गत 28 मई को नई दिल्ली में एक पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा, ‘‘अक्तूबर, 1962 में चीन ने कथित तौर पर भारत पर आक्रमण किया था।’’ पूरी दुनिया जानती है कि 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया था। इसके बावजूद मणिशंकर चीनी आक्रमण से पहले ‘कथित’ शब्द लगा रहे हैं। जब भाजपा ने उनके इस बयान का विरोध किया तब उन्हें शायद अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने इसके लिए माफी मांग ली। चुनाव के समय मणिशंकर का यह बयान कांग्रेस के लिए महंगा पड़ सकता है। इसको देखते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि मणिशंकर के बयान से कांग्रेस का लेना-देना नहीं है।
इससे पहले भी इन्हीं मणिशंकर ने कहा था, ‘‘पाकिस्तान के पास परमाणु बम है। इसलिए भारत को उससे बात करनी चाहिए। उसे इज्जत देनी चाहिए, क्योंकि कोई सिरफिरा आया तो हम पर इसका इस्तेमाल कर सकता है।’’ इस बयान के लिए भी मणिशंकर की खूब खिंचाई हुई थी। यह देखा जाता है कि जब भी कोई कांग्रेसी ऐसे बेतुके और भारत विरोधी बयान देते हैं, तब कांग्रेस की ओर से एक रस्मी बयान जारी कर कहा जाता है कि उक्त बयान से कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं है। अब प्रश्न यह है कि बार-बार कांग्रेस के नेता ऐसी गलती क्यों कर रहे हैं?
संघ को बदनाम करने का प्रयास
कुछ समय पहले राहुल गांधी ने ब्रिटेन में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना चरमपंथी संगठन ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ से की थी। क्या राहुल को पता नहीं है कि मुस्लिम ब्रदरहुड कितना विवादास्पद रहा है? उसका आतंक मिस्र, सूडान, सीरिया, फिलिस्तीन आदि देशोें में है। यही नहीं, मुस्लिम ब्रदरहुड पर सऊदी अरब, यूएई और कई अन्य मुस्लिम देशों में प्रतिबंध है। वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या कर रहा है, यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद राहुल इसकी तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर रहे हैं। इससे उनकी समझ का स्तर पता चलता है।
ऐसी भी बात नहीं है कि केवल राहुल ही संघ को बदनाम कर रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस का इतिहास ही संघ विचार परिवार को बदनाम करने का रहा है। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, डॉ. मनमोहन सिंह जैसे नेता संघ को नकारात्मक नजरिए से देखते रहे हैं और उसकी बुराई भी करते रहे हैं। यानी राहुल गांधी अपने पूर्वजों की परंपरा को ही आगे बढ़ा रहे हैं। संघ को बदनाम करने के लिए कांग्रेस और विपक्ष के नेता यह भी कहते रहे हैं कि संघ आरक्षण विरोधी है, जबकि संघ ने आरक्षण का विरोध कभी नहीं किया है। संघ का मानना है कि जब तक समाज में असमानता है, आरक्षण की व्यवस्था बनी रहनी चाहिए।
जम्मू-कश्मीर और कांग्रेस
राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर को ‘तथाकथित हिंसक जगह’ भी कहते हैं। हालांकि कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो यह कहा जा सकता है कि अब वहां की स्थिति एकदम बदल गई है। पहले कश्मीर घाटी में तिरंगा तक नहीं फहराया जा सकता था। अब वहां घर-घर तिरंगा अभियान चल रहा है। शायद राहुल यह भूल गए हैं कि कश्मीर घाटी में पहले जो स्थिति थी, उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार रही है। कांग्रेस की नीतियों के कारण ही जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पनपा और घाटी से हिंदुओं को पलायन करना पड़ा। पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) और अक्साईचिन की समस्या कांग्रेस की ही देन है। अनुच्छेद 370, जिसे भाजपा सरकार ने हटा दिया है, के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार रही है।
चीन का ‘दोस्त’
राहुल गांधी उस चीन को भी ‘शांति का पक्षधर’ बताते हैं, जिसने भारत के एक बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है। उल्लेखनीय है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत की 38,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है। इसके बाद 1963 में पाकिस्तान ने पीओजेके के 5,180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भी चीन को अवैध रूप से दे दिया है। यानी कुल मिलाकर 43,180 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीन का कब्जा है। यह भी तथ्य है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने चीन के पक्ष में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पर भारत का दावा छोड़ दिया। यह भी एक तथ्य है कि राहुल गांधी ने एक गुप्त समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें राजीव गांधी फाउंडेशन ने चीनी दूतावास से धन स्वीकार किया और चीनी कंपनियों के लिए बाजार पहुंच की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट प्रकाशित की। उसी के आधार पर सोनिया-मनमोहन सरकार ने चीनी सामान के लिए भारतीय बाजार खोल दिया। इससे भारतीय बाजार और छोटे व्यापारियों को भारी नुकसान अभी भी हो रहा है।
सर्वाधिक संविधान संशोधन
ऐसे ही कांग्रेस और अन्य विपक्षी नेता कह रहे हैं कि यदि नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे तो वे संविधान बदल देंगे। लेकिन देखा जाए तो संविधान के साथ सबसे ज्यादा खिलवाड़ कांग्रेस की सरकारों ने किया है। इसलिए चुनावी सभाओं में नरेंद्र मोदी ने अनेक बार कहा भी कि संविधान के साथ धोखा इस परिवार (गांधी परिवार) ने किया है। संविधान बनने के बाद सबसे पहले पंडित नेहरू ने संविधान संशोधन किया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित किया। फिर उनकी बेटी इंदिरा गांधी आईं। उन्होंने आपातकाल लगाकर लोकतंत्र का गला घोंट दिया था। फिर उनके बेटे राजीव गांधी आए। उन्होंने मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। राहुल भी कम नहीं हैं। संप्रग सरकार के समय उन्होंने प्रेस वार्ता कर मंत्रिमंडल के निर्णय से संबंधित कागजातों को फाड़ दिया था। क्या राहुल का यह आचरण संविधान विरोधी नहीं था? इसके बावजूद उस समय न तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कुछ बोल पाए थे और न ही सोनिया गांधी ने राहुल को समझाने का प्रयास किया।
केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि वे (कांग्रेसी) भाजपा पर संविधान बदलने का आरोप लगाते हैं, लेकिन सत्य यह है कि कांग्रेस के शासनकाल में ही संविधान में 85 संशोधन किए गए। उन्होंने लोकतंत्र का गला घोंट कर आपातकाल की घोषणा कर दी। इसके साथ ही विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल दिया गया। राजनाथ सिंह आगे कहते हैं, ‘‘यह एक बड़ी सचाई है कि भारत के संविधान की प्रस्तावना संविधान के सिद्धांतों को प्रस्तुत करती है, लेकिन 1976 में 42वें संशोधन के द्वारा भारत के परिचय को ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ से ‘संप्रभु समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ में बदल दिया गया। संविधान सभा ने महीनों तक प्रस्तावना पर चर्चा की। यह संविधान की आत्मा है, लेकिन उन्होंने इसे भी बदल दिया। वास्तव में कांग्रेस को अपने इन कृत्यों के लिए जनता के सामने खेद व्यक्त करना चाहिए। संविधान में समय-समय पर बदलाव हो सकते हैं, लेकिन प्रस्तावना में नहीं। आपने मौलिक अधिकारों का गला घोंट दिया और उन्हें निलंबित कर दिया।’’
कांग्रेस ने लोकतंत्र को कुचलने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसके बावजूद उसके नेता बड़ी बेशर्मी के साथ कहते हैं कि भाजपा संविधान को बदल देगी। खैर, आज भारत के लोग इतने जागरूक और समझदार हैं कि वे जानते हैं कि कौन पार्टी क्या कर सकती है और क्या नहीं कर सकती है।
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