विश्व मानव के उद्धार के लिए इतिहास में कभी-कभी कोई अवतारी चेतना एक साथ बहुआयामी रूपों में प्रकट होती है। अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक/संरक्षक और युग निर्माण योजना और विचार क्रांति अभियान के सूत्रधार पं. श्रीराम शर्मा आचार्य भारत की महान संत परम्परा की ऐसी दिव्य विभूति हैं जिन्होंने बीसवीं सदी में हिन्दूधर्म के सर्वोच्च वैदिक मंत्र (गायत्री महामंत्र) के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन की दिशाधारा बदलने का अद्भुत महापुरुषार्थ किया था। बीती सदी के इस महानतम गायत्री साधक का समूचा जीवन भारत के सांस्कृतिक पुनरोत्थान को समर्पित रहा।
“वयं राष्ट्रे जाग्रयाम पुरोहित:” के उद्घोषक इस सच्चे राष्ट्रसंत के जीवन का बारीकी से अवलोकन करने पर आदर्शों पर चलने वाले सच्चे कर्मनिष्ठ ब्रह्मण व लोकमंगल की कामना में सतत संलग्न एक अनुकरणीय पारदर्शी व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं; जिन्होंने अपने जीवन से “साधना से सिद्धि” का सूत्र सार्थक कर दिखाया। बीती शताब्दी की घोर विषम परिस्थितियों में “इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य” और “हम बदलेंगे-युग बदलेगा” जैसे उद्घोष करने का साहस आचार्यश्री जैसा कोई गायत्री महाविद्या का सिद्ध तपस्वी ही कर सकता था। ज्ञात हो कि आचार्यश्री ने गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के रूप में सुगढ़ मानवों को गढ़ने की जो टकसाल स्थापित की थी; आज वह 16 करोड़ की सदस्य संख्या वाले विशाल वट वृक्ष में रूपान्तरित हो चुका है।
‘गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु है’ को जीवनमंत्र बनाया
उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के आँवलखेड़ा गाँव के एक संपन्न जमींदार ब्राह्मण परिवार में विक्रमी संवत् १९६७ (20 सितम्बर1911) को आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को जन्मे बालक श्रीराम के पिता पंडित रूप किशोर शर्मा आगरा मंडल के सुप्रसिद्ध भागवत कथाकार थे। उन्होंने पुत्र श्रीराम को पंडित मदनमोहन मालवीय से काशी में गायत्री मंत्र की दीक्षा दिलायी थी। उस छह वर्षीय बालक ने दीक्षा के समय मालवीय जी द्वारा बोले गये एक वाक्य ‘गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु है’ को जीवनभर के लिए गांठ बांध लिया और यही गायत्री मंत्र उनकी समूची जीवन साधना का आधार बना रहा। आचार्य श्री ने अपनी आत्मकथा में लिखा है,‘15 वर्ष की आयु में ब्रह्मबेला में घर के पूजा कक्ष में गायत्री मंत्र की साधना करते समय उनके विगत कई जन्मों के हिमालयवासी गुरु ने उनको दर्शन देकर उनके भावी जीवन की दिशाधारा निर्धारित कर दी और उन्होंने बिना किसी दुविधा व संकोच के अपनी मार्गदर्शक सत्ता के सारे आदेश-निर्देश सहर्ष स्वीकार कर लिये। गुरु आज्ञा से कठोर आहार संयम ( 24 वर्षों तक 24 घंटे में सिर्फ एक बार जौ की एक रोटी और एक गिलास गाय के छाछ का आस्वाद आहार) के साथ 24 वर्षों में गायत्री महामंत्र के 24 लाख के 24 महापुरश्चरण का महाअनुष्ठान पूर्ण कर वे वेदमाता गायत्री के वरद पुत्र बन गये। महायोगी देवरहा बाबा का कहना था कि जैसे श्री रामकृष्ण परमहंस को माँ काली सहज सुलभ थीं, वैसे ही पंडित श्री रामशर्मा आचार्य को माँ गायत्री की कृपा सहज प्राप्त थी।
समूचा वैदिक ज्ञान बीज रूप में गायत्री मन्त्र में समाहित
2 जून1990 को गायत्री जयंती के पावन दिन अपनी 80 वर्ष की उद्देश्यपूर्ण लौकिक जीवनयात्रा पूर्ण कर अपनी आराध्य सत्ता माँ गायत्री में विलीन हो जाने वाले इस युगदृष्टा महामनीषी की प्रत्येक श्वास गायत्रीमय थी। समिधा की तरह सतत तिल तिल जलकर अपना समूचा जीवन राष्ट्र के सांस्कृतिक पुनरोत्थान में समर्पित कर देने वाले माँ गायत्री के इस साधक का कहना था कि गायत्री महामन्त्र भारत के समूचे वैदिक तत्त्वज्ञान एवं अध्यात्म विद्या का मूल आधार है जिस तरह वट वृक्ष की समस्त विशालता उसके नन्हे से बीज में सन्निहित रहती है, ठीक वैसे ही वेदों में जिस अविच्छिन्न ज्ञान-विज्ञान का विशद वर्णन किया है, वह सब कुछ बीज रूप में गायत्री मन्त्र में समाहित है। देवता, ऋषि, मनीषी व तपस्वियों ने इसी महामंत्र के आधार पर महान सिद्धियां एवं विभूतियां हासिल की हैं। गायत्री वह शक्ति है जो सभी जीवधारियों के भीतर प्राण तत्व के रूप में विद्यमान है। संस्कृत में ‘गय ‘ कहते हैं प्राण को और प्राण का त्राण करने वाली शक्ति गायत्री कहलाती है। जो मनुष्य इस शक्ति के उपयोग का विधान व विज्ञान ठीक से जान व समझ लेता है, वह उससे ठीक वैसा ही लाभ सकता है जैसा कि भौतिक विज्ञानी अपनी प्रयोगशालाओं, मशीनों तथा कारखानों के माध्यम से उठाते हैं। गायत्री महाशक्ति की तात्विक विवेचना करते हुए आचार्यश्री ने लिखा है कि हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश नामक जिन पांच तत्वों से बना है; संसार के सभी प्राणी भी इन्हीं पांच तत्वों से बने हैं।
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रणेता
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रणेता के रूप में विख्यात इस अप्रतिम राष्ट्रसंत ने धर्म को रूढ़ियों व आडम्बरों के संजाल से मुक्त कर उसका सहज, सरल और वैज्ञानिक स्वरूप जनसामान्य के सामने रखा। गायत्री महामंत्र जिसका वाचन तत्कालीन परिस्थितियों में सिर्फ वैदिक ब्राह्मणों तक सीमित था। खासतौर पर स्त्रियों के लिए जो वेदमंत्र पूरी तरह वर्जित माना जाता था; इस महामनीषी ने अपनी प्रचंड तपश्चर्या के बल पर उसे सर्वसुलभ कर दिया। ज्ञात हो कि गायत्री महामंत्र की साधना को जाति, धर्म, लिंग, भेद से परे सबके लिए सुलभ बनाने वाले इस असंभव कार्य को संभव करने के कारण तद्युगीन भारत के समूचे संत समाज ने एक स्वर ने उन्हें ‘लाइट ऑफ एशिया’ की उपाधि से अलंकृत किया था। आचार्यश्री ने भारतीय जनजीवन में आध्यात्मिक नवजागरण का जो महापुरुषार्थ किया, उसके लिए समूची मानव जाति सदैव इस विलक्षण राष्ट्र संत की सदैव ऋणी रहेगी।
3200 पुस्तकों के सृजेता अद्वितीय लेखक
समय की मांग के अनुरूप जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अभिनव, प्रेरणा व संवेदना जगाती 3200 पुस्तकों का सृजन उनकी अद्वितीय लेखकीय क्षमता का द्योतक है। मानवी चेतना में सुसंस्कारिता संवर्धन, अध्यात्म व विज्ञान के समन्वय, पर्यावरण व लौकिक जीवन का शायद कोई ऐसा पक्ष हो जो इस युग व्यास की लेखनी से अछूता रहा हो। इस साहित्य में संवेदना का स्पर्श इस बारीकी से हुआ है कि लगता है लेखनी को उसी की स्याही में डुबाकर लिखा गया हो। हर शब्द ऐसा जो हृदय को छूता, मनो व विचारों को बदलता चला जाता है। देशभर में 2400 गायत्री शक्तिपीठों, 40,000 प्रज्ञा मण्डलों और सैकड़ों महिला मण्डलों की स्थापना करने वाले आचार्यश्री ने देश-विदेश में जिस नैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक आन्दोलन का सूत्रपात किया था, उसकी वर्तमान उपलब्धियां अपने आप में बेमिसाल कही जा सकती हैं। इसी तरह भारत के घर घर में गायत्री व यज्ञ को घर-घर में स्थापित करने का श्रेय भी आचार्यश्री को जाता है। धर्मतंत्र से लोक शिक्षण, ग्राम-तीर्थों की स्थापना, भेदभाव रहित धार्मिक आयोजन, लोकसेवियों को प्रशिक्षण, बाल संस्कारशालाओं द्वारा बच्चों में सुसंस्कारिता का बीजारोपण, लोक संस्कृति का पुनर्जीवन, कुटीर उद्योगों का रोजगारपरक प्रशिक्षण, पर्यावरण संरक्षण के लिए यज्ञ विज्ञान की विज्ञान सम्मत स्थापना जैसे अनेकानेक जनकल्याणकारी योजनाओं के द्वारा अखिल विश्व गायत्री परिवार आज जिस तरह सेवापथ पर निरंतर गतिमान है, उसके मूल में मिशन के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य की दिव्य प्रेरणाएं ही हैं।
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