उत्तराखंड

उत्तराखंड : टाइगर के खौफ से लेपर्ड की संख्या में गिरावट, 2276 रह गई तेंदुओं की संख्या

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दिनेश मानसेरा

देहरादून । उत्तराखंड के जंगलों में खूंखार तेंदुओं की संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा जारी नवीनतम वन्य जीव गणना के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में तेंदुओं की संख्या घटकर 2276 रह गई है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 652 कम है। यह गिरावट चिंताजनक है क्योंकि यह वन्यजीवों और मानवों के बीच संघर्ष की बढ़ती घटनाओं की ओर इशारा करती है।

तेंदुए, जिन्हें स्थानीय स्तर पर गुलदार और कभी-कभी बाघ के रूप में भी जाना जाता है, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में व्यापक रूप से पाए जाते हैं। राज्य के प्रत्येक जिले में औसतन 175 से अधिक तेंदुए विचरण कर रहे हैं। इनमें अल्मोड़ा में 272, पौड़ी में 232, चंपावत में 169, नैनीताल में 134, नरेंद्र नगर में 129, टिहरी में 145, रुद्रप्रयाग में 117 और केदार वन्य क्षेत्र में 138 तेंदुए शामिल हैं।

संघर्ष और खतरें

पिछले कुछ समय से गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले सहित अन्य कई इलाकों में तेंदुए हिंसक हो गए हैं और मानव बस्तियों पर हमले कर रहे हैं। इन हमलों में जान-माल का नुकसान हो रहा है, जो ग्रामीणों और वन विभाग के लिए एक गंभीर समस्या बन गई है।

प्राकृतिक वास और संघर्ष के कारण

वन्य जीव विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड के जंगल तेंदुओं के लिए एक सुरक्षित प्राकृतिक वास स्थल हैं। लेकिन जंगलों के पास बसी बस्तियों में तेंदुओं की गतिविधियां बढ़ने से मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हो रही है। इसके पीछे प्रमुख कारण जंगलों में आग लगना और तेंदुओं के भोजन की कमी है।

अन्य वन्यजीव और संरक्षण प्रयास

गणना में यह भी पता चला है कि उत्तराखंड के जंगलों में 3314 हिमालयन घुरड़, 3915 सांभर, 1005 जंगली सूअर और 325 काला भालू भी पाए जाते हैं। पिछले वर्ष की गणना में 124 स्नो लेपर्ड भी शामिल थे, जिसके लिए सरकार उत्तरकाशी जिले में स्नो लेपर्ड टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए एक अध्ययन केंद्र खोलने की योजना बना रही है।

बाघों का प्रभाव

वेस्टर्न सर्कल के चीफ कंजरवेटर डॉ. विनय भार्गव के अनुसार, जहां बाघ होते हैं, वहां से तेंदुए पलायन कर जाते हैं क्योंकि बाघ अपने क्षेत्र में अन्य किसी का दखल बर्दाश्त नहीं करते हैं। इस विचार का समर्थन वन्यजीव विशेषज्ञ आईएफएस डॉ. पराग मधुकर धकाते भी करते हैं, उनका कहना है कि बाघ अपने क्षेत्र में राज करता है और तेंदुए को डराकर इलाका छोड़ने पर मजबूर कर देता है। यही कारण है कि कॉर्बेट, राजाजी, नंधौर और सीतावनी वन्यजीव रिजर्व में तेंदुओं की संख्या कम हो गई है।

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