देश को क्रूर अंग्रेजों से स्वतंत्र करवाने के लिए हजारों नौजवानों ने संघर्ष किया। अंग्रेजों ने बहुत बड़ी संख्या में देश की तरुणाई को फांसी पर लटका दिया और कई क्रांतिकारियों को काले पानी की सजा देकर जेल में ही खत्म कर दिया। आज़ादी के इस संघर्ष में पंजाब सहित पूरे देश के नौजवानों ने भाग लिया। पंजाब का एक ऐसे ही शेर थे करतार सिंह सराभा। करतार सिंह सराभा को महज साढ़े 19 वर्ष की आयु में अंग्रेजों ने भारत में एक बड़ी क्रान्ति की योजना के सिलसिले में फांसी पर लटका दिया था।
करतार सिंह का जन्म पंजाब के लुधियाना जिला के सराभा गाँव में 24 मई 1896 को माता साहिब कौर की कोख से पिता मंगल सिंह के घर हुआ। पिता का निधन बचपन में हो गया। दादा बदन सिंह ने उनका और उनकी छोटी बहन धन्न कौर का पालन-पोषण किया। इनके तीनों चाचा-बिशन सिंह, वीर सिंह व बख्शीश सिंह ऊंची सरकारी पदवी पर काम करते थे। करतार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना के स्कूल में हासिल की। उसके बाद उड़ीसा में अपने चाचा के पास चले गए जोकि उन दिनों बंगाल का हिस्सा था और राजनीतिक रूप से अधिक जागरूक था। दसवीं कक्षा पास करने के उपरांत रेवेंशा कॉलेज से ग्यारहवीं की परीक्षा पास की। परिवार ने उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजने का निर्णय लिया और साढ़े पंद्रह वर्ष की आयु में 1 जनवरी 1912 को अमेरिका पहुंच गए। अमेरिका में प्रारंभिक दिनों में सराभा अपने गांव के ही रुलिया सिंह के पास ही रहे।
अंग्रेजों द्वारा भारत के अप्रवासियों जोकि विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में काम करने वाले श्रमिक थे, उनके साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार का अनुभव होने पर इनके मन में देशभक्ति की भावना हिलोर मारने लगी। भारत की स्वतंत्रता के लिए 15 जुलाई 1913 को लाला हरदयाल, सोहन सिंह भकना, बाबा ज्वाला सिंह, संतोख सिंह और संत बाबा वासाखा सिंह दादेहर ने अमेरिका के कैलिफोर्निया में गदर पार्टी का गठन किया, जिसका मुख्य उद्देश्य हथियारों के माध्यम से भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था। करतार सिंह सराभा पार्टी के सक्रिय सदस्य बने। अमेरिका में रहने वाले सिख गदर पार्टी के सह-संस्थापक सोहन सिंह भकना से प्रेरित थे क्योंकि उन्होंने भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह किया था। सोहन सिंह भकना ने करतार सिंह सराभा को भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया। सोहन सिंह करतार सिंह को ‘बाबा गरनल’ कहते थे। करतार सिंह ने मूल अमेरिकियों से बंदूकें चलाना और विस्फोट करने वाले उपकरण और हवाई जहाज उड़ाना सीखा। गदर पार्टी के सदस्य के रूप में करतार सिंह अमेरिका में रहने वाले भारतीयों को ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के बारे में जागरूक करते रहे। गदर पार्टी के लिए काम करते हुए करतार सिंह की भेंट ज्वाला सिंह ठट्ठीआं से भी हुई, जिन्होंने उसे बर्कले विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया, जहां सराभा ने रसायन शास्त्र में दाखिला लिया और बर्कले विश्वविद्यालय के पंजाबी होस्टल में रहने लगे।
गदर पार्टी ने 1 नवंबर 1913 को ‘द ग़दर’ नाम से अपना अखबार पंजाबी, हिंदी, उर्दू, बंगाली, गुजराती और पश्तो भाषाओं में प्रकाशित करना शुरू किया। 1913 में गदर पार्टी के गठन के बाद करतार सिंह ने विश्वविद्यालय का काम छोड़ दिया और पार्टी के सह-संस्थापक सोहन सिंह और सचिव लाला हरदयाल के साथ काम करना शुरू कर दिया। करतार सिंह सराभा ने अखबार के गुरुमुखी संस्करण को छापने में सक्रिय रूप से भाग लिया और इसके लिए कई लेख और देशभक्ति कविताएं भी लिखी। इस समाचार पत्र का संस्करण दुनिया भर के सभी देशों में रहने वाले भारतीयों को प्रसारित किया गया था। अखबार का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे जबरदस्त अत्याचारों के खिलाफ भारतीयों में देशभक्ति की भावना जगाना था। 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेज शामिल हो गए तो 5 अगस्त 1914 को गदर पार्टी के नेताओं ने “युद्ध की घोषणा का निर्णय” एक लेख प्रकाशित कर अंग्रेजों के खिलाफ भड़काऊ संदेश दिया। इस लेख की हजारों प्रतियां सेना की छावनियों, गांवों और कस्बों में बांटी गईं। प्रथम विश्व युद्ध की घोषणा के बाद अक्टूबर 1914 में करतार सिंह सराभा, सत्येन सेन और विष्णु गणेश पिंगले और गदर पार्टी के सदस्यों के साथ कोलंबो के रास्ते कलकत्ता पहुंच गए। करतार सिंह ने स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस से भी मुलाकात की और मियां मीर और फिरोजपुर की छावनियों पर कब्जा कर, अंबाला और दिल्ली में सशस्त्र विद्रोह करने का निर्णय किया। इसको सफल करने के लिए लगभग 8 हज़ार भारतीय अमेरिका और कनाडा की सुख सुविदाओं को छोड़ कर समुद्री जहाजों से भारत पहुंचे।
गदर पार्टी के ही एक पुलिसकर्मी मुखबिर कृपाल सिंह ने लोभवश ब्रिटिश पुलिस को विद्रोह की योजना की जानकारी दे दी, जिसके फलस्वरूप 19 फरवरी को बड़ी संख्या में गदर पार्टी के क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे विद्रोह विफल हो गया और ब्रिटिश सरकार ने सैनिकों से हथियार जब्त कर लिए। गदर पार्टी के क्रांतिकारी सदस्य जो पुलिस की गिरफ्तारी से बच गए थे उन्हें विद्रोह की विफलता के बाद नेताओं द्वारा भारत छोड़ने का आदेश दिया गया था। करतार सिंह को हरनाम सिंह टुंडीलत और जगत सिंह सहित पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ अफगानिस्तान जाने का आदेश दिया गया था। 2 मार्च 1915 को करतार सिंह सराभा अपने दो दोस्तों के साथ भारत लौट आए। अपनी वापसी के तुरंत बाद वह सरगोधा में चक नंबर 5 पर गए और विद्रोह का प्रचार करना शुरू कर दिया। गंडा सिंह नामक ब्रिटिश भारतीय सेना के सिपाही ने करतार सिंह सराभा, हरनाम सिंह टुंडीलत और जगत सिंह को चक नंबर 5, जिला लायलपुर से गिरफ्तार किया। गिरफ्तार करने के बाद करतार सिंह सराभा को लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया था, जहां उन्होंने कुछ उपकरणों की मदद से खिड़की को काटकर जेल से भागने का प्रयास किया था लेकिन सफल नहीं हो सके।
अदालत में जज ऐसे युवा भारतीय क्रांतिकारी के साहस को देखकर हैरान रह गए। अदालती सुनवाई के दौरान करतार सिंह सराभा ने देशद्रोह के आरोपों का सारा दोष अपने ऊपर ले लिया। न्यायाधीश ने इनके मासूम चेहरे को देखते हुए कठोर सजा नहीं देना चाहते थे इसलिए इन्हें अपना बयान भी बदलने को भी कहा। राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत करतार सिंह अपने बयान पर अडिग रहे। न्यायाधीश ने फांसी देने का हुक्म दिया। 16 नवंबर (कहीं 17 नवंबर) 1915 को करतार सिंह सराभा को उनके छह अन्य साथियों, बख्शीश सिंह, सुरैण सिंह व सुरैण, (ज़िला अमृतसर), हरनाम सिंह (जिला सियालकोट) जगत सिंह (जिला लाहौर), व विष्णु गणेश पिंगले, (ज़िला पूना महाराष्ट्र)- के साथ लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
1977 में इनके जीवन पर एक पंजाबी फिल्म ‘शहीद करतार सिंह सराभा’ रिलीज़ हुई। भारत की स्वतंत्रता के लिए इनके बलिदान के सम्मान में पैतृक जिले पंजाब के लुधियाना में एक प्रतिमा स्थापित की गई। करतार सिंह सराभा ही भगत सिंह के सबसे लोकप्रिय नायक थे, जिनकी फोटो वह हमेशा अपनी जेब में रखते थे। मां भारती को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने में अहम भूमिका निभाने वाले महान क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा जी के बलिदान दिवस पर उन्हें सादर वंदन।
Leave a Comment