आठ सप्ताह तक चले उथल-पुथल भरे सात चरणों के लोकसभा चुनाव के बाद अंतत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार राजग की सरकार बन गई। नई सरकार के एजेंडे को लेकर वैश्विक स्तर पर बहुत दिलचस्पी है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल के शुरुआती 100 दिनों में क्या काम होने हैं, शासन ने इसकी तैयारी पहले से ही कर रखी है। नई टीम के साथ प्रधानमंत्री मोदी के कार्यभार संभालने के बाद केंद्र और राजग सहयोगियों द्वारा शासित 20 राज्यों में राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित हो जाएगी। युद्धों, संघर्षों या राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे कई देशों के विपरीत 1.4 अरब की जनसंख्या वाला भारत वैश्विक आर्थिक महाशक्ति और वैश्विक समुदाय के लिए आशा की किरण के रूप में उभरेगा।
स्थिर ब्याज दरों, 4 प्रतिशत पर नियंत्रित मुद्रास्फीति और 8 प्रतिशत से अधिक विकास दर के साथ जर्मनी और जापान को पीछे छोड़ते हुए भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए काम करेगा। अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, और कृषि उपज, औद्योगिक विनिर्माण, सेवाएं प्रदान करने व लागत प्रभावी गुणवत्ता वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात का केंद्र बनकर उभरेगा।
बहुत संभव है कि मोदी सरकार 3.0 के शुरुआती तीन वर्ष में भारत न केवल 5 खरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा, बल्कि स्टॉक स्वीपस्टेक में बाजार पूंजीकरण को आगे बढ़ाने की राह पर होगा। बीएसई और एनएसई, दोनों की रिपोर्ट है कि भारत में बाजार पूंजीकरण 5 खरब अमेरिकी डॉलर को पार कर गया है, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक प्रमुख संकेतक के रूप में काम कर रहा है।
विकसित राष्ट्र की ओर बढ़ते कदम
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए पहला बड़ा काम 2047 तक भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बनाने की रूपरेखा तैयार करने के साथ तीन महीने में पूर्ण नियमित बजट पेश करना होगा। भले ही विपक्षी दल, विशेष रूप से कांग्रेस भारत के ‘विकसित राष्ट्र’ बनने के विचार का उपहास उड़ाए, लेकिन तेज गति से आगे बढ़ने के लिए नट-बोल्ट कसना भी जरूरी है। निर्मला सीतारमण द्वारा पिछले कार्यकाल में किए गए सराहनीय कार्यों के कारण हम ‘विकसित भारत’ का दर्जा हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इसके प्रति प्रधानमंत्री मोदी का दृढ़ विश्वास और प्रतिबद्धता, दोनों हैं।
तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का नकद अधिशेष, 2.1 लाख करोड़ रुपये का आरबीआई लाभांश और 25 मई तक 648.7 अरब अमेरिकी डॉलर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार नई सरकार के लिए एक विकसित राष्ट्र बनने की लंबी यात्रा में अल्पकालिक उपायों को लागू करने में सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं। भले ही अंतरिम बजट व्यय अनुमान 47.65 लाख करोड़ रुपये और सकल कर संग्रह लक्ष्य 38.2 लाख करोड़ रुपये बरकरार रखा जाए, मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में बॉण्ड और विधेयक के माध्यम से उधार में कटौती की जा सकती है।
वैकल्पिक रूप से 2024-25 में सकल उधारी 14.13 लाख करोड़ रुपये पर बनाए रखने से नई सरकार को आर्थिक विस्तार में नए तत्व पेश करने और इसे तीन वर्ष तक लगातार 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के उच्च विकास पथ पर रखने के लिए पर्याप्त छूट मिलेगी। बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 12 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति बनाने के लिए पूंजीगत व्यय को अधिक प्रोत्साहन देने के साथ सरकार युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए नई नौकरियों, सेवाओं और अवसरों पर जोर देगी। इसका कारण यह है कि युवाओं ने नया भारत बनाने के मोदी सरकार के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए चुनावों में भाजपा नीत राजग को अपना समर्थन दिया है।
इसके साथ ही, सरकार को विवेकपूर्ण राजकोषीय रणनीति पर टिके रहना होगा, क्योंकि वर्तमान उधारी में कटौती, कम ऋण संचय और ब्याज भुगतान के साथ-साथ भोजन, उर्वरक और तेल सब्सिडी के गंभीर पुनर्मूल्यांकन को बिना किसी रुकावट के जारी रखना पड़ सकता है। इसी तरह, समानांतर, गहन और व्यापक आधार वाले लोकप्रिय विकास प्रतिमान पर केंद्रित विकास हस्तक्षेपों के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आवास, पानी और कृषि क्षेत्र में सरकार को समर्थन जारी रखना पड़ सकता है।
नई सोच जरूरी
सरकार के लिए असली चुनौती ‘नए विकसित भारत’ की मजबूत नींव रखना होगी। इसके लिए लीक से हटकर सोचना होगा ताकि विविध आर्थिक विस्तार को बढ़ावा दिया जा सके, जो समावेशी और लक्ष्य उन्मुख हो। उदाहरण के लिए, क्या सरकार अर्थव्यवस्था को अगले स्तर पर ले जाने के लिए 20 नए विकास केंद्रों पर विचार कर सकती है?
क्या पश्चिम बंगाल के सुंदरबन क्षेत्र में संदेशखाली, जहां महिलाओं को हिंसा और यौन शोषण का सामना करना पड़ता था, महिला केंद्रित विकास परियोजना के लिए नया विकास केंद्र बन सकता है? तीन करोड़ ‘लखपति दीदी’ बनाने की योजना को संदेशखाली में लागू किया जाए और महिला आर्थिक सशक्तिकरण परियोजना के रूप में इसे पूरे भारत में फैलाया जाए। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील सुंदरबन तट के विकास के अलावा विभिन्न राज्यों के स्थानीय कौशल, अवसरों और नए विचारों को प्रधानमंत्री मोदी की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में शामिल किया जा सकता है।
इसी तरह, वनवासी समुदायों के लिए व्यापक आर्थिक उत्थान परियोजना छत्तीसगढ़ के बस्तर या नारायणपुर में केंद्रित हो सकती है, जहां वामपंथी उग्रवाद और आर्थिक रूप से कमजोर वनवासी समुदायों का बड़े पैमाने पर कन्वर्जन होता है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए तटीय केरल या आंध्र प्रदेश में मुख्यालय बने? वहां एक विकास केंद्र हो, जहां से योजना बनाने के साथ उसे क्रियान्वित किया जा सके? क्या मत्स्य पालन का प्रबंधन और विनियमन दिल्ली से करना जरूरी है?
इन क्षेत्रों पर जोर देने के लिए मत्स्य पालन और तटीय क्षेत्रों के आसपास विकास का एक नया आर्थिक मॉडल विकसित किया जा सकता है। जब हैदराबाद को रक्षा प्रौद्योगिकियों और मुख्य विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है, तो क्या ओडिशा में बंदरगाह आधारित आर्थिक विकास मॉडल स्थापित नहीं किया जा सकता? किसी भी नई परियोजना, योजना या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र या महानगर में पंजीकरण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। विकास परियोजनाओं को भारत के कोने-कोने में फैलाने के लिए बीस नए विषयगत विकास क्षेत्रों पर विचार किया जा सकता है।
आवश्यकता पड़ने पर कुछ मंत्रालयों, विभागों, राज्य-संचालित कंपनियों, स्वायत्त निकायों को दिल्ली से दूर ले जाया जाना चाहिए। ऐसा करके स्टार्टअप, विभिन्न वित्तीय सेवाओं, जैसे मुख्यालयों का विकेंद्रीकरण कर 20 नए आर्थिक विकास केंद्र भी विकसित किए जा सकते हैं। यहां तक कि सरकार स्टार्टअप, विभिन्न वित्तीय सेवाओं आदि के लिए विकेंद्रीकृत आर्थिक केंद्रों के रूप में 20 केंद्र विकसित कर सकती है।
क्या कृषि मंत्रालय को कृषि प्रधान क्षेत्र में स्थानांतरित करना उचित नहीं होगा? क्या व्यापक पर्वतीय विकास परियोजना को उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश से बाहर नहीं चलाया जाना चाहिए? नई दिल्ली के पॉश जोर बाग इलाके में स्थित पर्यावरण भवन में पर्यावरण और वन मंत्रालय को बनाए रखने की कोई खास उपयोगिता तो नजर नहीं आती।
भारत के आर्थिक हितों के वैश्विक विस्तार को ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की सच्ची भावना में निहित हमारे भू-राजनीतिक लक्ष्यों के साथ जोड़ा जाना चाहिए, जिससे हम संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक बड़े परिवार के हिस्से के रूप में देख सकेंगे। संक्षेप में, भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए विशेषज्ञ आर्थिक और आधारभूत विकास संरचनाओं में बड़े बदलाव की वकालत करते हैं।
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