गुमला । झारखंड के गुमला जिले में स्थानीय लोगों की सतर्कता और पुलिस की सक्रियता ने मिलकर एक बड़ी सफलता दिलाई है। पुलिस ने माओवादियों के खतरनाक मंसूबों को विफल करते हुए गुमला जिले के दूरस्थ गुमला कुरुमगढ़ सीमावर्ती क्षेत्र में निर्माणाधीन सड़क और अन्य स्थानों पर लगाए गए 35 आईईडी बरामद किए हैं।
धमाकों से गूंज उठा आस-पास का इलाका
बम निरोधक दस्ते ने शुक्रवार को पांच केन बम को सड़क खोदकर निकाला और उन्हें निष्क्रिय कर दिया। इसके अलावा, हरिनाखाड़ इलाके से करीब 30 आईईडी बरामद किए गए, जिन्हें शनिवार को बम निरोधक दस्ते ने निष्क्रिय किया। बम लगभग 200 फीट की दूरी तक सड़क के बीच बिछाए गए थे। बम को निष्क्रिय करने के दौरान गांव के आसपास का इलाका धमाकों से गूंज उठा और इस रास्ते पर आम लोगों के आने-जाने पर रोक लगा दी गई है। पुलिस मामले की गंभीरता को देखते हुए लगातार छानबीन कर रही है।
पुलिस और सुरक्षाबल थे निशाना
एसपी शंभू कुमार सिंह ने शनिवार को बताया कि गुमला इलाका नक्सल प्रभावित है। माओवादियों ने पुलिस और सुरक्षाबलों को निशाना बनाने के लिए निर्माणाधीन कुटमा-बामड़ा सड़क पर पांच आईईडी बिछाए थे। जिन्हें बम निरोधक दस्ते और जगुआर पुलिस की टीम ने शुक्रवार देर रात निष्क्रिय कर दिया।
ग्रामीणों की सजगता से टली घटना
पुलिस के अनुसार- अवागमन के दौरान ग्रामीणों ने जमीन से एक तार निकला देखा तो उन्हें अनहोनी की आशंका हुई। जिसके बाद लोगों ने तत्काल इसकी सूचना पुलिस को इसकी दी। जानकारी मिलते ही रांची से बम निरोधक दस्ते को बुलाया गया और बिना समय गंवाए आईईडी को निष्क्रिय कर दिया।
नक्सलियों के आतंक से स्थानीय लोग परेशान
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों और उनके आतंक से स्थानीय लोग भी परेशान है। जिसके चलते स्थानीय ग्रामीण पुलिस और सुरक्षाबलों के साथ मिलकर इस लाल आतंक से मुक्ति पाना चाहते हैं। इसी के चलते इन प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय लोग स्थानीय जनता की सतर्कता और पुलिस की मुस्तैदी ने मिलकर माओवादियों के मंसूबों को नाकाम करने में लगे रहते है। पुलिस का कहना है कि वे मामले की गंभीरता को देखते हुए आगे भी ऐसी सतर्कता बरतते रहेंगे और किसी भी संभावित खतरे को टालने के लिए तैयार हैं।
आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा नक्सलवाद
वाम-अतिवाद को हमेशा ‘क्रांति’ के निहितार्थ में ढांप-छिपा कर प्रतिपादित किया जाता रहा है। इसलिए इस नैरेटिव को तोड़ने और इसके विरुद्ध लड़ाई में लंबा समय लग रहा है। एक बार प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘‘नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है।’’ लेकिन खतरे की पहचान करना एक बात है और उसके निराकरण का प्रयास अलग तरह की राजनैतिक इच्छाशक्ति की मांग करता है।
वामपंथी बौद्धिक वर्ग नक्सलियों को देता रहा है कवर फायर
वाम-अतिवाद ने कई दशक तक निर्ममता से जल-जंगल-जमीन के लिए संघर्ष छेड़ने के नाम पर इनके वास्तविक हकदारों यानी वनवासियों की हत्या की, घात लगाकर सुरक्षाबलों को निशाना बनाया। वामपंथी बौद्धिक वर्ग ने, जिसकी पकड़ मीडिया संस्थानों, शिक्षण संस्थानों सहित नाटक-फिल्म जैसे क्षेत्रों में तो थी ही, कानूनी पैतरों का भी जमकर प्रयोग किया और अब तक सफल प्रतीत हो रहा था। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नक्सल विरोधी प्रयासों का असर यह है कि जमीनी स्तर पर परिणाम दिखने लगे हैं। अब स्थिति निरंतर बदल रही है और कथित लाल गलियारा सिकुड़ता जा रहा है।
लाल आतंक पर चोट लगातार चोट कर रही केंद्र सरकार
एक समय देश में 135 नक्सल प्रभावित जिले थे, जो अब लगभग 50 रह गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय की 2024 की रिपोर्ट में देश के अति नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में भी कमी आई है। 2012 में देश के 25 जिले अति नक्सल प्रभावित थे, जो घटकर 12 रह गए हैं। इसका श्रेय केंद्र सरकार की नक्सल विरोधी नीति को देना चाहिए।
विकासोन्मुखी कार्यों के साथ सटीक सैन्य कार्रवाइयों ने अनेक स्थानों से माओवादियों के पैर उखाड़ दिए हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ और झारखंड के कतिपय क्षेत्र अब भी माओवाद की विभीषिका को झेल रहे हैं। इनके सफाए में भले ही समय लग रहा है, लेकिन नक्सली चाह कर भी बस्तर या झारखंड के नक्सली झीरम घाटी जैसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं कर सके हैं। बीते 4-5 वर्ष में उनकी सभी गतिविधियां केवल अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश भर नजर आती हैं।
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