पीओजेके में जिस तरह का माहौल है, उसे देखते हुए मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक साल पहले हुई मुलाकात याद आती है। हमारी भेंट 5 अप्रैल, 2023 को हुई थी। उनके कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान को जिस तरह उसकी जगह बताई गई, उसकी सराहना करते हुए मैंने प्रधानमंत्री मोदी से पूछा था, ‘‘क्या हम अगले साल वसंत तक पीओजेके का भारत में विलय देख सकते हैं?’’ प्रधानमंत्री ने कुछ कहा तो नहीं, बस मुस्कुराए और हाथ जोड़े-जोड़े नजरें छत पर टिका दीं। इस भाव-भंगिमा का जो मतलब मैंने निकाला, वह है- ‘‘यह तो भगवान ही जानता है। सही है, हम जिस विषय पर बात कर रहे हैं, वह एक-रेखीय नहीं है। इसके कई आयाम हैं, यानी यह कई कारकों पर निर्भर करता है। इतना जरूर है कि अपने सैन्य कौशल के साथ मैं यह बात पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं कि सब कुछ बिल्कुल ठीक दिशा में जा रहा है।’’
घाटी की सियासत में पाकिस्तानपरस्ती ने जड़ें जमा रखी थीं। तभी तो 26 नवंबर, 2017 को चिनाब घाटी में एक रैली में पीओजेके पर संसद के स्थायी प्रस्ताव का जिक्र करते हुए उत्तेजित फारूख अब्दुल्ला ने चीखते हुए कहा था, ‘‘क्या ये (पीओजेके) तुम्हारे बाप का है?’’ फारूख अब्दुल्ला का यह ‘विश्वास’ आधार पा रहा था पाकिस्तान के ठोस आर्थिक प्रदर्शन और तुलनात्मक रूप से स्थिर राजनीतिक व्यवस्था पर। वित्त वर्ष 2017 में पाकिस्तान की जीडीपी वृद्धि 5.2 प्रतिशत थी, जो नौ वर्षों में सर्वाधिक थी।
लंदन की इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने 2017 के लिए अपने पूवार्नुमान में कहा था कि ‘पाकिस्तान दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली मुस्लिम अर्थव्यवस्था होगी।’ देश की कमान एक अनुभवी नेता नवाज शरीफ के हाथ थी और उनके अमेरिका, चीन और इस्लामिक देशों, खासकर यूएई और सऊदी अरब के शाही परिवारों के साथ बहुत ही अच्छे रिश्ते थे। इसका प्रमाण पाक सेना के पूर्व प्रमुख जनरल राहिल शरीफ की 8 लाख अमेरिकी डॉलर के आकर्षक मासिक वेतन पर इस्लामिक गठबंधन सेना के कमांडर के रूप में नियुक्ति थी। बलूचों के विरोध-प्रतिरोध के बावजूद चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) पर काम जोरों पर चल रहा था। पाकिस्तान के लिए सब कुछ अच्छा था।
दूसरी ओर, 2017 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ रहा था। सुरक्षाबलों पर पथराव रोजमर्रा की बात थी। मारे गए आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में जिस तरह की भीड़ ‘उमड़ती’ थी, उसे आतंकवादियों के प्रति बढ़ती सहानुभूति के रूप में देखा जा रहा था। 2016-18 के दौरान भारत-पाकिस्तान की सेनाओं के बीच आए दिन झड़पें हो रही थीं। उत्तरी सीमाओं पर एक अलग तनाव जन्म ले रहा था, जिसके कारण डोकलाम में भारत-चीन की सेनाएं 16 जून से 28 अगस्त, 2017 तक आमने-सामने डटी रही थीं।
इसी के बाद सितंबर 2017 में तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने दो मोर्चों पर युद्ध की संभावित स्थिति की आशंका जताई। ऐसी पृष्ठभूमि में भी फारूख अब्दुल्ला जैसे लोगों की पाकिस्तानपरस्ती गई नहीं। बीच के चंद वर्षों को छोड़कर सीधे रुख करते हैं 2022 का। अब पासा बदल चुका था। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 और 35-ए हटने के बाद वहां हालात तेजी से सामान्य होते जा रहे थे, जबकि दशकों तक जम्मू-कश्मीर को प्रायोजित आग से झुलसाने वाला पाकिस्तान अब पीओजेके में उसकी लपटों से दो-चार हो रहा था।
नवंबर 2022 में पीओजेके सहित पाकिस्तान में चारों ओर अराजकता थी। पीओजेके में भारत के साथ विलय की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों के वीडियो वायरल हो रहे थे। 40 प्रतिशत की अभूतपूर्व दर से बढ़ी महंगाई के कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल थी। आटे सहित सभी आवश्यक वस्तुओं की भयानक कमी थी और वह भी उस देश में, जिसे विभाजन से पहले भारत का अन्न भंडार कहा जाता था। खाने के लिए लोग एक-दूसरे को मार रहे थे। सीपीईसी को चीन ने रोक दिया था। 2023 के मई आते-आते पाकिस्तान विघटन की ओर बढ़ता दिखने लगा।9 मई को इमरान खान की गिरफ्तारी ने पाकिस्तान को जैसे कगार पर धकेल दिया था।
इमरान के हजारों समर्थक लाहौर में कोर कमांडर के आवास, पेशावर में फ्रंटियर कोर, जीएचक्यू रावलपिंडी और अन्य सैन्य प्रतिष्ठानों के बाहर एकत्र हुए और इन्हें आग के हवाले कर दिया। पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार था, जब सेना को बलूचिस्तान के बाहर आम लोगों ने इस तरह निशाना बनाया था। जवाबी कार्रवाई में पाक सेना को सेना अधिनियम और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के आवेदन के लिए जरूरी मंजूरी मिल गई है, जिसके अनुसार इमरान खान और अन्य पीटीआई नेताओं और कार्यकर्ताओं को मौत या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है।
भारतीय कूटनीति के कारण एफएटीएफ की तलवार अब भी पाकिस्तान पर लटकी हुई है और आईएमएफ ने पैसे देने के लिए उस पर बेहद कड़ी शर्तें थोप दी हैं। पाकिस्तान की मुश्कें कस गई हैं। पीओजेके में जो-कुछ हो रहा है, उसकी दिशा सही है और जब दिशा सही हो तो मंजिल पाना बस समय की बात होती है।
वापस आते हैं फारूख अब्दुल्ला पर। 10 मई को बेहद अफसोस के साथ उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के अंदरूनी हालात ‘बहुत खतरनाक’ हैं और उसकी आर्थिक स्थिति भी बहुत चिंताजनक है, लेकिन चेतावनी भी दी, ‘अस्थिर पाकिस्तान भारत सहित सभी देशों के लिए खतरनाक है।’
महज पांच साल में ये सब कैसे हो गया? आंतरिक कारकों के अलावा यह प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति का परिणाम है। जहां तक पाकिस्तान के आंतरिक कारकों का सवाल है, तो जब अक्तूबर 2018 में नवाज शरीफ की जगह इमरान खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के ‘टेकआफ’ चरण में होने की भविष्यवाणी की गई थी और 2020 के भविष्य के दृष्टिकोण को ‘बहुत अच्छा’ कहा गया था। अगले पांच वर्ष में पाकिस्तान के ‘कम आय वाले देश’ से ‘मध्यम आय वाले देश’ की श्रेणी में आ जाने की भविष्यवाणी थी। इस्लामिक कट्टरपंथी झुकाव वाले एक अहंकारी, ग्लैमरस, महत्वाकांक्षी क्रिकेटर इमरान खान शून्य प्रशासनिक अनुभव के साथ प्रधानमंत्री पद के लिए नौसिखिया थे। उन्हें पता ही नहीं था कि पाकिस्तान कैसा है, उसका तंत्र कैसा है। पाकिस्तानी रुपये के अवमूल्यन और नीतिगत दरों में वृद्धि जैसे उनके गलत निर्णयों से आर्थिक गड़बड़ी हुई।
आर्थिक विशेषज्ञता की कमी, सेना पर नागरिक सरकार का दबदबा बनाने की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कोशिशें, व्यापक भ्रष्टाचार, कोविड-19 और उसके बाद आई अभूतपूर्व बाढ़ ने पाकिस्तान को ऐसे लुढ़काया कि सारे सुनहरे अनुमान आसमान के फूल बन गए। इमरान खान सरकार को साढ़े तीन वर्ष में 52 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण लेना पड़ा, जिसका सेवा शुल्क देना भी पाकिस्तान के लिए दूभर हो गया। कुछ अपनी गलती और बहुत कुछ भारतीय रणनीति, ने मिलकर पाकिस्तान को विश्व पटल पर अलग-थलग करने और उसे पाई-पाई के लिए मोहताज बनाने में भूमिका निभाई।
यही है ‘चाणक्य नीति’। कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ ‘बिना लड़े युद्ध जीतने’ की वकालत करता है। चाणक्य भावनात्मक रूप से शत्रु को तोड़ने की युद्ध नीति में विश्वास करते थे। यानी दुश्मन के मनोबल को तोड़ना और शारीरिक युद्ध से जहां तक संभव हो, बचना। प्रधानमंत्री मोदी की नीति ने पीओजेके में ऐसी ही उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत ने विश्व स्तर पर और संयुक्त राष्ट्र जैसे सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सफलतापूर्वक पाकिस्तान को ‘आतंकवादी राज्य’ के रूप में अलग-थलग कर दिया है। जी-20, ब्रिक्स, आसियान समेत अरब के नेताओं के साथ मोदी के घनिष्ठ संबंधों के कारण पाकिस्तान को मिलने वाली संभावित आर्थिक मदद की टोंटी बंद हो गई है।
भारतीय कूटनीति के कारण एफएटीएफ की तलवार अब भी पाकिस्तान पर लटकी हुई है और आईएमएफ ने पैसे देने के लिए उस पर बेहद कड़ी शर्तें थोप दी हैं। पाकिस्तान की मुश्कें कस गई हैं। पीओजेके में जो-कुछ हो रहा है, उसकी दिशा सही है और जब दिशा सही हो तो मंजिल पाना बस समय की बात होती है।
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