भारत इन दिनों लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व लोकसभा चुनाव 2024 के रूप में मना रहा है। वहीं Lok Sabha Election 2024 के दो चरणों का मतदान भी हो गया है। जबकि अन्य चरणों के चुनाव के लिए राजनैतिक पार्टियां जोरों शोरों से जुटीं हुईं है। लेकिन अब इस चुनाव प्रचार में आरक्षण का मुद्दा काफी चर्चा में बना हुआ है।
अभी बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दावा किया कि कांग्रेस धर्म के आधार पर आरक्षण देना चाहती है। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस और उसके गठबंधन में शामिल घटकों को लिखित में यह गारंटी देने की चुनौती दी कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगे। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, “आपकी मंशा मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण देने की है।”
वहीं 30 अप्रैल को तेलंगाना के जहीराबाद में एक जनसभा को संबोधित करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब वह जिंदा है धर्म के आधार पर आरक्षण लागू नहीं होने देंगे, उन्होंने कहा- “कॉन्ग्रेस वाले सुन लें, उनके चट्टे-बट्टे सुन लें, उनकी पूरी जमात सुन ले, जब तक मोदी जिंदा है, मैं दलितों का, SC, ST और OBC का आरक्षण धर्म के आधार पर मुसलमानों को नहीं देने दूँगा… नहीं देने दूँगा।”
दरअसल भारत में आरक्षण की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत की गई है, जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकारें उन वर्गों को आरक्षण का लाभ दे सकती हैं, जिन्हें वे पिछड़ा मानती हैं। सामान्यत: आरक्षण सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित लोगों के लिए होता है, लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने इसे धर्म के आधार पर लागू किया है। जिसमे विशेष रूप से आरक्षण मुस्लिमों को दिया जा रहा है। जिसका भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोध कर रहे है, जबकि अन्य विपक्षी दल और उनकी सरकारें इसे सामाजिक न्याय का नाम देकर, एससी, एसटी, ओबीसी और वंचित समाज के हक पर डाका डालने का काम कर रहे हैं।
तेलंगाना में मुस्लिम आरक्षण
तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (BRS) की सरकार के दौरान मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने राज्य के मुस्लिमों को OBC श्रेणी में 4 प्रतिशत आरक्षण दिया था। उन्होंने इसे बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने की कोशिश की, लेकिन केन्द्र सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। वर्तमान में तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है, वहीं भाजपा लगातार इस आरक्षण का विरोध कर रही है।
आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण
आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की अगुवाई में कांग्रेस सरकार ने साल 2004 में मुस्लिमों की कई जातियों को OBC में शामिल कर लिया और इन्हें 5 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की। हालाँकि, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। इसके बाद, 2005 में कांग्रेस ने एक अध्यादेश लाकर 5 प्रतिशत कोटे का ऐलान किया, लेकिन फिर से कोर्ट ने इसे स्थगित कर दिया।
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आरक्षण
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिमों को अधिक से अधिक लाभ देने के लिए मुस्लिमों की कई जातियों को OBC की सूची में जोड़ा। इस फैसले के कारण राज्य की सरकारी नौकरियों और अन्य सरकारी योजनाओं में आरक्षण का 90% से अधिक फायदा मुस्लिमों को मिला है।
बता दें कि पश्चिम बंगाल में ओबीसी की दो श्रेणियाँ हैं—A और B जिसमे A श्रेणी के अंतर्गत 81 जातियों में से 73 मुस्लिम हैं, जबकि B श्रेणी में 98 में से 45 मुस्लिम जातियाँ हैं। वामपंथी सरकार ने रंगनाथ मिश्रा कमिटी की सिफारिशों के आधार पर यह आरक्षण लागू किया था, जिसे ममता बनर्जी की सरकार ने समय-समय पर आगे बढ़ाया।
तमिलनाडु में मुस्लिम और ईसाई आरक्षण
तमिलनाडु में भी धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यहाँ मुस्लिमों और ईसाइयों को 3.5 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। इस तरह OBC आरक्षण को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 33.5 प्रतिशत कर दिया गया है। इस व्यवस्था को राज्य सरकार यह कहकर सही ठहरा रही है कि यह उप-कोटा धार्मिक समुदायों के पिछड़ेपन पर आधारित है, न कि धर्म के आधार पर।
केरल में मुस्लिम आरक्षण
केरल में 1956 में पुनर्गठन के बाद से आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाया गया, जिसमें ओबीसी के लिए 40% आरक्षण शामिल था। यहाँ ओबीसी के भीतर मुस्लिम हिस्सेदारी 10% थी, जो अब 12% हो गई है। केरल में सभी मुसलमानों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे उन्हें सरकारी नौकरियों और व्यावसायिक शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ मिलता है।
बिहार में मुस्लिम आरक्षण
बिहार में 1970 के दशक से पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण है। यहाँ गरीब मुस्लिमों को पिछड़ी जातियों में शामिल किया गया है। उन्हें सरकारी नौकरियों में 3% कोटा का लाभ मिलता है। इन मुस्लिम जातियों में अंसारी, मंसूरी, इदरीसी, दफाली, धोबी, नालबंद, आदि शामिल हैं।
इन सभी विभिन्न राज्यों में मुस्लिमों को आरक्षण दिए जाने के कारणों और नीतियों के आधार पर ही आज आरक्षण को लेकर बहस छिड़ी हुई है। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इस धार्मिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, जबकि कई राज्य सरकारें इसे सामाजिक न्याय के रूप में बताकर अति पिछड़े हिन्दुओं का हक मारने का काम कर रही हैं। अब यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक बहस का हिस्सा बन चुका है, जिसका निर्णय भारत का मतदाता अपने मतदान के प्रयोग से करेगा. वहीं लोकसभा 2024 परिणाम के बाद देखना दिलचस्प होगा कि भारत में आरक्षण की नीति किस दिशा में आगे बढ़ेगी।
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