उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों, रेस्टोरेंट, होटल में नेम प्लेट लगाने के आदेश पर बवाल जारी है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी योगी आदित्यनाथ पर हमलावर हैं तो वहीं ओवैसी जैसे लोग भी लोगों को भड़का रहे हैं। जबकि यह पूरी तरह से कानून के पालन का मामला है, जिसमें प्रत्येक रेस्टोरेंट या ढाबा संचालक के लिए फर्म का नाम, अपना नाम और लाइसेंस नंबर आदि लिखना अनिवार्य है। कई मीडिया चैनलों पर अधिकारियों के हवाले से भी यह बात बोली जा रही है, जैसे इंडिया टीवी के अनुसार मेरठ के बाट-माप विभाग के प्रभारी वी के मिश्रा ने बताया कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के अनुसार, प्रत्येक रेस्टोरेंट या ढाबा संचालक के लिए फर्म का नाम, अपना नाम और लाइसेंस नंबर लिखना अनिवार्य है। उनके अनुसार ‘जागो ग्राहक जागो’ योजना के तहत नोटिस बोर्ड पर मूल्य सूची भी लगाना अनिवार्य है।
यही बात सोशल मीडिया पर भी लोग लगातार कह रहे हैं। सोशल मीडिया पर पत्रकार रूबिका लियाकत ने भी इस विषय में एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि हंगामा क्यों बरपा हुआ है? ये कानून तो 2006 में ही बन गया था। सरकार थी मनमोहन सिंह जी की। 2011 में नियम बन गए कि सभी ढाबा और रेस्टोरेंट मालिकों को अपना नाम और लाइसेंस नंबर बड़े अक्षरों में लगाना होगा ताकि ग्राहक आसानी से देख सकें.. ये सभी प्रबुद्धजीवियों के ज्ञान चक्षु आज अचानक क्यों खुल गए हैं? 2011 के नियम को सख़्ती से पालन ही तो करवाया जा रहा है। सवाल ये है कि ये सेक्युलर चश्मा 13 साल बाद काहे लगाया जा रहा है?
यही प्रश्न और भी कई लोग कर रहे हैं और प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों है कि नाम छिपाकर ही सामान बेचना है और यह भी समझ नहीं आ रहा है कि आखिर क्यों ऐसा परिदृश्य बनाया जा रहा है कि यह मुस्लिम विरोधी है? यह केवल अपने काम का नाम दिखाना भर है, मगर इसी बीच एक बहुत ही रोचक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें एक मुस्लिम महिला जो स्वयं को सुन्नी बताती है और वह यह कह रही हैं कि शिया मुस्लिम हर चीज में थूक मिलाकर खिलाते हैं। इसलिए हम लोग उनसे कोई संबंध नहीं रखते हैं।
प्रश्न यही है कि एक पंथ की जो मजहबी प्रक्रिया है, उसका शिकार दूसरे मत का पालन करने वाले क्यों बनें? और जो कानून पहले से ही लागू है, उसी का क्रियान्वयन कराने में लोग एजेंडा क्यों खोज रहे हैं? सोशल मीडिया पर एक तरफ जहां सेक्युलर लोग इसे मुस्लिम पहचान और भेदभाव के साथ जोड़ रहे हैं तो वहीं लोग प्रश्न कर रहे हैं कि जब 2006 में यह कानून लागू हुआ था तब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह थे, तो उस समय विरोध क्यों नहीं किया गया था?
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