इजरायल हमास से युद्ध लड़ रहा है और यह बात सभी को पता है कि यह युद्ध वह किसलिए लड़ रहा है। अभी भी 7 अक्टूबर 2023 को वहाँ पर हमास द्वारा कराए गए हमले के परिणामस्वरूप उसके कई लोग हमास के पास बंधक हैं। इन बंधकों में छोटे या कहें नवजात भी शामिल हैं।
7 अक्टूबर 2023 को पूरी दुनिया ने इजरायल पर हुए हमलों का सीधा प्रसारण देखा था। यह भी लोगों ने देखा था कि कैसे लड़कियों को अगवा कर लिया गया था और कैसे उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, कैसे नन्हें बच्चों तक को मार डाला था, और वह भी तड़पा-तड़पा कर। मगर ऐसा क्यों है कि उसे क्रांतिकारी कदम बताया गया और यह कहा गया कि वह अन्याय का विरोध है, और किसी भी सेलेब्रिटी ने इस हमले का विरोध नहीं किया था। यहाँ तक कि एक भारतीय टीवी अभिनेत्री मधुरा नाईक की कज़िन और उसके पति की हत्या इसी हमले में हमास के आतंकियों द्वारा उनके बच्चों की आँखों के सामने कर दी गई थी और जब उन्होनें इस बात को कहा था कि जब उन्होनें यह बताया था कि कैसे उनकी बहन और उसके पति का कत्ल हुआ था, तो उन्हें काफी ट्रोल किया गया था। वे घृणा से भरी ट्रोलिंग का शिकार हुई थीं। और उनके साथ न ही टीवी और न ही बॉलीवुड की कोई हस्ती दर्द बांटने के लिए आगे आई थी।
और अब जब इजरायल अपने बंधकों को छुड़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है और हमास के आतंकियों पर हमले कर रहा है और उसी क्रम में राफ़ा पर हमला किया तो बॉलीवुड की कई हस्तियों ने अचानक से ही एक तस्वीर अपनी-अपनी इंस्टाग्राम प्रोफ़ाइल पर साझा करनी शुरू दी। इसमें लिखा गया था कि “all eyes on Rafah”
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उस अभिनेत्री नुसरत भरूचा ने भी यह स्टोरी अपनी प्रोफ़ाइल पर लगाई, जिनकी जान उसी हमले में इजरायल सरकार और भारत सरकार के विशेष प्रयासों से बची थी। नुसरत भरूचा अपनी फिल्म के स्पेशल स्क्रीनिंग के लिए वहाँ पहुंची थीं और जब वे वहाँ से वापस आने ही वाली थीं, तभी यह हमला हो गया था और फिर उन्हें विशेष शेल्टर में ले जाया गया था।
उन्होनें भारत और इजरायल सरकार का विशेष आभार व्यक्त किया था और नुसरत भरूचा ने उसी हमास के पक्ष में प्रोपोगैंडा करते हुए यह पोस्ट लिखा।
यह बहुत ही विडंबना है कि नुसरत ने एक बार भी इजरायल के उन बच्चों के लिए नहीं लिखा होगा, जो इस हिंसा का शिकार हुए थे। यह भी दुर्भाग्य है कि बॉलीवुड की जो भी हस्तियाँ राफ़ा के लिए अपनी संवेदना लगातार व्यक्त कर रही हैं, वे भी 7 अक्टूबर 2023 को कुछ नहीं बोली थीं। यदि राफ़ा में निर्दोष नागरिक मारे गए, तो 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल में जो लोग मारे गए, वे कौन थे? जो बच्चे इजरायल में हिंसा का शिकार हुए, वे कौन थे? क्या वे निर्दोष नागरिक नहीं थे?
आज जो लोग कह रहे हैं कि हर जान मायने रखती है, वे ईरान सरकार द्वारा निर्दोष महिलाओं के उस कत्लेआम पर चुप्पी क्यों साध जाते हैं, जो केवल इस कारण अपनी जान गंवा रही हैं, कि उन्हें अनिवार्य हिजाब नहीं पहनना। उनके लिए उस किशोरी की जान क्यों नहीं मायने रखती है जिसे ईरान में मेट्रो में इस कदर पीटा जाता है कि वह कोमा में चली जाती है। और क्यों महसा अमीन की मृत्यु के बाद उपजी पीड़ा के आंदोलन का हिस्सा बनने से इनकार कर देती हैं? क्या इन निर्दोष लड़कियों की जान की कोई कीमत नहीं है?
इन्हें यह भी जानकारी नहीं है कि यदि राफा पर हमला हुआ है तो उसके पीछे हमास ही है। यह कल्पना ही की जा सकती है कि राफा तक जिनकी नजर पहुँच गई, उनकी नजर अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की महिलाओं पर लगातार होते हमलों पर नहीं गई? कैसे धीरे-धीरे परत-दर-परत उनकी आजादी को खत्म किया गया, कैसे वहाँ पर नन्हीं लड़कियों की शादी कर दी जा रही है, कैसे वहाँ पर लड़कियों का स्कूल जाना बंद है, कैसे वहा पर महिलाओं का अकेले पार्क जाना, अकेले रेस्टोरेंट जाना या बिना काम के बाजार जाना बंद है, कैसे उन्हें एक काले बुर्के मे कैद कर दिया गया है और कैसे खराब हिजाब के नाम पर उन्हें जेल भेजा जा रहा है? अफगानिस्तान की दूरी राफ़ा से तो कम होगी ही।
यदि फिल्मी हस्तियों को केवल मुस्लिम बच्चों या लड़कियों की ही चिंता है तो उनकी नजर अपने बगल के देश पाकिस्तान में क्यों नहीं जाती है, जहां पर लड़कियों की अभी भी बचपन में शादी की जा रही है। जहाँ अभी भी महिलाओं की हत्या इज्जत के नाम पर हो जाती है। पाकिस्तान सहित भारत में भी मदरसों में हो रहे यौन शोषण पर इन फिल्मी हस्तियों की दृष्टि क्यों नहीं जाती है?
और ये नजर यूरोप की उन हजारों बच्चियों तक भी नहीं पहुँचती है, जो पाकिस्तानी मूल के ग्रूमिंग गैंग का शिकार हो रही हैं।
ये समस्त घटनाएं विदेशों की हैं। परंतु ये सभी फिल्मी हस्तियाँ भारत की लड़कियों के लिए भी आवाज नहीं उठती हैं। हिंदुओं से इनकी घृणा समझ में आती है, क्योंकि फिल्म उद्योग हिन्दू घृणा या फिर हिन्दू भावनाओं के दोहन पर ही आधारित है, इसलिए धंधे से समझौता करना कहाँ की समझदारी है। मगर एक बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि इनकी नजर उन मुस्लिम लड़कियों तक भी नहीं जाती है, जो मुस्लिम समुदाय की कट्टर और पिछड़ी सोच का शिकार हो रही हैं।
इनकी नजर राफ़ा तक पहुँचती है, परंतु इनकी नजर कश्मीर की किसी अमरीन बट की हत्या तक नहीं पहुँचती है, जिसकी हत्या पाकिस्तान के इस्लामी आतंकवादियों ने कर दी थी। अमरीन एक अभिनेत्री थीं, और संभवतया उन सभी अभिनेत्रियों को पसंद करती होंगी, जो मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में काम करती हैं। मगर अमरीन की हत्या पर एक भी आवाज नहीं आई थी। इनकी नजर अमरीन की बंदूकों से छलनी लाश तक क्यों नहीं पहुंची थी?
इनकी नजर तेलंगाना की उस अशरीन के आंसुओं पर भी नहीं जाती हैं, जिसे उसके घरवालों ने केवल इसलिए विधवा कर दिया था, क्योंकि उसने एक हिन्दू और दलित लड़के से शादी कर ली थी। मुंबई मे भी एक दम्पत्ति की हत्या केवल इसलिए हो गई थी क्योंकि रईसुद्दीन खान अपनी बेटी द्वारा हिन्दू लड़के से की गई शादी से सहमत नहीं था।
इतना ही नहीं ये नजर भारत के ही कई शहरों जैसे मुजफ्फरनगर की शहनुमा तक नहीं जाती है, जिसकी हत्या केवल इसलिए उसका बाप कर देता है क्योंकि वह अपने बॉयफ्रेंड से बात कर रही थी। पठान जाति की फरहाना की उसके ही परिजनों द्वारा की गई निर्मम हत्या तक इनकी नजर नहीं जाती है। आखिर क्यों फरहाना, अशरीन, अमरीन जैसी लड़कियों तक नहीं जाती है? यदि नजर जाए, और वे अभियान चलाएं तो हो सकता है कि ऐसी तमाम लड़कियों की जान बच जाए, मगर ये लोग ऐसा नहीं करेंगे।
दुर्भाग्य यह भी है कि जो भी बेचारी युवा लड़कियां इस प्रकार की हिंसा का शिकार होती हैं, वे इन जैसों की फिल्म देखकर ही प्यार को अपने जीवन से बड़ा मान बैठती हैं और फिर वे अपने जीवन से हाथ धो बैठती हैं। और प्रश्न यह भी है कि भारत की जो जनता अपने खून पसीने की कमाई से टिकट खरीदकर स्टार बनाती है, और उनकी ब्रांड वैल्यू का निर्माण करती है, उसी भारत की आम जनता तक इनकी नजर क्यों नहीँ जाती है?
वे जिस देश में रहते हैं, उस देश मे भी केवल अजेंडा वाली घटनाओं तक ही उनकी नजर क्यों जाती है? अभी आगरा में मस्जिद के भीतर से एक महिला का शव मिला है, तो उनकी नजर इस घटना पर क्यों नहीं जाती है? यदि हर जान मायने रखती है तो अभी तक कश्मीर में हो रहे कश्मीरी पंडितों के जीनोसाइड पर ये नजर क्यों नहीं गई जबकि बॉलीवुड में कई कलाकार कश्मीरी पंडित हैं।
ये नजर पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के बाद हुई हिंसा तक क्यों नहीं गई, जो कई लोगों को मात्र उनके भिन्न राजनीतिक विचारों के कारण निगल गई? यह बहुत अचंभित करने वाली बात है कि एक ओर भारत की जनता है जो इन अभिनेताओं की फिल्मों के टिकट खरीदकर उन्हें स्टार बनाती है, और उनसे अपेक्षा करती है कि वे भारत की भारत में आए दिन मदरसों मे हो रहे यौन शोषण के मामले सामने आते हैं, और बच्चे शोषण से दुखी होकर भागते भी हैं और गलत रास्तों पर भी चले जाते हैं, मगर इन बच्चों तक भी इनकी नजर नहीं जाती है। प्रश्न यह है कि जिन कलाकारों ने राफ़ा तक अपनी नजर भेज दी, वे उन लोगों के लिए अपनी नजर कहाँ पर गिरवी रख आते हैं, जो उनकी फिल्में देखकर उन्हें स्टार बनाते हैं, ब्रांड बनाते हैं और फिर इसी ब्रांड के बल पर वे सुदूर देश के एजेंडा को पेश करते हैं। क्या भारतीय लोगों को पीड़ा नहीं होती होगी कि हमारी समस्याओं पर मौन रहने वाले ये अभिनेता, आखिर दूसरे देश के लोगों की जान पर क्यों रो रहे हैं?
मलाइका अरोड़ा खान, ज़रीन खान, सोनम कपूर, कृति खरबंदा, नोरा फतेही, डीक्यू सलमान, सामंथा रुथ प्रभु, तृप्ति डिमरी, रकुल प्रीत, राहुल दुआ, वरुण धवन, नितांशी गोयल, उर्फी जावेद, स्वरा भास्कर और अहसास चन्ना, माधुरी दीक्षित सहित तमाम उन हस्तियों को क्या एहसास भी है कि एक स्टोरी इस प्रकार यदि पोस्ट की जाती है, तो उसका उनके प्रशंसकों पर क्या प्रभाव पड़ता है जो उनकी फिल्में सुपरहिट कराते हैं?
आज भी लाखों लड़कियां माधुरी दीक्षित के गानों पर डांस करती हैं, तो यदि माधुरी दीक्षित राफ़ा के बच्चों के लिए नजर फेंक सकती हैं तो यहाँ की लड़कियां तो सवाल करेंगी कि हमारा क्या गुनाह है जो आप हमारे साथ यदि कोई घटना होती है तो आवाज नहीं उठातीं?
प्रश्न तो उठेगा ही कि आखिर ये नजर इतनी सिलेक्टिव क्यों है?
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