अक्तो काउंटी में एक गांव था अक मेशिट यानी श्वेत मस्जिद। अब इसका नाम हो गया है ‘यूनिटी’। कराकाक्स काउंटी के एक गांव का नाम उइगर पारंपरिक वाद्य यंत्र के नाम पर ‘दुतार’ हुआ करता था। अब इस गांव का नाम है ‘रेड फ्लैग’
उइगरों के चीन में दमन का एक और आयाम सामने आया है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने उइगर मुस्लिम बहुल सिंक्यांग प्रांत में बड़ी संख्या में उइगर मुसलमानों के गांवों के नामों का कम्युनिस्टीकरण किया है। अब ये गांव अपने नए मंदारिनी नाम से जाने जाते हैं। कहा गया है कि ये नए नाम चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के असल भावों को व्यक्त करते हैं इसलिए यही नाम सही हैं। यानी दुनियाभर के आरोप लगने और आलोचना होने के बावजूद चीन का उइगरों पर शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक अत्याचार जारी है।
और कम्युनिस्ट चीन का उइगरों पर यह अत्याचार बहुत योजनाबद्ध तरीके से जारी है। यह चौंकाने वाला तथ्य चीन में उइगरों की बदहाली पर किए गए एक विस्तृत अध्ययन के आधार पर लिखी नई रिपोर्ट में सामने आया है।
चीन ने उइगरों के गांवों के नामों को इसलिए बदला है क्योंकि पहले के नामों से उनकी मजहबी, ऐतिहासिक या सांस्कृतिक पहचान झलकती थी। ऐसे कई सौ गांव और कस्बे अब चीनी कम्युनिस्टों की भावनाओं को पुष्ट करने वाले हो गए हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर द गार्जियन अखबार ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसे ह्यूमन राइट्स वॉच तथा नॉर्वे में चल रही ‘उइगर हेजेल्प’नामक संस्था ने मिलकर जारी किया है। इस विस्तृत अध्ययन में करीब 630 समुदायों का उल्लेख है, जिनके गांवों के नाम चीन की शी जिनपिंग सरकार ने बदल दिए हैं। अब इन गांवों के नामों सहित बाकी चीजों का भी कम्युनिस्टीकरण किया जा रहा है।
शोध से पता चला है कि उइगर गावों के नामों को बदलने की साजिश बहुत पहले से चल रही है। यह तब शुरू हुआ था जब उइगर मुसलमानों को यातनाएं देने की कम्युनिस्ट सोच उन पर अपनी मनमानी कर रही थी।
गार्जियन की रिपोर्ट बताती है कि साल 2009 से 2023 के बीच के वक्त में हजारों नामों को बदला गया था। नामों को कम्युनिस्ट रंग दिया गया जिससे उनकी मजहबी पहचान मिट जाए। 2017 और 2019 के दौरान उइगर मुसलमानों के मजहब और रस्मोरिवाज को झलकाने वाले नाम हटाए गए थे। 25 गांव ऐसे थे जिनमें “होजा” (सूफी मजहबी मुल्ला का ओहदा) शब्द था, 10 गांवों के नाम थे जिनमें “हनीका” (सूफी मजहबी इमारत) तथा करीब 41 गांवों के नामों में “मज़ार” (मजहबी स्थल) जैसे शब्द थे, जिनको पूरी तरह धो—पोछ डाला गया है।
और सिर्फ यही नहीं, चीनी अधिकारियों ने उन नामों को भी बदल दिया जो साल 1949 से पहले के उइगर राज्यों या नेताओं की झलक देने वाले नामों को भी चीन ने बदल दिया। माना जाता है कि 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना स्थापित हुआ था।
अखबार की रिपोर्ट आगे बताती है कि आज सिंक्यांग में कोई ऐसा गांव नहीं बचा है जिसके नाम में “ज़ेलपे” या “खलीफा” (शासक) या “मेसचिट” (मस्जिद) शब्द आता है। जबकि पहले ज्यादातर नामों में ऐसे शब्द आते ही थे। कहते हैं उइगर तुर्क से आकर यहां बसे थे। इनकी सबसे ज्यादा संख्या सिंक्यांग में ही है। चीन की सरकार का आरोप है कि उइगर लोग अलगाववाद की आग भड़का रहे हैं, जबकि उन्हें चीनी मान्यताएं माननी चाहिए।
आज अधिकांश उइगर गांवों के नाम चीन की मंदारिन भाषा में हैं। जैसे, साल 2018 में सिंक्यांग की अक्तो काउंटी में एक गांव था अक मेशिट यानी श्वेत मस्जिद। अब इसका नाम हो गया है ‘यूनिटी’। कराकाक्स काउंटी के एक गांव का नाम उइगर पारंपरिक वाद्य यंत्र के नाम पर ‘दुतार’ हुआ करता था। अब इस गांव का नाम है ‘रेड फ्लैग’।
टिप्पणियाँ