नई दिल्ली । मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के की शादी को अवैध माना है। जस्टिस गरुपाल सिंह अहलूवालिया की अध्यक्षता में यह फैसला 27 मई को सुनाया गया, जिसमें कोर्ट ने स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत हिंदू-मुस्लिम जोड़े द्वारा पुलिस सुरक्षा की याचिका को खारिज कर दिया।
फैसले का विवरण
मामला तब सामने आया जब एक हिंदू महिला और मुस्लिम पुरुष ने कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में उन्होंने अपने अंतर-धार्मिक विवाह के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी, क्योंकि महिला के परिवार ने इस विवाह का विरोध किया था। परिवार ने समाज में बहिष्कार की आशंका जताई थी और यह भी दावा किया कि महिला ने घर से आभूषण लेकर मुस्लिम साथी के साथ शादी करने के लिए घर छोड़ा था।
अदालत की प्रतिक्रिया
अदालत में महिला और पुरुष ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने की इच्छा व्यक्त की। उनके वकील ने अदालत में दलील दी कि न तो महिला और न ही पुरुष शादी के लिए अपना धर्म बदलना चाहते हैं। महिला हिंदू धर्म अपनाएगी, जबकि पुरुष इस्लाम को फॉलो करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अंतर-धार्मिक विवाह, भले ही व्यक्तिगत कानून के तहत निषिद्ध हो, विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्य होगा।
Special Marriage Act union between Hindu and Muslim not valid under Muslim Law: Madhya Pradesh High Court
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— Bar and Bench (@barandbench) May 30, 2024
कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, एक मुस्लिम लड़के और एक हिंदू लड़की की शादी अनियमित (फासिद) मानी जाएगी। उन्होंने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत भी यदि ऐसी शादी रजिस्टर्ड होती है, तो भी वह अवैध और अनियमित मानी जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धार्मिक अनुष्ठानों का पालन न करने के बावजूद, यदि व्यक्तिगत कानून के तहत इसे प्रतिबंधित किया गया है, तो यह शादी कानूनी नहीं होगी।
वकील की दलील
वकील ने कोर्ट में यह भी तर्क दिया कि विशेष विवाह अधिनियम पर्सनल लॉ पर हावी होता है और इस अधिनियम के तहत किसी विवाह को धार्मिक अनुष्ठानों का पालन न करने के लिए चुनौती नहीं दी जा सकती। फिर भी कोर्ट ने अपने फैसले में मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों को मान्यता दी और याचिका को खारिज कर दिया।
समाज पर प्रभाव
कोर्ट का यह फैसला निश्चित रूप से कानूनी और सामाजिक विमर्श को नई दिशा देगा। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मुद्दे पर प्रकाश डालता है, जो समाज में धार्मिक सहिष्णुता और विवाह की स्वतंत्रता के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
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