दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के लगातार 10 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे। सरस्वती शिशु मंदिर इनके सीएम कार्यकाल में भी अपना ‘शिक्षा का ज्ञान’ देने का काम कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं, किंतु पता नहीं क्यों दिग्विजय शिशु मंदिर को लेकर बार-बार अनाप-शनाप बोलते हैं। अच्छा होता, यदि वे लोकतांत्रिक देश भारत में लोकतांत्रिक भावना से आबद्ध हो मदरसों और चर्च पोषित स्कूलों पर अपनी राय रखें।
इस बार सरस्वती शिशु मंदिर को लेकर दिग्विजय ने कहा, “सरस्वती शिशु मंदिर जहर घोलने का काम करते हैं। दिमाग में घोले गये जहर को निकालना आसान नहीं है।” पूर्व में भी उन्होंने गलत बयानबाजी की थी। अच्छा यह होता कि दिग्विजय सिंह अपनी पीआर टीम और अपने नजदीकियों में एक बार देख लेते कि कितने साथी उन्हें जो सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, वे सरस्वती स्कूल से पढ़कर निकले हैं और उन्होंने कितना जहर समाज में फैलाया? खैर, यह उनके आसपास के लोगों की और उनसे सीधे जुड़े अपने लोगों की व्यक्तिगत बात है, लेकिन अन्य बच्चों के भी अनुभव पढ़ लेते जोकि आज सोशल मीडिया पर मिल जाएंगे।
वस्तुत: शिशु मंदिर से पढ़कर निकले बच्चे देश के विकास में, हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। गौरव नैथानी टेक महिंद्रा में कार्यरत हैं। उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाई की है। गौरव कहते हैं कि मैं अपने जीवन के पहले आठ साल रोज सुबह प्रार्थना में शामिल हुआ। मेरा झुकाव बुद्ध की ओर है। मुझे यहां कभी साम्प्रदायिक शिक्षा नहीं मिली, ये मैं दावे से कह सकता हूँ। गांधी जयंती मनाई जाती थी और मैं वाद-विवाद में प्रतिभाग भी करता था। मेरे साथ के दो छात्र आज उत्तराखंड कांग्रेस में सक्रिय हैं। एक तो शायद कांग्रेस के टिकट से चुनाव भी लड़े। मेरे एक सीनियर एनएसडी से पास होकर निकले और आजकल वामपंथी विचारधारा से प्रेरित हैं। मैं आज भी उनका बहुत बड़ा फैन हूँ। मेरा एक दोस्त जेएनयू से पढ़कर निकला है और आजकल शोध कार्य में लगा है। शिशु मंदिर एक अच्छा अनुभव था। मेरे खुले विचारों में इस स्कूल का योगदान मैं नकार नहीं सकता।
शिशु मंदिर के अन्य छात्र रितेश कुमार प्रजापति हम गीत जो गाते थे, वह यह थे –
माँ भारती की स्वर्णिम माटी हमें है चन्दन।
माटी हमारी पूजा माटी हमारा वंदन ।।
अथवा
चन्दन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है।।
बचपन से ऐसे गीत गाते हुए बड़े होंगे तो राष्ट्रप्रेम स्वतः ही हमारे व्यवहार में आएगा। हर महीने एक नया गीत गाते थे, मैंने एक डायरी बनाई थी जिसमें मैं ये गीत लिखता था; उसमें में कुछ गीत अभी भी याद हैं। गीतों के अतिरिक्त हमारी सुबह और शाम को होने वाली प्रार्थना हमें हमारी संस्कृति से बांधे रखती थी।
ॐ संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्, देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।
समानो मन्त्र: समिति: समानी समानं मन: सहचित्तमेषाम्। समानं मन्त्रमभिमन्त्रये व: समानेन वो हविषा जुहोमि।।
समानी व आकूति: समाना हृदयानि व:। समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति।।
ॐ शांति शांति शांति !!
यह मंत्र सभी शिशु मंदिरों में छुट्टी के समय गाया जाता है, इसको हमलोग संगठन मंत्र बोलते हैं । रितेश कुमार अपनी बात को समाप्त करते हुए कहते हैं, ‘‘बालमन कच्ची मिट्टी के समान होता है, इसको हम जैसा चाहे वैसा आकार दे सकते हैं, इसमें माता-पिता तथा विद्यालय के शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसीलिए बच्चों को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए, जिससे वे बड़े होकर राष्ट्र की प्रगति में अपना योगदान दे सकें। विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालय यही काम कर रहे हैं, मैं सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ने को अपना सौभाग्य मानता हूँ।’’
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