विधि-विधान से खुले बाबा मद्यो देवता के कपाट, द्वितीय केदार के रूप में है मान्यता
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विधि-विधान से खुले बाबा मद्यो देवता के कपाट, द्वितीय केदार के रूप में है मान्यता

पंच केदार में द्वितीय केदार बाबा मद्दमहेश्वर के कपाट भी सोमवार सुबह 11 बजे पौराणिक रीति-रिवाज, वैदिक मंत्रोचार के साथ 6 महीने के लिए श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए

by संजय चौहान and दिनेश मानसेरा
May 20, 2024, 07:19 pm IST
in उत्तराखंड, संस्कृति
जय मद्यो देवता!-- मद्दमहेश्वर के कपाट भी श्रद्धालुओं के लिए खुले, बाबा के जयकारों से गुंजयमान हुआ धाम...

जय मद्यो देवता!-- मद्दमहेश्वर के कपाट भी श्रद्धालुओं के लिए खुले, बाबा के जयकारों से गुंजयमान हुआ धाम...

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रुद्रप्रयाग

चारों धाम के कपाट खुलने के उपरांत पंच केदार में द्वितीय केदार बाबा मद्दमहेश्वर के कपाट भी सोमवार सुबह 11 बजे पौराणिक रीति-रिवाज, वैदिक मंत्रोचार के साथ 6 महीने के लिए श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। बाबा मद्दमहेश्वर के कपाट खुलने के अवसर पर रांसी, गौंडार, राउलैक, मनसूना, ऊखीमठ सहित विभिन्न जगहों से सैकड़ों श्रद्धालु धाम पहुंचे। इस दौरान बाबा का पूरा धाम हर हर महादेव और बाबा के जयकारों से गूंज उठा। स्थानीय निवासी रवीन्द्र भट्ट ने बताया कि आज सुबह भगवान मदमहेश्वर की उत्सव डोली गोंडार गांव से प्रातः प्रस्थान कर मदमहेश्वर धाम पहुंची। डोली के साथ सैकड़ों श्रद्धालु भी हर हर महादेव और बाबा मद्दमहेश्वर के जयकारे लगाते हुये चलते रहे।

ये है मान्यता !

रुद्रप्रयाग जनपद की मधु गंगा घाटी में 3300 मीटर की ऊंचाई पर है भगवान मद्दमहेश्वर का मंदिर। यहां भगवान शिव की पूजा नाभिलिंगम् के रूप में की जाती है। कहा जाता है कि इस पवित्र जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। इस तीर्थ के विषय में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति मद्महेश्वर के माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है। साथ ही जो व्यक्ति इस क्षेत्र में पिंडदान करता है, वह पिता की सौ पीढ़ी पहले की और सौ पीढ़ी बाद की तथा सौ पीढ़ी माता की तथा सौ पीढ़ी श्वसुर के वंशजों को तार देता है।

बर्फ से ढकी चोटियां, मखमली घास के बुग्याल

हिमालय में मौजूद बाबा का धाम प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है। बर्फ से ढकी चोटियां, मखमली घास के बुग्याल, कल कल बहते झरने, देवदार के घने जंगल बरबस ही आकर्षित करते हैं। खासतौर पर गौंडार गांव से मद्दमहेश्वर धाम तक का रास्ता पहाड़ों के शौकीनों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है। गौण्डार से करीब डेढ़ किलोमीटर आगे यात्रियों के रुकने के लिए खटरा चट्टी है। यहां से मद्दमहेश्वर की दूरी सात किलोमीटर है। इसके आगे नानू चट्टी, कुन चट्टी के बाद मद्दमहेश्वर धाम आता है। इस दौरान पूरे रास्ते में प्रकृति के अनगिनत नजारे देखने को मिलते हैं।

बूढा मद्दमहेश्वर

मद्दमहेश्वर के पास ही एक चोटी है। इसका रास्ता कम ढलान वाला है। पेड़ भी नहीं हैं। एक तरह का बुग्याल है। उस चोटी को बूढ़ा मद्दमहेश्वर कहते हैं। डेढ-दो किलोमीटर चलना पड़ता है। जैसे-जैसे ऊपर चढ़ते जाते हैं तो चौखंबा के दर्शन होने लगते हैं। बिल्कुल ऊपर पहुंचकर महसूस होता है कि हम दुनिया की छत पर पहुंच गए हैं। दूर ऊखीमठ और गुप्तकाशी भी दिखाई देते हैं। चौखंभा चोटी तो ऐसे दिखती है मानो हाथ बढ़ाकर उसे छू लो।

अगर आप के पास भी समय हो तो चले आइये बाबा मद्दमहेश्वर के धाम

जय मद्यो देवता की 

Topics: Maddamaheshwar's doorsपाञ्चजन्य विशेषचारों धाममधु गंगा घाटीऊखीमठ और गुप्तकाशीMadhu Ganga valleyUkhimath and Guptkashi.Char Dhamभगवान शिव की पूजाWorship of Lord Shivaमद्दमहेश्वर के कपाट
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