इस बार पाकिस्तान के बलूचिस्तान सूबे में हिंगलाज माता मंदिर की तीर्थयात्रा बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुई। इस वर्ष यह हिंगलाज माता यात्रा गत 26 अप्रैल से आरम्भ होकर 28 अप्रैल तक चली। तीन दिन चलने वाली इस तीर्थयात्रा में दूर दूर से माता रानी के भक्त पैदल मीलों तक का कठिन सफर करके पहुंचे थे।
बलूचिस्तान सूबे में हिंगलाज यात्रा की बहुत मान्यता है। हिंगलाज माता मंदिर हिन्दुओं के उस देश में बचे कुछ ही श्रद्धा स्थलों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष इन दिनों भव्य मेला जुटता है जिसमें पूरे पाकिस्तान से हजारों लोग माता हिंगलाज के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने पहुंचते हैं। यात्रा में कई पड़ाव आते हैं, चलते—चलते पैर जवाब देने लगते हैं लेकिन आस्था का ऐसा ज्वार होता है कि उत्साह थकान महसूस होने ही नहीं देता।
मनोकामना पूर्ण करने वाली माता हिंगलाज की ऐसी ख्याति है कि मन में कोई न कोई साध लिए जब यात्री यहां पहुंचते हैं तो अनेकों के आंखों से अश्रु बह निकलते हैं। जयकारों से माहौल जोश से भरापूरा रहता है। लोग विशेष पूजा अर्चना करते हैं तो अनेक विशेष पाठ करते दिखते हैं।
माना जाता है कि माता सती के परलोक सिधारने के बाद गुस्से से सराबोर जटाधारी भगवान शिव उनकी देह को उठाकर पूरे ब्रह्मांड विचरने लगे थे। मान्यता है कि ऐसे में माता सती के शरीर के अनेक अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे। जिन जिन स्थानों पर ये अंग गिरे वे—वे स्थान आदिकाल से ही शक्तिपीठ की तरह पूजे जा रहे हैं। हिन्दू धर्म में माना जाता है कि हिंगलाज माता मंदिर उसी स्थान पर स्थित है जहां माता सती का सिर गिरा था।
यह स्थान आज पाकिस्तान के बलूचिस्तान सूबे में मकरान की खेरथार पहाड़ियों के बीच में स्थित वहां नयनाभिराम हिंगोल नदी के तट पर स्थित हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान के ही नहीं, अपितु दुनियाभर के हिन्दुओं का श्रद्धा केन्द्र है।
मंदिर की प्रशासनिक कमेटी की इच्छा है कि पाकिस्तान की सरकार इसे दुनियाभर के हिन्दुओं के लिए सहज, सुगम्य बनाए। अभी सिर्फ पाकिस्तान में बसे हिन्दू ही मंदिर में दर्शन कर सकते हैं। पाकिस्तान की सरकार सभी देशों से माता के दर्शनों के लिए आने की इच्छा रखने वालों को वीसा देना शुरू करे। ऐसी व्यवस्था हो कि दुनिया के किसी भी देश से इस शक्तिपीठ में माता का आशीर्वाद लेने आने के इच्छुक भक्त को कोई कठिनाई न आए।
मंदिर की आरे बढ़ते हुए भक्त मकरान तटीय राजमार्ग से कई किलोमीटर दूर ‘मड वोलकेनो’ तक पैदल चलकर जाते हैं। उसके बाद चट्टानों की कठिन चढ़ाई चढ़ते हैं। उसके बाद वहां एक लघु पूजन के बाद आगे की यात्रा पर बढ़ते हैं। वहां से लगभग 45 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके भक्त हिंगलाज माता मंदिर पहुंचते हैं। रास्तेभर तीर्थयात्रियों की टोलियां जयकारे लगाती हुईं, सहयात्रियों में जोश भरती चलती हैं।
भक्तजन मंदिर में माता के दर्शन से पूर्व हिंगोल नदी में स्नान करते हैं। शास्त्रों में इस नदी के जल को गंगाजल के समान पवित्र बताया गया है। उसके बाद श्रद्धालु पास ही एक प्राकृतिक गुफा में अंदर बैठीं हिंगलाज माता के दर्शनों के लिए बढ़ते हैं। मंदिर में माता एक शिला रूप में दर्शन देती हैं। भक्त वहां बैठकर बड़ी श्रद्धा के साथ माता का पूजन करते हैं, देवी स्रोत का पाठ करते हैं और यथासंभव भेंट आदि अर्पित करते हैं।
मेले के समय मंदिर के आसपास का पूरा वातावरण जय भोलेनाथ, जय माता दी, जय माता हिंगलाज के जयकारों से गूंजता रहता है। आसपास दुकानें सज जाती हैं। माता की चुन्नी, प्रसाद और नारियल की जमकर बिक्री होती है। पूरे पाकिस्तान के हिंदू श्रद्धालू साल भर आस लगाए रहते हैं कि कब हिंगलाज माता का मेला शुरू और वे दर्शनों के लिए बलूचिस्तान जाएं।
हालांकि मंदिर की प्रशासनिक कमेटी की इच्छा है कि पाकिस्तान की सरकार इसे दुनियाभर के हिन्दुओं के लिए सहज, सुगम्य बनाए। अभी सिर्फ पाकिस्तान में बसे हिन्दू ही मंदिर में दर्शन कर सकते हैं। मंदिर प्रशासन चाहता है कि पाकिस्तान की सरकार सभी देशों से माता के दर्शनों के लिए आने की इच्छा रखने वालों को वीसा देना शुरू करे। ऐसी व्यवस्था हो कि दुनिया के किसी भी देश से इस शक्तिपीठ में माता का आशीर्वाद लेने आने के इच्छुक भक्त को कोई कठिनाई न आए।
टिप्पणियाँ