नक्सलवादी घटनाएं छत्तीसगढ़ में बड़ी चुनौती पैदा करती हैं। अगले पांच वर्ष में आप इससे कैसे निपटेंगे?
हमारे देश के गृहमंत्री अमित शाह का संकल्प बड़ा है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटना और पूर्वोत्तर में शांति स्थापित होना इसका प्रमाण है। हमारे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की कार्यशैली बहुत गजब है। इन नेताओं के नेतृत्व में हम लोग कार्य कर रहे हैं। मेरा मानना है कि नक्सलवाद केवल बंदूक से खत्म नहीं हो सकता। इसलिए सारे बिंदुओं पर काम हो रहा है। जिन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया या जो करने वाले हैं, जो नक्सल पीड़ित हैं या जो नौजवान नक्सली बन जाते हैं, जो सुरक्षाकर्मी काम कर रहे हैं, इन सारी चीजों पर एक साथ काम हो रहा है। तीन साल में ही इनका परिणाम अच्छा आएगा, इसका पूर्ण विश्वास है।
आपने तीन साल का समय निर्धारित किया है। क्या इतने कम समय में उपरोक्त कार्य करना संभव है?
हम नक्सलियों से बिना शर्त बातचीत के लिए तैयार हैं। पहले इस तरह की बात होती थी कि वे हथियार छोड़ें या पहले ये हथियार छोड़ें। इस कारण बात नहीं हो पाती थी। मैं यह कहना चाहता हूं कि ‘नॉर्मल कॉल’ या फिर ‘वीडियो कॉल’ पर भी बात हो सकती है। मैंने हाल ही में एक ‘गूगल फॉर्म’ भी जारी किया और कहा कि इस लिंक पर अपने सुझाव भेज दीजिए। इन सबके जरिए बात हो सकती है, लेकिन ये जो आप बंदूक लेकर जंगलों में घूम रहे हैं, इसका क्या औचित्य है। आखिर लड़ किससे रहे हैं? कोई राजा या जमींदार है नहीं। सरकारें कल्याणकारी होती हैं। अगर सरकारें काम न करें तो जनता उखाड़ कर फेंक देती है।
नक्सलियों का एजेंडा कुछ नहीं है। मैं आपसे यह बात तब कह रहा हूं जब मैंने सात महीने इस विषय पर काम कर लिया है। टेकगुड़ा, पुअर्ती और सिलगेर ये कुछ गांव ऐसे हैं, जहां सात माह पहले सुरक्षाबलों के जवान भी नहीं जा सकते थे। लेकिन जब वहां के लोगों को हम निकाल कर लाए और रायपुर में वहां के 25 वर्षीय युवक से हमने पूछा कि टीवी देखे हो कभी? उसने कहा कि पहली बार टीवी देख रहा हूं। नक्सली बताएं कि यह क्या हो रहा है? गांवों में पहले जहां स्कूल, आंगनबाड़ी, अस्पताल, बिजली-पानी और सड़कें थीं, उन सबको तो उन्होंने उड़ा दिया। शिक्षकों और तेंदू पत्ता व्यापारियों से जबरन वसूली की जा रही है। इन सबको कोई सही नहीं ठहरा सकता।
आपके द्वारा भेजे गए गूगल फॉर्म को भरने वालों पर कुछ लोग हमले भी कर सकते हैं। इस चुनौती से आप कैसे निपटेंगे?
मैंने पहले ही कहा है कि मैं केवल एक कार्यकर्ता हूं। हमारे नेता माननीय अमित शाह हैं और हमारे मुखिया हैं विष्णुदेव साय। उन्हीं के नेतृत्व में हम काम कर रहे हैं। इन सब कामों को करते हुए एक बात समझ में आती है कि छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा फर्क है। जम्मू-कश्मीर में अगर कोई आत्मसमर्पण करता है तो 10 साल बाद भी आप उसके हाथ में बंदूक देकर उसे अपना ‘बॉडीगार्ड’ नहीं बनाएंगे, क्योंकि आपको उस पर भरोसा ही नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि जम्मू-कश्मीर का व्यक्ति फंस गया है। ऐसा कहा जाता है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों को एक परिवार से एक व्यक्ति चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि किसके लिए? लेकिन छत्तीसगढ़ में कोई आत्मसमर्पण करता है तो एक सप्ताह के बाद आप उसे अपना ‘बॉडीगार्ड’ बना सकते हैं। नक्सलवादी जल, जंगल और जमीन कहकर लड़ते हैं। जबकि, हम तो खुद ही कहते हैं कि जो कुछ है बस्तरवासियों का है, तो इसमें क्या दिक्कत है। डिस्ट्रिक मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतनी अच्छी योजना लेकर आए हैं कि जो खुदाई होगी, उसकी आधी राशि वहीं पर खर्च होनी है।
कन्वर्जन भी एक बड़ी समस्या है। चुनौतियों के तौर पर आपके सामने अभी और कई एजेंडे हैं या फिर अभी नक्सल पर ही ध्यान है?
चुनौतियां तो हर वक्त रहती हैं। इस विभाग में रहते हुए मुझे इस बात का अहसास होता है कि यह तो 24 घंटे का विभाग है। हालांकि, सुरक्षाबल हैं, पूरा तंत्र है जो काम करता है। लेकिन आपको भी हर वक्त चौकन्ना रहना है और विषय को ध्यान में रखना है। कई सारे सुधार करने हैं, लेकिन मुख्य रूप से ध्यान नक्सलवाद पर है और जल्दी ही नक्सलवाद छत्तीसगढ़ से समाप्त होगा। तीन साल के बाद इंद्रावती नदी के किनारे शाम को बैठकर आप आराम से आनंद ले सकेंगे।
क्या पिछली सरकारों ने इस ‘रोग’ को बनाए रखनी की कोशिशें कीं? जिस सकारात्मकता के साथ आप बात कर रहे हैं, क्या वह पहले नहीं हो सकती थी?
पिछली राज्य सरकारों के समय केंद्र में अमित शाह गृहमंत्री नहीं थे और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय मुख्यमंत्री नहीं थे। लेकिन इस बार दोनों हैं और इसलिए पूरी संभावनाएं हैं कि कुछ न कुछ हल निकलेगा। कुछ लोग बस्तर के मूल निवासियों के साथ अन्याय कर रहे हैं। उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों से शहरी नक्सलियों की बड़ी चर्चा है। राज्य सरकार के लिए ये कितनी बड़ी चुनौती हैं?
यह केवल राज्य सरकार का नहीं, हम सब का मामला है, समाज का मामला है और समाज को इसे समझना होगा। बस्तर के गांवों के विकास के मार्ग पर नक्सलियों ने आईईडी बिछा रखा है। आखिर ये लोग चाहते क्या हैं? इनकी पैरवी करने वालों से यह पूछने की जरूरत है कि जो निर्दोष मारे जा रहे हैं, उनका क्या दोष है? दुनिया के युद्धों में इतने लोगों की मौतें नहीं हुई होंगी, जितनों को नक्सलियों ने जन अदालत लगाकर मार डाला। ये जन अदालतें दबावों के जरिए करवाई जाती हैं।
नक्सलियों और शहरी नक्सलियों के बीच गठजोड़ को तोड़ने के लिए सरकार क्या कर रही है?
सरकार से ज्यादा विश्वसनीयता समाज की होती है। हमको, आपको मिलकर इस गठजोड़ को तोड़ना होगा। किसी ने यह नहीं बताया कि होगा कि नक्सलवाद के कारण जो लोग भटक रहे हैं उनकी जिंदगी का क्या होगा। आज बस्तर में विकास कार्य हो रहे हैं। उनके साथ विकास आगे बढ़ रहा है। शहरी नक्सल दिमाग का फितूर है। इनसे पूछा जाना चाहिए कि माओवाद चीन में तो है ना? इससे चीन में क्या बदला, क्या लोगों की सुनवाई हो रही है। क्या हमें थ्येआनमन चौक याद नहीं है। इस चौक पर चीन के ही लोगों ने लोकतंत्र की बहाली के लिए अभियान छेड़ा था और चीन की लाल सेना ने उन पर टैंक चढ़ा दिए थे। ऐसा माओवाद चाहिए क्या किसी को? न ही हमें राजतंत्र चाहिए और न ही माओवाद, हमें चाहिए लोकतंत्र। लोकतंत्र को पूरी दुनिया में माना जाता है और हमें बस्तर और भारत में वही लोकतंत्र चाहिए। शहरी नक्सली समाज को दिग्भ्रमित कर रहे हैं।
जो नक्सली मुख्यधारा में आना चाहते हैं, उनके लिए आपकी क्या नीति है?
कुछ वर्षों में करीब सवा 525 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, लेकिन 600 नक्सली जेल में भी हैं। उस दिन की प्रतीक्षा है जब गिरफ्तार होने वालों से ज्यादा आत्मसमर्पण करने वाले हों।
आपको विश्वास है कि तीन साल में चीजें बदल देंगे। क्या आपके पास कोई आंतरिक रिपोर्ट है?
यह मेरा विश्वास नहीं है, यह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का आत्मविश्वास है। नक्सलवाद को खत्म करना है न कि नक्सली को। उन लोगों से हमारा यही कहना है कि आप मुख्यधारा में आएं, शांति का जीवन जिएं और इस बात को समझें कि बंदूक की नली से स्कूल और अस्पताल नहीं निकल सकते।
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