भारत में लोकसभा की मतदान प्रक्रिया संपन्न हो गयी है और शीघ्र ही हमें एक नयी सरकार मिलने वाली है। इस नयी सरकार की योजना पर पूर्वोत्तर का आने वाला कल निर्भर होने वाला है। पूर्वोत्तर भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित एक भूखंड है,जिसका संदर्भ रामायण, महाभारत, वृहत संहिता आदि में पाया जाता है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्वोत्तर की समृद्धि अपार है,पर स्वतन्त्रता के बाद से ही पूर्वोत्तर को राजनीतिक दृष्टि से उदासीनता ही मिली । हर्ष की बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार की दृष्टि इस क्षेत्र पर पड़ी और सरकार द्वारा पूर्वोत्तर को लेकर ली गयी नीतियों से इस क्षेत्र में बदलाव आना शुरू हुआ और यह बदलाव अभी तेज पड़ने लगा है।
असम,अरुणाचल,मेघालय, मिजोराम, त्रिपुरा, मणिपुर,नागालैंड और सिक्किम- इन आठ राज्यों से बनी मनोरम प्राकृतिक परिवेश और विविध संप्रदायों और भाषा-भाषाई लोगों की यह मिलनभूमि दुर्गम इलाकों से भरा हुआ है। पहाड़ों,पर्वतों,नदियों,झरनों, समभूमियों, मालभूमियों की विविधता से सम्पन्न है यह क्षेत्र। इन इलाकों में भू-स्खलन और अन्य आपदाओं के साथ बाढ़ आदि के दौरान खासतौर पर मानसून में काफी दिक्कतें आती हैं। इस जटिल भौगोलिक स्थिति के कारण इस क्षेत्र के लोगों के साथ इनकी भाषा,संस्कृति सभी एक ही जगह स्थिर से रहने को विवश होती हैं। उनके लिए दूर दराज का रास्ता तय कर पाना चुनौती से भरा होता है। इसीलिए यहाँ मानो कोस-कोस पर अलग-अलग भाषाओं का विकास हुआ है। बहुत समय पहले से ही यातायत की असुविधा पूर्वोत्तर की एक बड़ी समस्या रही है। पूर्वोत्तर के राज्य मुख्यतः सड़क परिवहन पर निर्भर थीं और ये सड़कें मुख्यतः कच्ची थीं। पिछले वर्षों में यातायात की सुविधा के लिए अच्छी संख्या में सड़कों का निर्माण किया गया है। अब भी बहुत सारी सड़कों के निर्माण की आवश्यकता है,जिन पर भारी वाहन चलाया जा सकें। अब भौगोलिक परिवेश को चुनौती देकर जगह-जगह रेल यातायत की व्यवस्था भी की जा रही है। रेल सेवा को पूर्वोत्तर के कोने-कोने तक ले जाने का समय आ गया है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मपुत्र,बुढ़ीदिहिंग,शोवनशिरी,बराक,दिहिङ, कलङ,गंगाधर, कपिलि,बेकी आदि इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां हैं।ये नदियाँ माल ढुलाई में पर्याप्त सहायक हुई हैं,इनसे जल परिवहन की व्यवस्था को मजबूती दी जा सकती है।
पूर्वोत्तर के कामाख्या,माजुली,उमानंद, दार्जिलिंग, गंगटोक, शिलांग,मौसिनराम, चेरापुंजी, लोकताक, कङला, त्रिपुरेश्वरी मंदिर,उनाकोटी जैसे विश्वविख्यात पर्यटन स्थल और काजीरंगा तथा मानस जैसे राष्ट्रीय अभयारण्य भी हैं। गुवाहाटी, जोरहाट, शिवसागर, जातिंगा, हाफलंग, ओरांग, बोमडिला, तवांग जैसे इलाके पर्यटकों की खास पसन्द भी हैं। यही नहीं जगह-जगह यहाँ पर्यटन स्थलों की भरमार तो है ही, वन्य जन्तु तथा समृद्ध हस्तशिल्प भी यहाँ देश-दुनिया को अपनी ओर खींचते हैं । पर्यटन स्थलों के विकास के द्वारा पूर्वोत्तर को भारत के पर्यटन केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा दिलानी है।
पिछले कई दशकों से यह क्षेत्र अलगाववाद की आग में झुलस रहा था,जिसकी तीव्रता पिछले कुछ वर्षों में बहुत कम हो गयी है। अब भी कहीं-कहीं फुटकल ऐसी घटना घटती हैं, जिनका संबंध हमारे देश की सीमा के उस पार से देखा गया है। पूर्वोत्तर चीन,बांग्लादेश, म्यांमार,भूटान,नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा सांझा करता है। बहुत जगहों पर इन देशों के साथ भारत की सीमाएँ खुली हुई हैं। अवैध हथियार,ड्रग्स का व्यापार आदि ज्वलंत मुद्दे सीमा पार से ही नियंत्रित होते हैं। उन्मुक्त सीमा से विदेशी लोग अवैध तरीके से भारत आया-जाया करते हैं,जो पूर्वोत्तर में सांप्रदायिक संघर्ष संघटित करते हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए अति शीघ्र अंतरराष्ट्रीय सीमा के सील करने की आवश्यकता होगी।
पूर्वोत्तर क्षेत्र के 8 राज्यों में 150 से भी अधिक भाषाएँ प्रचलित हैं। इन भाषाओं का स्वरूप अलग-अलग है,एक समुदाय दूसरे समुदाय की भाषा समझ सकने में असमर्थ है। इसी कारण यहाँ संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी की आवश्यकता अधिक है,पर विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन की सुविधा बहुत कम है। अतः शिक्षानुष्ठानों में हिन्दी के पढ़ने और पढ़ाने की आवश्यकता है।
प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर इन राज्यों में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सम्पन्नता भी खूब है। पूर्वोत्तर भारत के विविधमुखी साहित्य और बहुरंगी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण एवं संवर्द्धन की व्यवस्था किया जाना चाहिए। आने वाली सरकार से पूर्वोत्तर के निवासियों की यही अपेक्षा रहेगी कि पूर्वोत्तर विकास की जिस धारा से अग्रसर हो रहा है, उसमें तेजी आयें। हर एक क्षेत्र में विकास के प्रकाश का फैलाव हों, यह प्रकाश जिन क्षेत्रों में पड़ा है वहाँ और अधिक प्रकाशित करें और संभावना की नयी दिशाओं में यह प्रकाश फैलता जाएँ।
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