‘नागरिकता’! लगभग 4 साल की बच्ची। पाकिस्तान से अपनी हिंदू आस्था की वजह से यातनाएं सहने के बाद भारत आया ‘नागरिकता’ का परिवार दिल्ली में मजनू का टीला के शरणार्थी कैंप में रह रहा है। ‘नागरिकता’ के परिवार को जब गत दिनों भारत की नागरिकता का प्रमाण पत्र मिला तो पूरे परिवार की आंखें भर आई। जीवन में एक आस बंधी। अपने भारत में खुलकर सांस लेने की गारंटी मिली। गृह मंत्रालय द्वारा जारी उस प्रमाणपत्र को लेकर ‘नागरिकता’ का परिवार सीधे मंदिर गया, वहां भगवान के आगे प्रमाणपत्र को रखा और प्रभु की अर्चना की।
कई अन्य परिवारों के साथ ‘नागरिकता’ का परिवार 2013 में पाकिस्तान से वर्षों प्रताड़ित होने के बाद भारत आया था, स्वाभिमान के साथ जीने की चाह लिए, पेट भर खाने और अपनी बहू-बेटियों के शील की रक्षा की सुनिश्चितता के लिए। नागरिकता का प्रमाणपत्र मिलने के साथ जैसे उनकी एक लंबी साध पूरी हुई। नागरिकता की वृद्धा दादी मीरा की आंखों से तो अश्रुधारा रुक ही नहीं रही थी। पड़ोसियों ने पूरे परिवार का फूलमाला पहनाकर स्वागत किया, बांहों में भर लिया। बस्ती के सभी लोग मिलकर जयघोष करने लगे-‘भारत माता की जय’!
मोदी की दी हुई एक और गारंटी कार्यान्वित हुई है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर जीविका-सुरक्षा की आस में भारत आए 300 शरणार्थियों को सीएए के तहत नागरिकता प्रमाणपत्र दिए गए हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा है कि इनके कुशलक्षेम की चिंता सरकार करेगी
पाकिस्तान से आए इन परिवारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह का दिल खोलकर धन्यवाद किया और उन्हें आसीसें दीं।
गत 14 मार्च को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने के बाद अब तक भारत आए 300 शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान की है। इनमें से 14 शरणार्थियों को 15 मई को केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने नागरिकता प्रमाणपत्र सौंपे। पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आए इन हिंदुओं को भारत की नागरिकता का प्रमाणपत्र एक जिला स्तरीय समिति तथा एक राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा उनके दस्तावेजों सहित अन्य सभी तरह की पड़ताल पूरी करने के बाद सौंपे गए हैं। कार्यक्रम में भारत के गुप्तचर ब्यूरो के निदेशक, भारत के महापंजीयक, सचिव तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।
यहां तक पहुंचने की राह आसान तो नहीं ही रही। चार साल का लंबा इंतजार करना पड़ा मोदी सरकार को इस नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करवाने में। लेकिन आखिरकार दिसंबर, 2019 में संसद के दोनों सदनों में यह अधिनियम पारित हो गया। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2019 भारत के राजपत्र में अधिसूचित हुआ और 11 मार्च, 2024 को जो गजट जारी हुआ उसमें नागरिकता पाने की अर्हता तथा उससे जुड़ी प्रक्रियाओं को विस्तृत रूप से दर्ज किया गया। तब यह स्पष्ट हो गया कि अब इस अधिनियम को कोई भी विपक्षी दल लाख चाहने पर भी लागू होने से रोक नहीं सकता। बेशक, यह संविधान बनाने वालों के राष्ट्रीय हित में किए गए एक वादे को पूरा करने की ओर बढ़ना ही था। जैसे ही सदन में यह अधिनियम पारित हुआ, भारत में एक लंबे वक्त से शरणार्थी का जीवन जी रहे पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से पांथिक कारणों से प्रताड़ित होकर आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन और पारसियों के साथ ही भारत की बहुसंख्य आबादी के चेहरे पर एक संतोष और आनंद का भाव साफतौर पर उभरा था। शरणार्थियों में तो जैसे किसी त्योहार का सा उत्साह दिखा था। देश के विभिन्न स्थानों पर रह रहे ऐसे शरणार्थी ‘भारत माता की जय’ और ‘नरेंद्र मोदी जिंदाबाद’ का जयघोष करते दिखे थे।
15 मई को नागरिकता पाने वालों में एक हैं लक्ष्मी। दिल्ली में आदर्श नगर के पास स्थित महाराणा प्रताप शरणार्थी कैंप में रहती हैं। नागरिकता मिलने से वह बेहद खुश हैं। वह कहती हैं, ‘‘अब लगता है कि एक हिंदू के नाते भारत आना ठीक रहा। 10 वर्ष से भी अधिक समय से इसका इंतजार था। मैं भारत सरकार, खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की कर्जदार हो गई हूं। उन्होंने हमें शान से जिंदगी जीने का हक दिया है। यह कोई छोटा-मोटा हक नहीं है। इस हक को पाने के लिए हम लोगों ने तकलीफें सही हैं, लोगों की दुत्कार खाई है, हिंसक मुसलमानों के अत्याचार झेले हैं।’’
लक्ष्मी अपने पति, ससुर, सास और तीन बच्चों के साथ रहती हैं। वह 2014 में टंडोलियार, हैदराबाद (पाकिस्तान) से आई थीं। उन्होंने बताया, ‘‘पाकिस्तान में आम हिंदू परिवार अपनी बच्चियों को स्कूल नहीं भेजते हैं। उन्हें डर लगता है कि उनका कोई अपहरण न कर ले। इस वजह से मुझे भी कभी स्कूल नहीं भेजा गया। जब भी कोई हादसा होता था, तो घर वाले डर जाते थे और कहते थे कि पाकिस्तान से हिंदुस्थान जाकर ही जान बचेगी और जैसे ही मौका मिला मेरे मां-बाप यहां आ गए। यहां आने के बाद भी कई प्रकार की दिक्कतों का सामना किया। रोजी-रोटी के लिए भटके। नागरिकता मिलने से जीवन की कुछ दुश्वारियां कम हो जाएंगी।’’
नागरिकता पाने वाली 11वीं कक्षा की छात्रा भावना तो इस कदर खुश है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान मानने लगी है। कहती है, ‘‘हम लोगों में से शायद ही किसी ने भगवान को देखा है, लेकिन मुझे मोदी जी में भगवान ही दिख रहे हैं। उन्होंने शरणार्थियों की तकलीफों को समझा और उसका निदान भी किया। ऐसा हम लोगों के लिए किसी ने भी नहीं किया था। इसलिए मैं चाहती हूं कि मोदी जी को लंबी आयु मिले और वे लंबे समय समय तक भारत के प्रधानमंत्री बने रहें।’’
भावना 8 वर्ष की उम्र में टंडोलियार, हैदराबाद से अपने परिवार के साथ दिल्ली आई थी। उस समय उसे पाकिस्तान और भारत के बीच फर्क भी नहीं पता था। दिल्ली आने के बाद जब वह स्कूल जाने लगी, तब पता चला कि वह इस देश की नागरिक नहीं है। वह कहती है, ‘‘जब तक पाकिस्तान में रही, तब तक स्कूल की देहरी भी नहीं देख पाई थी। भारत आने के बाद स्कूल जाने लगी और अब 11वीं में पढ़ रही हूं। मुझे पूरा यकीन है कि यदि पाकिस्तान में ही रहती तो एक शब्द भी लिख-पढ़ नहीं पाती।’’ भावना को लग रहा है कि अब वह पढ़ कर अपने मानव जीवन को सार्थक कर सकती हैं। भावना के परिवार में माता-पिता, तीन भाई और भाभियां हैं। भावना को उम्मीद है कि परिवार के अन्य लोगों को भी जल्दी ही नागरिकता मिल जाएगी।
भारत की नई-नई नागरिक बनीं चंद्रकला 2014 में मीरपुर खास से दिल्ली आई थीं। सामान्य तौर पर वह घूंघट में रहती हैं और किसी बाहरी व्यक्ति से न के बराबर बात करती हैं, लेकिन नागरिकता मिलने के बाद वे मुखर हैं। कहती हैं, ‘‘मैं तो शायद कभी मोदी जी से नहीं मिल सकूंगी, लेकिन उन तक आप मेरा धन्यवाद पहुंचा सकते हैं, तो पहुंचा दें। वे कुछ भारतीयों के विरोध के बावजूद हम लोगों को नागरिकता दे रहे हैं। उनके इस साहस को सलाम।’’
चंद्रकला की तीन छोटी बेटियां हैं। उनकी ओर इशारा कर वह कहती हैं, ‘‘मोदी साहब की कृपा से ये तीनों भारत की हवा में सांस ले रही हैं। उम्मीद है कि आने वाले वक्त में ये तीनों उसी तरह भारत की सेवा करेंगी जैसे और बेटियां कर रही हैं।’’ चंद्रकला की झुग्गी भी महाराणा प्रताप शरणार्थी कैंप में है। उनके परिवार में माता-पिता और भाई-बहन भी हैं। इन लोगों की नागरिकता की प्रक्रिया चल रही है।
मजनू का टीला में रहने वाले भारत कुमार भी ऐसे शरणार्थी हैं, जिन्हें भारत की नागरिकता मिली है। सिंध, हैदराबाद से 11 वर्ष की उम्र में हिंदुस्थान आए भारत कहते हैं, ‘‘भारत की नागरिकता मिलने से मुझे जैसे को नई जिंदगी मिल गई है। अब भारत की सेवा करने का अच्छा अवसर मिला है। इसके लिए मोदी जी को शुक्रिया।’’ भारत इन दिनों रेड़ी पर मोबाइल का सामान बेचते हैं। उनकी बड़ी बहन यशोदा को भी नागरिकता मिली है। यशोदा बाल-बच्चों वाली हैं। वह कहती हैं, ‘‘जब सी.ए.ए. कानून बना था, उस समय विरोधी सेकुलर दलों के नेताओं ने उसका जबर्दस्त विरोध किया था। तब हमें लगा कि शायद हम लोगों को भारत की नागरिकता नहीं मिलेगी, लेकिन मोदी जी ने किसी की नहीं सुनी और अब हम लोगों को नागरिकता मिलने लगी है। एक सपना साकार हो गया। मोदी जी का आभार।’’
सच में इन शरणार्थियों के लिए भारत की नागरिकता मिलना किसी सपने के पूरा होने से कम नहीं है। जिस तरह मोदी सरकार ने अपने चुनावी वायदे के अनुसार संसद के रास्ते पीड़ित शरणार्थियों के लिए नागरिकता के द्वार खोले हैं, उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं लगता जब मोदी सरकार संसद द्वारा पारित भारत को पुन: अखंड बनाने के प्रस्ताव को भी मूर्त रूप देते हुए पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर के हिस्से को मुख्य भूमि के साथ एकाकार करेगी।
आलोक गोस्वामी/अरुण कुमार सिंह
‘ये अपना धर्म-सम्मान बचाने भारत आए हैं’
‘ये अपना धर्म-सम्मान बचाने भारत आए हैं’ ‘‘पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में पांथिक कारणों से जिन्होंने प्रताड़ना सही है उन्हीं लोगों को सुरक्षा देने के लिए ये कानून है। पाकिस्तान से जो अधिकतर हमारे शरणार्थी आए हैं वे मेरे दलित भाई-बहन हैं। ये वे दलित परिवार हैं जिनको पाकिस्तान में बंधुआ मजदूर बनाकर रखा गया था। आज भी पाकिस्तान में स्थिति ये है कि अगर दलित परिवार का कोई व्यक्ति चाय पीता है तो उसको चाय के साथ-साथ उस चाय के बर्तन का पैसा भी देना पड़ता है और बर्तन साथ ले जाना होता है। आज भी पाकिस्तान में बेटियों के साथ जो अत्याचार होता है, उनकी जबरन शादी करके उन्हें कन्वर्जन के लिए मजबूर किया जाता है। ये सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि उनकी श्रद्धा अलग है, आस्था अलग है, पूजा पद्धति अलग है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में हुए ऐसे ही शोषण के कारण वे भारत आए और बरसों से हमारे बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हैं।
दिल्ली में मजनू का टीला में एक शरणार्थी कैंप में एक बिटिया का जन्म हुआ और उस बेटी के मां-पिता ने उस बिटिया का नाम ‘नागरिकता’ रख दिया। अगर इस ‘नागरिकता’ नाम की बेटी का जीवन आसान होता है, अगर उसके मां-बाप की जिंदगी आसान होती है, अगर भारत के किसी भी नागरिक की समस्याओं का समाधान होता है तो विपक्षी दलों को तकलीफ क्यों होती है? देश में दशकों से रह रहे लाखों गरीब, सताए हुए शोषित दलित परिवारों को उत्पीड़न के कारण भारत आने को मजबूर होना पड़ा है, वे मुसीबत के मारे हैं, अपना धर्म, अपना सम्मान, अपनी बेटियों की इज्जत बचाने के लिए भारत आए हैं।’’
-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
(22 दिसम्बर 2019, रामलीला मैदान, दिल्ली में भाषण)
यह है नागरिकता (संशोधन) अधिनियम
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 यानी सीएए के अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान से पांथिक कारणों से प्रताड़ित होकर 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में शरण लेने वाले अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को नागरिकता देने का प्रावधान करता है। नागरिकता (संशोधन) कानून केंद्र सरकार ने साल 2019 में संसद के दोनों सदनों से पारित कराया था।
2000 पाकिस्तानी सिंधियों में जगी आस
मध्य प्रदेश के इंदौर महानगर में 2000 सिंधी रह रहे हैं, जो पाकिस्तान से आए हैं। गत 15 मई को भारत के गृह मंत्रालय द्वारा नागरिकता के प्रमाणपत्र सौंपने की प्रक्रिया शुरू होने पर इन सिंधी परिवारों में भी अब एक सुखद आस जगी है। वे सुनकर फूले नहीं समाए कि पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आए 300 लोगों को भारतीय नागरिकता मिल गई है। जैकोबाबाद पंचायत इन लगभग 2000 पाकिस्तानी सिंधियों से नागरिकता कानून के तहत आवेदन करवा रही है। ये लोग पिछले 15-20 साल से यहां रह रहे हैं और नागरिकता मिलने की उम्मीद बांधे हैं।
इस संबंध में जैकोबाबाद पंचायत अध्यक्ष राजा मंदवानी कहते हैं कि जब सीएए कानून लागू हुआ तो पूरी पंचायत में जश्न सा मनाया गया था। इंदौर में रह रहे लगभग 2000 सिंधियों को अभी तक नागरिकता नहीं मिलने से अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उनके बच्चों को बड़े स्कूलों में प्रवेश नहीं मिलता। लेकिन अब उम्मीद है जल्दी ही उन्हें भी उनके अपने देश भारत की नागरिकता मिल जाएगी। इंदौर का पूरा समाज, विशेषकर सिंधी समाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ढेरों आशीर्वाद दे रहा है। उसे उम्मीद है कि इस बार के चुनावों में भी प्रधानमंत्री मोदी प्रचंड बहुमत के साथ नई सरकार बनाएंगे और भारतवासियों के भविष्य को यूं ही संवारते जाएंगे।
सीएए की पृष्ठभूमि
संविधान में अनुच्छेद 5 से लेकर 11 तक नागरिकता से जुड़े नियमों को उल्लिखित किया गया है। हमारा संविधान लागू हुआ 26 जनवरी, 1950 को, इसके लागू होते ही ब्रिटिश भारत में जन्मे लोगों को तो तत्काल भारत की नागरिकता प्राप्त हो गई, लेकिन पूर्व-रियासतों के निवासियों में से अनेक लोगों ने भारतीय नागरिकता नहीं ली थी। तब बाद में, 1955 में नागरिकता कानून बनाया गया और ऐसे सब लोगों को भारत की नागरिकता दी गई।
आगे इस कानून में भी अनेक अवसरों पर संशोधन किए गए। इसमें 1986, 1992, 2003 तथा 2005 में गोवा, दमन-दीव तथा दादरा एवं नगर हवेली, पुदुच्चेरी, करईकल, माहे, यानम के साथ ही बांग्लादेश और पाकिस्तान से जमीनी विवादों को दूर करके भारत में मिलाए गए क्षेत्रों में रह रहे लोगों को नागरिकता देने से जुड़ा संशोधन भी शामिल है। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने मुस्लिम मजहबी पड़ोसी देशों-पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में पांथिक आधार पर प्रताड़ित किए गए अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन तथा पारसी) को नागरिकता देने का वादा किया था और अंतत: सरकार के प्रयासों के बाद भारत की ससंद के दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 पारित हुआ था।
जोधपुर में दौड़ गई खुशी की लहर
जोधपुर में पाकिस्तानी हिंदू बड़ी संख्या में रह रहे हैं। गत मार्च में नागरिकता कानून पारित होने के बाद यहां की आंगणवा बस्ती में जैसे दिवाली मनाई गई थी, मिठाइयां बांटी गई थीं। लोगों के चेहरे पर संतोष का भाव था कि अब आखिरकार वे अपने भारत के अधिकृत नागरिक बनकर नागरिकता के सभी अधिकार पा जाएंगे। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच और कार्यों से अभिभूत हैं और उन्हें देवता जैसा दर्जा देते हैं। आंगणवा के लोगों का कहना है कि पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू खुश नहीं हैं और कैसे भी भारत आना चाहते हैं। उन्हें बस मौके की तलाश है। इसी बस्ती में रह रहे, 9 साल पहले पाकिस्तान के मीरपुर खास से आए हेमजी ठाकोर कहते हैं कि यह सच बात है कि पाकिस्तान में रह रहा एक भी हिंदू दिल से प्रसन्न नहीं है। वे अंदर से टूटे हुए हैं और पहले मौके पर वहां से भारत आना चाहते हैं।
बताते हैं, राजस्थान में पाकिस्तान से आए ऐसे लगभग 25,000 परिवार रह रहे हैं। इनमें से लगभग 18,000 तो सिर्फ जोधपुर में ही बस्तियां बसा कर रह रहे हैं। इन सभी लोगों को अब उम्मीद बंधी है कि उन्हें भी जल्दी ही नागरिकता संशोधन अधिनियम के अंतर्गत भारत की नागरिक मिल जाएगी।
हेमजी बताते हैं, यह सच है कि पाकिस्तान में हिंदू बहू—बेटियों को आएदिन उत्पीड़न झेलना पड़ता है। मजहबी तत्व हिन्दुओं की किशोर बच्चियों तक को नहीं बख्शते। सामूहिक बलात्कार, अपहरण, कन्वर्जन रोजाना की बात है। पिछले 30—40 साल से हिन्दुओं के साथ ऐसा ही बर्ताव होता आ रहा है। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता कि कहीं किसी हिन्दू के साथ बदसलूकी न होती हो। हेमजी कहते हैं कि भारत की मोदी सरकार ने सीएए के तहत, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को भारत की नागरिकता देने की बात की है वह एक बड़ा कदम है। इसके लिए मोदी जी और अमित शाह जी का शुक्रिया कि उन्होंने हमारे दुख को समझा और उसे दूर करने की तरफ कदम बढ़ाए।
रोहिंग्याओं के प्यारे केजरीवाल
सीएए के पारित होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस प्रकार की बयानबाजी की थी उससे शरणार्थी हिंदू-सिख बेहद गुस्से में थे। उन्होंने उसी दिन नई दिल्लीमें केजरीवाल के सरकारी निवास के सामने जबरदस्त प्रदर्शन किया था। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी थे। प्रदर्शनकारियों ने जमकर केजरीवाल के विरुद्ध नारे लगाए।
दिल्ली के रोहिणी इलाके में भी हिंदू-सिख शरणार्थियों ने केजरीवाल के प्रति अपना आक्रोश प्रकट किया। इधर प्रदर्शन चल रहा था तो उधर केजरीवाल प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सीएए को ‘देश के लिए खतरनाक’ बता रहे थे। उनका कहना था कि अगर भारत सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू-सिखों के लिए दरवाजे खोलेगी तो उनको नौकरियां और घर भी दिए जाएंगे। मुंह लटकाते हुए केजरीवाल ने कहा था कि भारत में वैसे ही नौकरियां नहीं हैं।
इतना ही नहीं, केजरीवाल ने अपने पुराने बयान को दोहराते हुए एक ट्वीट करके लिखा, ‘‘आज कुछ ‘पाकिस्तानियों’ ने मेरे घर के आगे प्रदर्शन और उपद्रव किया है। दिल्ली पुलिस ने उन्हें पूरी इज्जत देते हुुए संरक्षण दिया। इस सीएए के आने बाद ये ‘पाकिस्तानी’ पूरे देश में फैल जाएंगे और हमारे ही देश के लोगों को इस तरह धमकाएंगे, उपद्रव मचाएंगे।’’
यह वही केजरीवाल हैं जो युवाओं के रोजगार की चिंता में घड़ियाली आंसू बहा रहे थे। लेकिन दूसरी तरफ उनकी पार्टी के नेता दिल्ली में रोहिंग्याओं को हर तरह की मदद उपलब्ध करा रहे थे। 2020 में मीडिया में एक रिपोर्ट आई थी, जो बताती थी कि दिल्ली के मदनपुर खादर इलाके में 5 एकड़ से अधिक भूमि पर कब्जा किया गया है और वहां रोहिंग्याओं को बसाया गया है। आआपा के वहां के विधायक ने कथित तौर पर रोहिंग्या घुसपैठियों केवोटर कार्ड और आधार कार्ड बनवा दिए हैं। आआपा सरकार इन घुसपैठियों को मुफ्त बिजली-पानी दे रही है। अब केजरीवाल बताएं कि उन घुसपैठियों को किसके हक की बिजली, पानी तथा दूसरी सुविधाएं दी जा रही हैं।
यह है आवेदन की प्रक्रिया
भारत सरकार के गजट में जो नियमावली प्रकाशित की गई उसकी विशेषता यह है कि सब सहज में समझा जा सकता है। इस कानून में नागरिकता की प्रक्रिया आसान बनाई गई है। इसमें आवेदक अपने अथवा अपने पिता, दादा, परदादा को पाकिस्तान या बांग्लादेश या अफगानिस्तान सरकार द्वारा जारी वैध या खत्म हो चुके पासपोर्ट अथवा वहां की नागरिकता संबंधी कोई भी दस्तावेज, भारत सरकार द्वारा जारी आवास का परमिट या जन्म/विवाह प्रमाण-पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, बैंक की पासबुक, डाकघर खाते की पासबुक, जीवन बीमा पॉलिसी आदि 20 दस्तवेजों में से किसी एक के साथ आवेदन कर सकता है।
मान लीजिए आवेदक के पास इनमें से कोई भी दस्तावेज नहीं है तो वह शपथपत्र देकर अपनी अर्हता की पुष्टि करते हुए आवेदन कर सकता है। साथ ही, ग्राम पंचायत, नगर पालिका अथवा नगर निगम आदि स्थानीय प्रशासी निकायों की तरफ से जारी प्रमाणपत्र भी मान्य किया गया है, इससे पता चल जाएगा कि उसने किस तारीख को भारत में शरण ली। ऐसे सभी आवेदन जिलाधिकारी कार्यालय के साथ ही केंद्रीकृत आनलाइन पोर्टल पर दर्ज कराए जा सकते हैं।
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