भरपूर एक्शन, रोमांच और अंतत: एक सुखांत कहानी लिखी भारतीय क्रिकेट टीम ने। शायद ये तीनों शब्द भारतीय टीम के विश्व विजेता बनने का सार हैं। एक लंबे समय से आईसीसी विश्व कप जीतने की आस में भारतीय टीम कई बार शिखर तक पहुंची, मगर अंतिम सीढ़ी पर जाकर लड़खड़ाने की नियति सी बन गई थी। अपनी धरती पर 2011 वनडे विश्व कप जीतने के बाद भारतीय टीम को जो सफलताएं मिलनी चाहिए थीं, वे मिल नहीं पा रही थीं। अपनी जिस क्रिकेट टीम पर भारतीय खेल जगत को गर्व महसूस होता था, वही टीम प्रेरणादायी परिणाम नहीं दे पा रही थी। लेकिन टीम का प्रयास कभी थमा नहीं। परिणाम और विपक्षी टीम की चिंता छोड़ सिर्फ अपनी ताकत पर भरोसा करने की सोच, शत-प्रतिशत प्रदर्शन करने का दृढ़ निश्चय और जीतने के जुनून का ही नतीजा है कि विश्वकप में भारत चौथी बार (दो बार वनडे और दो बार टी-20) आईसीसी विश्व चैम्पियन बना।
यह न सिर्फ पिछले 13 साल के लंबे इंतजार के बाद विश्व कप जीतने का एक करिश्माई मौका था, बल्कि एक जयघोष भी था कि भारतीय टीम में विश्व क्रिकेट पर राज करने की क्षमता है। दक्षिण अफ्रीकी कोच गैरी कर्स्टन के साथ 2011 वनडे विश्व कप जीतने के बाद कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी सूझबूझ और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के बल पर भारतीय टीम को शिखर तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कोच रवि शास्त्री व कप्तान विराट कोहली ने आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड व दक्षिण अफ्रीका जैसी सशक्त टीमों को मात तो दी, लेकिन आक्रामक रवैये और रणनीति की कमी के कारण वे टीम को विश्व विजेता नहीं बना सके।
अलबत्ता, इस दौरान बेखौफ भारतीय टीम क्रिकेट के तीनों प्रारूपों (टेस्ट, वनडे और टी-20) में विश्व की नंबर एक टीम जरूर बनी। इसके बाद कोच राहुल द्रविड़ और कप्तान रोहित शर्मा की जोड़ी ने टीम की सफलता को एक अलग गति दी। प्रतिभाशाली खिलाड़ियों पर पूरा भरोसा जताने और उनसे उनका शत-प्रतिशत निकालने की काबिलियत के दम पर रोहित शर्मा ने टीम को एक नई ऊंचाई देना शुरू किया। साथ ही, भारत के महान बल्लेबाजों में शुमार राहुल द्रविड़ कोच के रूप में भी टीम के लिए काफी उपयोगी साबित हुए। उनके पास युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का एक समूह था और उन्होंने अपनी ठोस रणनीति के बल पर धीरे-धीरे इस समूह को चैम्पियन टीम का रूप दिया।
हालांकि, अच्छी तैयारी के बावजूद पिछले कुछ वर्षों से भारतीय टीम का अभियान सेमीफाइनल या फाइनल तक आकर थम जाता था। प्रबल दावेदार होने के बावजूद भारतीय टीम आस्ट्रेलिया या इंग्लैंड को विश्व कप उठाते देखती रह जाती थी। सबसे बड़ी टीस आस्ट्रेलिया ने पिछले साल भारत को दी जब उसने विश्व टेस्ट चैंपियनशिप और वनडे विश्व कप के फाइनल में भारत को हराकर आईसीसी ट्रॉफी से दूर कर दिया। आॅस्ट्रेलिया ने भारत की एक छवि सी बना दी कि खिताब के बेहद करीब पहुंच जाने के बावजूद भारतीय टीम सबसे महत्वपूर्ण मुकाबले का दबाव नहीं झेल पाती है।
टीम के दावे में था दम
थम जाता था। जिस भारतीय टीम के पास जसप्रीत बुमराह जैसा विश्व का सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज और कप्तान रोहित शर्मा, विराट कोहली, सूर्यकुमार यादव, रविन्द्र जडेजा व हार्दिक पांड्या जैसे धुरंधर मौजूद हों, वह विश्व चैम्पियन बनने का सपना देखने की पूरी-पूरी हकदार है। इन चैम्पियन खिलाड़ियों में जीत की जिगीषा शिखर पर थी। विशेषकर रोहित शर्मा और विराट कोहली सहित कोच राहुल द्रविड़ विश्वकप जीतने को आतुर थे, क्योंकि इन तीनों के लिए आईसीसी ट्रॉफी जीतने का यह अंतिम मौका था। यही कारण था कि उन्होंने पिछले नवंबर माह में अमदाबाद में मिली हार से सबक लेकर टी—20 विश्वकप की तैयारियां शुरू कर दी थीं। टीम संयोजन बनाने में प्रबंधन ईमानदारी से मेहनत करता रहा। भारतीय टीम फिर तीनों प्रारूपों में विश्व की नंबर एक टीम बनी। इस क्रम में भारत ने लगभग हर टीम को हराया।
भारतीय टीम ने टी-20 विश्वकप में भी दमदार शुरुआत की। ग्रुप स्टेज में पहले अमेरिका के अप्रत्याशित विकेट पर विपक्षी टीमों को परास्त कर अपने अभियान को आगे बढ़ाया। इसके बाद देश को पहली बार 1983 में विश्व कप विजेता बनाने वाले कप्तान कपिल देव की खुद पर भरोसा रखने और मजबूत विपक्षी टीमों को उन्हीं की भाषा में करारा जवाब देने की पूर्व कप्तान सौरव गांगुली की सीख से प्रेरित हो कप्तान रोहित शर्मा ने नायक की भूमिका निभाते हुए भारत को फाइनल तक पहुंचा दिया। रोहित शर्मा ने सुपर 8 मुकाबले में तूफानी बल्लेबाजी करते हुए आस्ट्रेलिया को उसी की भाषा में जवाब दिया। रोहित के चौतरफा हमले से आस्ट्रेलियाई टीम बुरी तरह लड़खड़ा गई और अंत तक उससे उबर नहीं पायी। कुछ ऐसे ही आक्रामक अंदाज में भारत ने सेमीफाइनल में इंग्लैंड और फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को मात देते हुए विश्व विजेता बनने का गौरव हासिल किया।
- भारत 2007 में पहली बार टी-20 विश्वकप जीतने के 17 साल बाद दूसरी बार विश्व चैम्पियन बना। 2011 में दूसरी बार वनडे विश्वकप जीतने के 13 साल बाद विश्वकप जीतने में सफल रहा।
- भारत ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 176/7 का स्कोर खड़ा कर टी-20 विश्व कप के फाइनल का सर्वाधिक स्कोर खड़ा किया। इससे पहले आस्ट्रेलिया के नाम न्यूजीलैंड के खिलाफ 2021 टी 20 विश्व कप में 173/2 के सर्वाधिक स्कोर का रिकॉर्ड था।
- रोहित शर्मा 2007 टी-20 विश्वकप में धोनी की कप्तानी में टीम के सदस्य के रूप में पहली बार विश्व विजेता बने। इस टी-20 विश्वकप विजेता टीम के कप्तान के रूप में क्रिकेट के फटाफट संस्करण से संन्यास लिया। रोहित भारत के एकमात्र क्रिकेटर हैं, जिनके नाम दो बार टी-20 विश्व कप विजेता बनने का रिकॉर्ड है।
- विराट कोहली भारत के पहले ऐसे बल्लेबाज बन गए हैं जिनके नाम टी 20 विश्वकप के फाइनल में दो अर्धशतक दर्ज हैं। विराट ने 2014 विश्वकप फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ 77, जबकि 2024 में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध ब्रिजटाउन में 76 रन बनाए।
- कोहली के नाम टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में सर्वाधिक 16 बार मैन आफ द मैच जीतने विश्व रिकॉर्ड है। उनमें से 8 बार विश्वकप मुकाबलों में मैन आफ द मैच जीतने का रिकॉर्ड भी उनके ही नाम है।
- इसी तरह गेंदबाजी में अर्शदीप सिंह ने 8 मैचों में 17 विकेट चटकाकर अफगानिस्तान के फजल हक के साथ एक टी 20 विश्व कप में सर्वाधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया।
अजेय रहे विश्व विजेता
हालांकि फाइनल मैच में एक समय दक्षिण अफ्रीका ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान शानदार प्रदर्शन करने वाली भारतीय टीम को जरूर हताश कर दिया था। लेकिन विराट कोहली का बल्ला ऐन वक्त पर चला और उन्होंने फिर से साबित किया कि वे बड़े मैचों के एक बड़े खिलाड़ी हैं। पूरे टूर्नामेंट में विराट कोई विशेष रन नहीं बना सके थे, लेकिन शायद उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन फाइनल के लिए बचा रखा था। विराट के 76 रनों की पारी की बदौलत भारतीय टीम ने 176 रन का चुनौतीपूर्ण स्कोर खड़ा किया। इसके बाद पूरी टीम ने अंतिम दम तक हार न मानने का जज्बा दिखाते हुए अंतत: विश्वकप पर कब्जा कर लिया। यही नहीं, इस विश्वकप में सभी मैच जीतने वाली विश्व की पहली टीम बनी।
विश्वकप से पहले क्रिकेट प्रशंसकों व कई विशेषज्ञों की ओर से कप्तान रोहित शर्मा और विराट कोहली पर टी-20 फॉर्मेट से संन्यास लेने का दबाव से पड़ रहा था। अंतत: उन आलोचकों के लिए विश्व विजेता भारतीय टीम की सफलता करारा तमाचा है। रोहित और विराट दोनों ही चैम्पियन बल्लेबाज व रणनीतिकार हैं। उन्हें बखूबी पता था कि यह उनका अंतिम टी—20 विश्वकप है। दोनों ने ही महत्वपूर्ण मौकों पर शानदार प्रदर्शन कर टीम को विश्व विजेता बनाया। पूरे टूनार्मेंट में गौर करें तो भारत को आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका से ही कड़ी चुनौती मिली और इन्हीं दोनों खिलाड़ियों ने टीम को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। सबसे अच्छी बात रही कि टीम के सभी 11 खिलाड़ियों ने अपनी उपयोगिता साबित की। जिस भारतीय टीम की सशक्त बल्लेबाजी से विपक्षी टीम सहमी रहती थी, बुमराह, अर्शदीप, कुलदीप यादव और अक्षर पटेल जैसे चतुर व घातक गेंदबाज उसी टीम की ताकत बन गए। हर मैच में विपक्षी टीम इन गेंदबाजों से पनाह मांगती दिखी। फाइनल में तो हार्दिक पांड्या, बुमराह और अर्शदीप ने अंतिम पांच ओवरों में दमदार गेंदबाजी कर मैच को रोमांचक बना दिया और अंतत: भारत ने दक्षिण अफ्रीका पर जीत दर्ज की।
धनकुबेर का है रुतबा
विश्वकप जीतने के बाद बीसीसीआई ने भारतीय टीम व सपोर्ट स्टाफ के लिए 125 करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि की घोषणा की है। यह राशि कई देशों की राष्ट्रीय टीमों के लिए खेलने वाले क्रिकेटरों के पूरे कॅरियर से बहुत ज्यादा है। आईसीसी ने विश्वकप जीतने पर टीम को 20.37 करोड़ रुपये दिए हैं, लेकिन बीसीसीआई ने उससे छह गुना अधिक पूरी टीम को दे दिए। विश्व क्रिकेट जगत इतनी बड़ी इनामी राशि को लेकर हैरत में है। बीसीसीआई ने 1983 विश्व कप विजेता कपिल की भारतीय टीम को उस समय पुरस्कार राशि के तौर 25-25 हजार रुपए प्रत्येक खिलाड़ी को दिए थे।
महान गायिका लता मंगेशकर ने तब दिल्ली में एक लाइव कंसर्ट कर भारतीय खिलाड़ियों के लिए पुरस्कार राशि जुटाई थी तब जाकर हर खिलाड़ी को 1-1 लाख रुपए का चेक मिला था। देश की पहली विश्व विजेता टीम के खिलाड़ियों के लिए वह राशि उनके करिअर की सबसे बड़ी पुरस्कार राशि थी। बीसीसीआई ने क्रिकेट को वैश्विक स्तर पर इतना लोकप्रिय और व्यवसायिक खेल बना दिया कि आज भारतीय बोर्ड विश्व के अमीर खेल संस्थानों में से एक है।
आईसीसी पर भारत का दबदबा जायज : इन दिनों पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इंजमाम उल हक सहित कई हताश पूर्व क्रिकेटरों का रोना-गाना चल रहा है कि बीसीसीआई ने आईसीसी पर पूरा दबदबा बना रखा है और भारत अपनी मर्जी से टी 20 विश्व कप में अपने मैचों के दिन और वेन्यू तय करवाये।
उन्हें कौन समझाए कि आईसीसी पर भारत ने तो तबसे दबदबा बना लिया था, जब 1987 में इंग्लैंड के विरोध के बावजूद इंग्लैंड से बाहर पहली बार विश्वकप का आयोजन अपनी धरती पर कराया। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने विश्वकप के आयोजन से लेकर मैचों के प्रसारण अधिकार तक का व्यवसायीकरण कर आईसीसी की कमाई का जरिया बनाया। उन्होंने 1996 विश्वकप में आईसीसी को केवल टीवी प्रसारण अधिकार से करीबन 600 करोड़ की कमाई करा कर सबको अचंभे में डाल दिया था।
नतीजतन, 1997 में डालमिया को निर्विरोध रूप से आईसीसी का अध्यक्ष बना दिया गया। उस समय आईसीसी के खाते में महज 16 हजार पाउंड थे और 2000 में जब उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया तो आईसीसी के पास 150 लाख डॉलर जमा हो चुके थे। आईसीसी पर भारत का दबदबा बनना लाजमी है।
कपिल ने रचा था पहली बार इतिहास
आज अगर भारतीय टीम विश्व क्रिकेट के शिखर पर है तो इसकी कहानी चार दशक से पहले 1983 में कपिलदेव की कप्तानी में शुरू हुई थी। तब विश्वकप में भारत की एक कमजोर टीम के रूप में पहचान थी। रिकॉर्ड ही ऐसे थे। भारतीय टीम ने पहली बार 1975 विश्वकप में पहला मैच जीता था। 1979 के दूसरे विश्वकप में भारत एक भी मैच नहीं जीता। 1983 में हार न मानने वाले कपिलदेव की कप्तानी में टीम ने इतिहास रचा। कपिल के साथ मोहिंदर अमरनाथ, मदनलाल, श्रीकांत, गावस्कर, रोजर बिन्नी, संदीप पाटिल, यशपाल शर्मा और किरमानी जैसे भरोसेमंद खिलाड़ी थे, जिन्होंने सिर्फ शानदार प्रदर्शन किया और विश्वकप क्रिकेट में इतिहास रच दिया।
सौरव ने दी टीम को नयी दिशा
कपिल के बाद सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री ने वनडे क्रिकेट में भारत की परंपरा और मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लेकिन सौरव गांगुली के पदार्पण ने भारतीय क्रिकेट की तस्वीर बदलने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। गांगुली ने भारतीय टीम में धुरंधर विदेशी टीमों को उन्हीं की धरती पर हराने का हौसला भरा। स्टीव वॉ के नेतृत्व में आस्ट्रेलियाई टीम पूरे दमखम के साथ विश्व क्रिकेट पर राज कर रही थी, जबकि इंग्लैंड, पाकिस्तान, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका की टीम भी दमदार टीमों के रूप में पहचान बना चुकी थी। लेकिन गांगुली ने सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ व वीवीएस लक्ष्मण, वीरेन्द्र सहवाग, जहीर खान, युवराज सिंह, मोहम्मद कैफ, हरभजन सिंह और आशीष नेहरा जैसे युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की ऐसी टीम तैयार की, जो किसी भी टीम को हराने का माद्दा रखती थी।
सौरव के नेतृत्व में भारतीय टीम ने 2003 वनडे विश्वकप के फाइनल तक का सफर तय किया, लेकिन फाइनल में आस्ट्रेलिया से हार गई। हालांकि इसके बाद भारतीय क्रिकेट का काला अध्याय शुरू हुआ, जब आस्ट्रेलियाई कोच ग्रेग चैपल की गलत नीतियों और हठधर्मिता ने भारतीय टीम में बढ़ते कदम को रोक दिया। चैपल ने राहुल द्रविड़ के नेतृत्व में वेस्टइंडीज में हुए 2007 विश्वकप में ऐसी टीम उतारी, जो 1992 विश्वकप के बाद पहली बार ग्रुप दौर से टूर्नामेंट से बाहर हो गई।
कुल मिलाकर भारतीय टीम का विश्व कप सफर देखा जाए तो कपिल देव ने सबसे पहले इतिहास रचा, सौरव गांगुली ने खिलाड़ियों की सोच में परिवर्तन लाते हुए टीम को शिखर तक पहुंचाया, महेंद्र सिंह धोनी ने दो बार (2007 टी-20 और 2011 वनडे) विश्वकप जीत भारतीय परचम खूब लहराया और रोहित शर्मा ने अपने सभी सीनियर कप्तानों का अनुसरण कर एक बार फिर भारतीय टीम को उस शिखर पर ला खड़ा किया, जिसकी वह पूरी तरह से हकदार है।
टिप्पणियाँ