्टिन और उलरिके क्रिश्चियन हैं, लेकिन मार्टिन ने जब वसुधैव कुटुम्बकम का अर्थ जाना, तब से वह भारतीय हिन्दू संस्कृति के साथ स्वयं को एकाकार महसूस करने लगे । मार्टिन एक श्रेष्ठ व्यक्ति हैं, वे योग के महत्व को समझते हैं, उसे जीवन में धारण किए हुए हैं। संयोग से वे जब मेरे संपर्क में आए तो उन्हें लगा कि भारत जाकर मुलाकात करना चाहिए और वे फिर भारत आकर मुझसे मिले। लड़की भी मिलने आई। यहां जब भारतीय जीवन दृष्टि पर चिंतन एवं मंथन उनका चलता है तो वह दोनों ही सोलह संस्कार से प्रभावित हुए बिना न रह सके, इसलिए उन्होंने अपने लिए परिणय संस्कार का चुनाव किया, क्योंकि इसकी साक्षी अग्नि है। भारतीय रीति से शादी की जो पद्धति है, इसमें पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति मृत्यु पर्यन्त समर्पित रहते हैं।
डॉ. गौर कहते बताते हैं कि इस बीच ये दोनों ही मुझे अपना गुरु स्वीकार कर चुके थे और तब यह मेरा दायित्व था कि मैं उनके लिए श्रेष्ठ मार्ग प्रशस्त करूं, अत: दोनों का ही वैदिक हिंदू रीति से मेरे सानिध्य में विवाह संपन्न हुआ है । वे बताते हैं कि कोरोना वक्त के पूर्व भी यहां एक विदेशी जोड़े को विवाह स्वरूप आशीर्वाद दिया गया था । उस वक्त एटलांटा के रहने वाले डेविड और मियामी के फ्लोरिडा की रहने वाली महिला ने भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर हिन्दू विवाह परंपरा के अनुसार विवाह किया था ।
उल्लेखनीय है कि इन दोनों का विवाह 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के दिन शिवपुरी जिले में सम्पन्न हुआ है। अब नव दम्पत्ति सात फेरे लेने के बाद अपने गुरु की प्रेरणा से आगामी दो हफ्ते तक भारत के आध्यात्म एवं जीवन दर्शन को अधिक नजदीक से जानने के लिए अलग-अलग जगहों पर घूमेंगे। दोनों का ही कहना है कि उन्हें भारत आकर बहुत अच्छा लग रहा है। यहां इस बीच मुख्य रूप से ध्यान शिविर का आयोजन किया गया । महोत्सव के तहत ही शादी का भी प्रबंध किया गया, जिसमें मुख्य तौर पर ढाई सौ के करीब मेहमान बुलाए गए थे, जिसमें कि 10 से अधिक विदेशी मेहमान भी इस विवाह के साक्षी बनने यहां आश्रम में पहुंचे थे ।
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