भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने राम सेतु का अब तक का सबसे विस्तृत नक्शा तैयार किया है। यह नक्शा भारत के धनुषकोडी से लेकर श्रीलंका के तलाईमन्नार द्वीप तक फैले इस अद्वितीय संरचना की पुष्टि करता है।
पानी में डूबा है 99.8 प्रतिशत हिस्सा
इसरो के जोधपुर और हैदराबाद राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्रों के शोधकर्ताओं ने नासा के उपग्रह आईसीईसैट-2 की मदद से इस नक्शे का अध्ययन किया। इस उपग्रह ने समुद्र तल से लेजर किरणों को उछाल कर पाया कि राम सेतु का 99.8 प्रतिशत हिस्सा उथले पानी में डूबा हुआ है। यह स्थिति जहाजों के जरिए पुल का सर्वेक्षण करना मुश्किल बनाती है। वैज्ञानिकों ने पुल के नीचे 11 संकरी नालियों की भी पहचान की जिनकी गहराई 2-3 मीटर के बीच थी और जो मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य के बीच पानी के प्रवाह को आसान बनाती थीं।
धनुषकोडी से तलाईमन्नार तक है राम सेतु
शोधकर्ताओं के अनुसार, उनकी जांच के नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि राम सेतु धनुषकोडी और तलाईमन्नार द्वीप का एक सबमरीन श्रृंखला है। इस पुल की क्रेस्ट लाइन पर दोनों तरफ लगभग 1.5 किमी का हिस्सा बेहद उथले पानी के भीतर गहराई के साथ काफी उतार-चढ़ाव वाला है। मौजूदा भूगर्भीय साक्ष्यों से पता चलता है कि भारत और श्रीलंका के बीच बना यह पुल दोनों देशों के एक भूतपूर्व जमीनी संबंध दर्शाता है।
ऐतिहासिक साक्ष्य और वर्तमान स्थिति
राम सेतु श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप और भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के मध्य उथले पानी की एक श्रृंखला है। रामेश्वरम के मंदिर में लगे कई अभिलेखों से पता चलता है कि यह राम सेतु 1480 तक पानी के ऊपर था और एक चक्रवात तूफान की वजह से जलमग्न हो गया था।
रिसर्च की मुख्य बातें
इस रिसर्च में राम सेतु के आयतन की गणना की गई। जिससे लगभग 1 क्यूबिक किलोमीटर की वैल्यू हासिल हुई। दिलचस्प बात यह है कि इस आयतन का केवल 0.02 प्रतिशत ही औसत समुद्र तल से ऊपर है। सामान्य तौर पर ऑप्टिकल सैटेलाइट इमेजरी में भी यही दिखाई देता है। कुल मिलाकर राम सेतु का लगभग 99.98 प्रतिशत हिस्सा उथले और बहुत उथले पानी में डूबा हुआ है। पुल की वर्तमान भौतिक विशेषताओं की पुष्टि के लिए वैज्ञानिकों ने 3D-व्युत्पन्न मापदंडों के माध्यम से बाथिमेट्रिक डेटा से दृश्य व्याख्याओं का उपयोग किया, जिसमें आकृति, ढलान और वॉल्यूमेट्रिक विश्लेषण शामिल थे।
इसरो की यह स्टडी राम सेतु के ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व को एक नई दृष्टि प्रदान करती है, और इससे जुड़े तमाम रहस्यों पर प्रकाश डालती है।
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