कंगना से बदसलूकी और अन्नामलाई के सांकेतिक कत्ल पर अट्टहास, इंदिरा की हत्या और राजीव पर हमला भूल गए क्या कथित बुद्धिजीवी
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कंगना से बदसलूकी और अन्नामलाई के सांकेतिक कत्ल पर अट्टहास, इंदिरा की हत्या और राजीव पर हमला भूल गए क्या कथित बुद्धिजीवी

सबसे बढ़कर असहिष्णुता तो उस वर्ग से दिखाई दे रही है, जिसे कथित रूप से संवेदनशील माना जाता है। और वह वर्ग है लेखकों का एक बड़ा वर्ग, जिसे लोक से जुड़ा हुआ माना जाता है और जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह जनता के पक्ष में होता है।

by सोनाली मिश्रा
Jun 7, 2024, 12:28 pm IST
in विश्लेषण
Leberals against K Annamalai and kangna ranaut
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लोकसभा चुनाव सम्पन्न होते ही अब कथित मोहब्बत की दुकान की हकीकत सामने आने लगी है। जिनमें पिछले दिनों में घटी कुछ घटनाएं सम्मिलित हैं। ये सभी घटनाएं ऐसी हैं, जो बार-बार यह सोचने के लिए बाध्य करेंगी कि आखिर असहिष्णुता होती क्या है? आखिर मोहब्बत की दुकान से कितनी नफ़रतें आ रही हैं। इनमें सबसे ताजी घटना 6 जून की है जब मंडी से सांसद कंगना रनौत को सीआईएसएफ में नियुक्त एक महिला कॉन्स्टेबल ने थप्पड़ मार दिया। और यह कहा कि वह कंगना द्वारा किसान आंदोलन पर दिए गए बयान से आहत थी, क्योंकि उसकी माँ भी वहीं पर बैठी थी।

इस थप्पड़ की जहां हर ओर से निंदा आनी चाहिए थी, वहाँ पर मोहब्बत की दुकान का दावा करने वाली और आतंकवाद में अपने दो-दो प्रधानमंत्री खो चुकी कॉंग्रेस के एक बड़े वर्ग से अगर मगर के रूप में प्रतिक्रिया आई और यह कहा गया कि थप्पड़ की निंदा मगर उस महिला का पक्ष सुना जाना चाहिए। फिर तो हर कातिल का पक्ष होता है। फिर तो इंदिरा गांधी की हत्या करने वालों का भी पक्ष देखा जाना चाहिए था, फिर तो राजीव गांधी की हत्या करने वालों का भी पक्ष देखा जाना चाहिए था। ऐसा क्यों है कि जिन प्रधानमंत्रियों की हत्याओं का राजनीतिक लाभ कॉंग्रेस उठाना चाहती है, उन्हीं प्रधानमंत्रियों के बलिदानों का इस प्रकार उपहास कर रही है। क्योंकि एक छोटी घटना ही बड़ी दुर्घटना का कारण बनती है। यदि यह थप्पड़ सही है तो फिर राजीव गांधी को श्रीलंका में असन्तुष्ट सिपाही द्वारा धक्का दिया जाना भी सही होगा?

क्या मोहब्बत की दुकान का ठेका लेकर बैठने वाले लोग उन लोगों के प्रति घृणा और हिंसा से भरे हैं, जिन्होनें एक बार फिर उन्हें सत्ता से दूर कर दिया है? इसी प्रकार दूसरी घटना है और वह और भी अधिक भयानक है। यह घटना है, तमिलनाडु से भाजपा नेता अन्नामलाई की सांकेतिक हत्या।

अन्नामलाई के हारने के बाद मोहब्बत की दुकान के साथियों ने एक बकरे के बच्चे पर अन्नामलाई की तस्वीर लगाई और फिर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उस घृणा की कोई कल्पना ही नहीं कर सकता है जो ऐसा करने वालों ने दिखाई।

इसे भी पढे़ं: BSP चीफ मायावती ने मुस्लिमों को टिकट देने पर कही, KRK ने की जातीय टिप्पणी, कहा-घर बैठकर CM बनने का सपना देखो

यही वह मोहब्बत की दुकान है, जिसका दावा राहुल गांधी बार-बार करते आए हैं। यही वह मोहब्बत है, जो राहुल गांधी देना चाहते हैं। यही वह मोहब्बत है, जिसे राहुल गांधी बांटना चाहते हैं। इसी हरकत से पता चलता है कि आखिर ये अपने राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों के साथ क्या करना चाहते हैं। यही असली असहिष्णुता होती है। यही वह असहिष्णुता और बर्बरता है जो लगातार भारत का पक्ष रखने वाले या कहें भारतीय पहचान को धारण करने वाले लोगों के साथ होती आई है। आज भी भारत की पहचान वाला वर्ग उस खतरे से मुक्त नहीं है, जो भारत की पहचान को नष्ट करना चाहता है। इस बार यह प्रयास मोहब्बत की दुकान के नाम पर हुआ है।

सबसे बढ़कर असहिष्णुता तो उस वर्ग से दिखाई दे रही है, जिसे कथित रूप से संवेदनशील माना जाता है। और वह वर्ग है लेखकों का एक बड़ा वर्ग, जिसे लोक से जुड़ा हुआ माना जाता है और जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह जनता के पक्ष में होता है। जनता के पक्ष में होना और राजनीतिक विपक्ष के पक्ष में होने में जमीन आसमान का अंतर है। मगर भारत में कथित प्रगतिशील लेखकों का एक बहुत बड़ा वर्ग भारतीय जनता पार्टी की सरकार के गिरने की प्रतीक्षा कर रहा था और साथ ही वह कॉंग्रेस के युवराज, सपा के अखिलेश आदि के पक्ष में लगातार मुखर था। हालांकि वह वर्ग ऐसा है जो नरेंद्र मोदी की सरकार गिराने के लिए तालिबान तक का समर्थन कर सकता है।

वही वर्ग पहले तो इंडी गठबंधन की बढ़ी हुई सीटों का जश्न मनाते हुए नजर आया कि यह फासीवादी सरकार जा रही है, परंतु उनके दुख का कोई पारावार नहीं रहा जब अगले ही दिन उन्हें यह पता चल गया कि अंतत: प्रधानमंत्री तो मोदी ही बन रहे हैं। उसके बाद नीतीश कुमार के प्रति अविश्वसनीयता फैलाने का असफल प्रयास किया गया और फिर मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को कोसा जाने लगा, गद्दार जैसी उपाधियाँ दी गईं, (हालांकि गद्दार जैसी पोस्ट्स डिलीट कर दी गईं), और फिर उन महिलाओं को पितृसत्ता की गुलाम कहकर कोसा जाने लगा जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था।

दरअसल वह वर्ग अभी तक सदमे में है कि आखिर इतने दुष्प्रचारों के बाद भी एनडीए की सरकार कैसे बन रही है? यही वह वर्ग है जो कथित रूप से दस सालों से कथित फासीवाद से लड़ रहा था, हाँ, इस फासीवाद से लड़ते हुए भी वह इसी फासीवादी सरकार से फेलोशिप ले रहा था, सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में कविताएं करने के लिए जा रहा था, क्योंकि इससे पैसे मिलते हैं, इसी फासीवादी सरकार के विभिन्न विभागों में हिन्दी पखवाड़े में होने वाले आयोजनों में अपनी किताबें बेच रहा था, किताबों में अपनी रचनाओं के लगने की बातें कर रहा था, एवं सबसे बढ़कर मध्यप्रदेश में भोपाल में “भारत भवन” में एकतरफा दुष्प्रचार भी करता आ रहा था।

इसे भी पढ़ें: Uttarakhand: कपड़े की दुकान पर काम करने वाली हिन्दू लड़की पर गंदी नीयत रखता था वसीम अहमद, ऑडियो वायरल

मध्यप्रदेश में भोपाल में “भारत भवन” में हर वर्ष आयोजित होने वाले आयोजनों में अभी भी उसी वर्ग के लेखकों का दबदबा है, जो वाम विचारधारा का होने में गर्व का अनुभव करते हैं एवं भारतीय लोक को लगातार अपमानित करते हैं।

वह वर्ग जो राष्ट्रवादी विचारों को अपने मंचों में स्थान नहीं देता है, और लगातार चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा विरोध की बातें करता रहा, जब वह इस तथ्य को स्वीकार ही न कर पाए, कि वह जिसे हटाने के लिए लगातार हर मामले पर दुष्प्रचार करता आया, फिर चाहे वह किसान आंदोलन हो, या फिर शाहीन बाग, या फिर रोहित वेमुला का मामला, और भाजपा को वोट देने वाले लोगों को कोसता रहे, वही असली असहिष्णुता है।

यह बड़ा वर्ग मोहब्बत की दुकान चलाने वाले युवराज को अपना स्वाभाविक नेतृत्व मानता है और तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव आदि को भी महत्वपूर्ण बताता है। कथित संवेदनशील वर्ग भी जब इस तथ्य को स्वीकार न कर पाए और भाजपा को मत देने वालों को लगातार कोसे तो ऐसे में प्रश्न उठता है कि असली असहिष्णुता क्या है और मोहब्बत की दुकान के प्रेमी आखिर दूसरों की विजय स्वीकार क्यों नहीं कर पा रहे हैं? इन तमाम घटनाओं से यह प्रश्न तो उभर कर आता ही है कि आखिर मोहब्बत की दुकान का दावा करने वालों में इतनी असहिष्णुता क्यों है?

Topics: कंगना रनौतKangana RanautTamil Naduअसहिष्णुता’के. अन्नामलाईk annamalaiकंगना रनौत के साथ मारपीटintoleranceKangana Ranaut assaultedतमिलनाडु
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