मध्य प्रदेश के धार स्थित भोजशाला का 49 दिन का एएसआई सर्वे पूरा हो चुका है। अब तक की खुदाई में मिले अवशेषों से ये तो स्पष्ट हो चुका है कि भोजशाला कोई मस्जिद नहीं, बल्कि यह सरस्वती मंदिर ही है। 49वें दिन गुरुवार को खुदाई के दौरान जांच टीम को पत्थरों के कई अवशेष मिले।
एएसआई को खुदाई के दौरान भोजशाला के अंदर बीते तीन दिनों के भीतर की गई खुदाई से तीन दीवारों के अवशेष मिले हैं। ये तीनों दीवारें आपस में जुड़ी हुई हैं। गुरुवार को परिसर में 10 फीट तक की खुदाई एएसआई के अधिकारियों ने करवाई, लेकिन अभी तक दीवार का निचला हिस्सा जांच टीम को नहीं मिला है। बताया जाता है कि ईटों की बनी यह दीवार भूकंपरोधी रही होगी।
खुदाई का यह कार्य फिलहाल भोजशाला के बाहरी परिसर में दक्षिण व पश्चिम की दीवार के पास किया गया। बाद में उत्तर की तरफ भी खुदाई की गई। इस काम में 14 अधिकारी, कर्मचारी, 24 मजदूरों और पक्षकार मौजूद रहे। हिन्दू पक्ष के पक्षकार गोपाल शर्मा कहते हैं कि भोजशाला के गर्भ ग्रह सहित 18 चिह्नित स्थानों पर सर्वे का कार्य किया जा रहा है।
भोजशाला ही था सरस्वती मंदिर
भोजशाला ही ‘सरस्वती मंदिर’ था। इस बात का दावा पूर्व पुरातत्वविद के के मुहम्मद ने किया है। उनका कहना है कि भोजशाला, जिसे मुस्लिम पक्ष ‘कमल मस्जिद’ असल में वो कोई मस्जिद नहीं, बल्कि सरस्वती मंदिर था। लेकिन बाद में इस्लामवादियों ने इस्लामी इबादतगाह में बदल दिया।
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केके मुहम्मद का कहना है कि धार स्थित भोजशाला के बारे में ये ऐतिहासिक तथ्य है कि ये सरस्वती मंदिर ही था। बाद में इसे मस्जिद बनाया गया। उल्लेखनीय है कि हिन्दू समुदाय लगातार ये दावा करता आ रहा है कि यहां पर कोई मस्जिद कभी थी ही नहीं, बल्कि ये मां सरस्वती का मंदिर था।
718 वर्षों के बाद खुले थे हिंदुओं के लिए ताले
718 वर्षों के बाद 8 अप्रैल 2003 में भोजशाला के ताले हिंदुओं के लिए खुले थे। सन् 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने यहां आक्रमण किया था, तब से पूजन पाठ बंद था, लेकिन लम्बे संघर्ष के बाद 08 अप्रैल 2003 को हिन्दुओं को पूजा का अधिकार मिला था।
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