उत्तराखंड में बीते कुछ वर्षों में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ी है। प्रदेश के चार मैदानी जिलों की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है, जहां कुल जनसंख्या के लगभग 34 प्रतिशत मुसलमान हैं। उधमसिंह नगर जिले में मुस्लिम आबादी 32 प्रतिशत, नैनीताल और देहरादून में 30-30 प्रतिशत हो गई है। पौड़ी में भी मुसलमानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
मुस्लिम घुसपैठियों को रोकने के लिए उत्तराखंड सरकार भी सशक्त भू-कानून लाने की तैयारी कर रही है। राज्य सरकार ने भू-कानून विशेषज्ञ समिति गठित की है। समिति के सदस्य अजेंद्र अजय का कहना है कि देव भूमि का स्वरूप बचाए रखने, जनसंख्या संतुलन बनाए रखने के लिए हिमाचल प्रदेश की तरह सख्त भू-कानून की जरूरत है। ऐसा नहीं किया तो यहां की परिस्थितियां बिगड़ जाएंगी, आतंरिक सुरक्षा जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
हाल ही में उत्तराखंड की धामी सरकार ने जनसांख्यिक परिवर्तन पर एक आंतरिक सर्वेक्षण कराया था। इसमें यह पता चला कि उत्तर प्रदेश से लगते राज्य के चार जिलों में जिन 14 बड़ी नदियों में खनन का काम होता है, वहां कुछ वर्ष पहले तक श्रमिक बाहरी प्रदेशों से आते थे और अस्थाई झोंपड़ियां बना कर रहते थे। लेकिन बरसात में ये वापस चले जाते थे। उनकी झोंपड़ियां हटाने का काम वन विभाग के जिम्मे था, लेकिन हरीश रावत की कांग्रेस सरकार के समय वन भूमि और नदी क्षेत्र की सरकारी जमीन पर श्रमिकों ने अवैध कब्जे कर लिए। इनमें 99 प्रतिशत मुसलमान हैं। धीरे-धीरे यहां कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति करने लगी। इनके नाम मतदाता सूची में दर्ज होने लगे। अब वन विभाग की हजारों एकड़ भूमि पर इनकी बस्तियां बसी हुई हैं।
2001 में राज्य में मुसलमानों की जनसंख्या 11.9 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गई। 2022 में इनकी जनसंख्या 16 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था। असम के बाद उत्तराखंड देश का सबसे तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी वाला राज्य है। वहीं, हिमाचल की भौगौलिक स्थिति उत्तराखंड जैसी ही है और उसे भी देवभूमि कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश में 50 वर्ष पहले 2 प्रतिशत मुसलमान थे और आज भी लगभग इनकी आबादी इतनी ही है। इसका कारण यह है कि हिमाचल में भू-कानून लागू है। इस कानून के कारण बाहरी व्यक्ति यहां जमीन नहीं खरीद सकता है।
दूसरी ओर, 1947 में उत्तर प्रदेश के पहाड़ी जिलों (आज का उत्तराखंड) में 1.5 प्रतिशत मुसलमान थे, जो गढ़वाली और कुमाऊंनी बोलते थे। 2001 में जब जनगणनना हुई, तब तक उत्तराखंड अलग राज्य बन चुका था और मुस्लिम जनसंख्या बढ़कर 11.9 प्रतिशत हो गई। 2011 में यह 13.9 प्रतिशत और 2022 में लगभग 16 प्रतिशत हुई। मतदाता सूची के आंकड़ों के अनुसार, एक समय उत्तरकाशी में 150 मुस्लिम मतदाता थे, जो अब 5,000 से अधिक हैं। देहरादून के विकास नगर में 6,000 मुस्लिम मतदाता थे, जो अब 32,000 हो गए हैं।
सामाजिक विषयों में रुचि रखने वाले अनूप नौटियाल कहते हैं,‘‘उत्तराखंड सरकार सर्वेक्षण कराए कि किस क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या पिछले 15 वर्ष में बढ़ी है। इसके बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।’’ अधिवक्ता वैभव कांडपाल कहते हैं, ‘‘उत्तराखंड को सशक्त भू-कानून के साथ जनसंख्या नियंत्रण नीति भी बनानी होगी।’’ जनसंख्या असंतुलन के मुद्दे पर राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्पष्ट कहते हैं, ‘‘देवभूमि उत्तराखंड का अपना एक आध्यात्मिक और सनातनी स्वरूप है, जिसे बनाए रखना हमारा पहला काम है। हमारी नजर सरकारी भूमि पर बाहर से आए लोगों द्वारा किए गए अतिक्रमण पर है। हमने पिछले अभियान में लगभग 5,000 एकड़ जमीन कब्जा मुक्त करवाई है और लगभग 500 अवैध मजारों को वन विभाग ने ध्वस्त किया है। यह अभियान आगे भी जारी रहेगा।’’
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