क्रिकेट अब चंद देशों में खेला जाने वाला खेल नहीं रहा। इसका विस्तार पूरी दुनिया में हो चुका है और तेजी से हो रहा है। अब कनाडा, अमेरिका और ओमान जैसे देश भी क्रिकेट से जुड़ गए हैं। वैसे तो क्रिकेट का जन्म इंग्लैंड में हुआ। वहां से यह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में पहुंचा। हालांकि, अब इंग्लैंड क्रिकेट में कहीं पीछे छूट गया है। दुनिया में क्रिकेट को विस्तार देने का श्रेय इंग्लैंड से अधिक भारत को जाता है।
भारत क्रिकेट का नया ब्रांड एंबेसडर बन चुका है। नए देशों में क्रिकेट को स्थापित करने और उसे विस्तार देने में भारतीय मूल के खिलाड़ियों की अहम भूमिका है। अभी हाल संपन्न टी-20 क्रिकेट विश्व कप में सात-आठ नहीं, पूरे 20 देशों ने भाग लिया। कनाडा, अमेरिका, ओमान, स्कॉटलैंड, नामीबिया, युगांडा, पापुआ न्यू गिनी, नेपाल जैसे नए देश वर्ल्ड कप में शामिल हुए।
सुखद बात यह है कि इस वर्ल्ड कप में खेलने वाली पांच विदेशी टीमों में एक-दो नहीं, पूरे 22 भारतीय मूल के खिलाड़ी खेल रहे थे। अमेरिका की टीम भारतीय मूल के खिलाड़ियों से गठित हुई थी। भारतीय मूल के मोनंक पटेल अमेरिकी क्रिकेट टीम का नेतृत्व कर रहे थे। पटेल के अलावा टीम में भारतीय मूल के हरमीत सिंह, जेसी सिंह, मिलिंद कुमार, निसर्ग पटेल, नितीश कुमार, सौरभ नेत्राल्वाकर और गजानंद सिंह खेल रहे थे। अमेरिका की भांति कनाडा की टीम में भी भारतीय मूल के दिलप्रीत बाजवा, हर्ष ठाकर, कंवरपाल तथगुर, नवनीत धालीवाल, परगट सिंह, रविंदरपाल सिंह, श्रेयस मोव्वा, तजिंदर सिंह, आदित्य वरदराजन, जतिंदर मथारू और परवीन कुमार खेले। अरब देश ओमान की टीम भारतीय खिलाड़ियों के बिना अधूरी थी। कश्यप प्रजापति, प्रतीक आठवले, अयान खान, शोएब खान, जतिंदर सिंह और समय श्रीवास्तव टीम ओमान का हिस्सा रहे। नए देशों के अलावा पहले से स्थापित टीमों जैसे दक्षिण अफ्रीका की टीम में शामिल केशव महाराज और न्यूजीलैंड की टीम में रचिन रविंद्र और ईश सोढ़ी भारतीय मूल के हैं।
भारतीयों की भूमिका अहम
टी-20 विश्व कप ही नहीं, दशकों से भारतीय मूल के खिलाड़ी विदेशी टीमों में अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं। न्यूजीलैंड के दीपक पटेल को कौन भूल सकता है? वर्ष 1992 के वर्ल्ड कप में दीपक पटेल न्यूजीलैंड की गेंदबाजी की शुरुआत करते थे। उन्होंने ही क्रिकेट में पहला ओवर स्पिन कराने की एक नई परंपरा की शुरुआत की थी। वर्ष 1992 के वर्ल्ड कप में न्यूजीलैंड को सेमीफाइनल तक पहुंचाने में दीपक पटेल की अहम भूमिका रही थी। इतना ही नहीं, भारतीय मूल के खिलाड़ियों ने कई देशों की क्रिकेट टीमों का नेतृत्व किया है, जिनमें क्रिकेट का जन्मदाता इंग्लैंड भी शामिल है। मद्रास (अब चेन्नई) में जन्मे नासिर हुसैन इंग्लैंड के कप्तान रह चुके हैं।
सूरत (गुजरात) से ताल्लुक रखने वाले हाशिम अमला दक्षिण अफ्रीका की टीम की रीढ़ हुआ करते थे। पंजाब के मोंटी पनेसर ने बरसों बरस इंग्लैंड की स्पिन गेंदबाजी को धार दी। मुंबई में जन्मे एजाज पटेल न्यूजीलैंड के लिए खेलते हैं। गुजरात के रहने वाले जितिन पटेल ने न्यूजीलैंड टीम के लिए 24 टेस्ट और 43 वनडे खेले। रवि बोपारा इंग्लैंड के लिए लंबे समय तक खेल चुके हैं। दक्षिण अफ्रीका के केशव महाराज को कौन नहीं जानता? अभी संपन्न टी-20 वर्ल्ड कप में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को फाइनल तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। केशव महाराज एक सनातनी हैं और जब भी वे भारत खेलने के लिए आते हैं तो अयोध्या धाम में राम मंदिर से लेकर अन्य तीर्थस्थलों पर उन्हें दर्शन करते देखा जा सकता है। केन्या के लंबे समय तक कप्तान रहे आसिफ करीम भारतीय मूल के हैं। ऐसे नामों की एक लंबी शृंखला है।
सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर
खिलाड़ियों से अच्छा कोई ब्रांड एंबेसडर नहीं होता। भारतीय मूल के क्रिकेटर खेलते तो विदेशी टीमों से हैं, जहां उनका निवास है, लेकिन वे कहीं न कहीं भारतीय संस्कृति के वाहक भी हैं। इन क्रिकेटरों के माध्यम से भारत की पहचान पूरी दुनिया में आगे बढ़ रही है। क्रिकेट भारत में केवल एक खेल नहीं, एक जुनून बन चुका है। यही जुनून भारतीयों के माध्यम से दुनिया के देशों में पहुंच रहा है। अमेरिका और कनाडा इसके ताजा उदाहरण हैं। टी-20 वर्ल्ड कप में इस बात को महसूस भी किया गया। यहां जो दर्शक मैच देखने आते थे, उसमें अधिकांश भारतीय मूल के ही थे।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की भी क्रिकेट को देश-दुनिया में बढ़ावा देने में अहम भूमिका है। बीसीसीआई न केवल अपने खिलाड़ियों को आगे बढ़ा रहा है, बल्कि अपने पड़ोसी देशों को भी क्रिकेट में अग्रणी बनाने के प्रयासों में जुटा है। इसका एक उदाहरण अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम है, जिसका होम ग्राउंड भारत के शहर ग्रेटर नोएडा में है। नेपाल के खिलाड़ियों को भी भारत की ओर से सहयोग मिलता है। नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका के खिलाड़ी इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में आकर खेलते हैं। आईपीएल से उन्हें अच्छी आय की प्राप्ति होती है और वहां अन्य युवा भी क्रिकेट के प्रति आकर्षित होते हैं।
बढ़ रहा व्यापार
भारत आज क्रिकेट का सबसे बड़ा बाजार है। दुनिया का क्रिकेट से जुड़ा 60 प्रतिशत व्यापार भारत में हो रहा है। भारत के बाद इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया का नाम आता है, जहां क्रिकेट का 30 प्रतिशत कारोबार है। अभी संपन्न टी-20 वर्ल्ड कप में प्रति 30 सेकंड विज्ञापन की दर लगभग 54 करोड़ 28 लाख रु. थी, जबकि इंग्लैंड में वर्ष 2022 में हुए फुटबॉल वर्ल्ड कप में प्रति 30 सेकंड विज्ञापन की कीमत लगभग 42 करोड़ 59 लाख रु. ही थी, यानी बाजार की दृष्टि से क्रिकेट आज फुटबॉल से बड़ा खेल बनता जा रहा है। खेलों से जुड़े कारोबार को दुनिया का कोई देश छोड़ना नहीं चाहता। इसी बड़े बाजार को देखते हुए दुनिया क्रिकेट के प्रति आकर्षित हो रही है। नए-नए देश क्रिकेट से जुड़ रहे हैं। सभी भारत की सफलता की कहानी का लाभ उठाना चाहते हैं। ऐसे देशों के लिए भारतीय मूल के क्रिकेटर सबसे अधिक सहायक साबित हो रहे हैं।
भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली, रोहित शर्मा खेलों के नए ‘वर्ल्ड आइकन’ हैं। क्रिकेट खेल रहे विभिन्न देशों के बाहर भी इन भारतीय क्रिकेटरों की बड़ी फैन फॉलोइंग है, जो क्रिकेट के प्रति दुनिया को आकर्षित कर रही है। दुनिया भर के युवा क्रिकेट को समझना और देखना चाहते हैं। भारतीय मूल के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। वह विदेशों में क्रिकेट की एक नई कहानी लिख रहे हैं और वहां के स्थानीय युवाओं को क्रिकेट का क, ख, ग, घ सिखा रहे हैं। वहां की सरकार को क्रिकेट को बढ़ावा देने में सहयोग दे रहे हैं। अमेरिका, कनाडा, ओमान जैसे देश इसके उदाहरण हैं, जहां लाखों भारतीय निवास करते हैं। इन देशों में क्रिकेट तेजी से आगे बढ़ रहा है।
अब आगामी ओलंपिक खेलों में क्रिकेट को शामिल करने के प्रयास चल रहे हैं। यदि इन प्रयासों को मूर्तरूप मिला तो इसका श्रेय भारत को ही जाएगा। भारत के प्रयासों से एशियाई खेलों में क्रिकेट को शामिल किया गया। इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) में आज सबसे बुलंद आवाज भारत की है। आईसीसी में भारत का डंका बज रहा है। भारतीय मूल के खिलाड़ी अलग-अलग देशों में क्रिकेट को आगे ले जा रहे हैं, भारत का गौरव बढ़ा रहे हैं।
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