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नक्सली/माओवादी : लाल आतंक पर बड़ी चोट

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में नक्सलियों के मारे जाने की खबर आने के बाद कथित मानवाधिकार वाली संताप भले न दिखे, मगर लोकतंत्र, व्यवस्था को ललकारने वाली आवाजें जब शांत होती हैं तो, बूढ़ा बाबा, मां दंतेश्वरी के इस क्षेत्र का एक उत्पात शांत होता है।

by Ashwani Mishra
Apr 22, 2024, 10:05 am IST
in भारत, विश्लेषण, छत्तीसगढ़
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छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में नक्सलियों के मारे जाने की खबर आने के बाद कथित मानवाधिकार वाली संताप भले न दिखे, मगर लोकतंत्र, व्यवस्था को ललकारने वाली आवाजें जब शांत होती हैं तो, बूढ़ा बाबा, मां दंतेश्वरी के इस क्षेत्र का एक उत्पात शांत होता है। नक्सलियों ने न केवल अशांति फैलाई और उत्पात मचाया, बल्कि जनजातीय समाज में दरार भी पैदा की है। 6 अप्रैल, 2010 को नक्सलियों ने सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के संयुक्त दल पर हमला किया और पहले उनके वाहन को लैंड माइन से उड़ाया, फिर उन पर गोलियों की बौछार कर दी। इस दोहरे हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान बलिदान हुए थे। तब पूरा देश आंसुओं में डूब गया था, लेकिन मानवाधिकार के चैम्पियन उस समय चुप थे। आज 29 नक्सली मारे गए हैं, तो मरोड़ उठनी शुरू हो गई है। कांग्रेस अगर भूल गई है तो 25 मई, 2013 की उस घटना को याद करे, जब विधानसभा चुनाव प्रचार कर सुकमा से जगदलपुर लौट रहे छत्तीसगढ़ के उसके शीर्ष नेताओं को नक्सलियों दरभाघाटी में ऐसी जगह घेर कर मार डाला था, जहां से भागने का कोई रास्ता नहीं था। नक्सलियों ने लगभग पूरी पार्टी का ही सफाया कर दिया था। नक्सलियों ने कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा की निर्ममता से हत्या करने के बाद उनके शव पर नाच-कूद कर जश्न मनाया था। ऐसे कू्रर नक्सलियों को ग्रामीण कहना गलत है, ठीक वैसे ही, जैसे आतंकियों को सामान्य नागरिक बताना। क्या है वस्तुस्थिति पढ़िए ‘ग्राउंड जीरो’ से पाञ्चजन्य की रिपोर्ट-

कांकेर में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में ढेर 29 नक्सलियों के बरामद अत्याधुनिक हथियार। मारी गई इनामी महिला नक्सली (प्रकोष्ठ में) और सरगना शंकर राव

छोटेबेठिया (कांकेर) से अश्वनी मिश्र

लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान से ठीक दो दिन पहले छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता मिली। बस्तर संभाग के कांकेर जिले के हिदूर और कलपर के बीच जंगलों में सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में 29 दुर्दांत नक्सलियों को मार गिराया। इनमें शीर्ष नक्सली कमांडर शंकर राव, ललिता, माधवी और राजू जैसे लाखों रुपये के इनामी नक्सली शामिल हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सुरक्षाबलों को बधाई देते हुए कहा, ‘‘आपरेशन को अपनी जांबाजी से सफल बनाने वाले सभी सुरक्षाकर्मियों को बधाई देता हूं और जो वीर पुलिसकर्मी घायल हुए हैं, उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं। नक्सलवाद विकास, शांति और युवाओं के उज्ज्वल भविष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम देश को नक्सलवाद के दंश से मुक्त करने के लिए संकल्पित हैं। सरकार की आक्रामक नीति और सुरक्षाबलों के प्रयासों के कारण आज नक्सलवाद दायरा सिमट कर एक छोटे से क्षेत्र तक सीमित रह गया है। जल्द ही छत्तीसगढ़ और पूरा देश पूर्णत: नक्सल मुक्त होगा।’’

सुरक्षाबलों को हापाटोला-छोटेबेठिया थाना क्षेत्र के जंगलों में बड़ी संख्या में नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना मिली थी। इसके बाद 16 अप्रैल को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के 1,000 से अधिक जवानों ने 60 नक्सलियों को घेर लिया। दोपहर एक बजे मुठभेड़ शुरू हुई, जो लगभग तीन घंटे तक चली। इसमें 29 नक्सली मारे गए, बाकी जान बचा कर भाग गए। मुठभेड़ में बीएसएफ के इंस्पेक्टर के साथ डीआरजी के दो भी जवान घायल हुए हैं। बस्तर के आईजी पी. सुंदरराज ने बताया कि कांकेर में मारे गए नक्सली लोकसभा चुनाव के दौरान हिंसक गतिविधि को अंजाम देने की योजना बना रहे थे।

बीएसएफ के डीआईजी आलोक सिंह ने कहा, ‘‘हमने हमले का तरीका बदला, जिसके चलते इतनी बड़ी सफलता मिली है। खुफिया सूचना पर बीएसएफ का यह बहुत बड़ा आपरेशन था। बीएसएफ और डीआरजी की टीम पिछले कुछ दिनों से इस आॅपरेशन में जुटी हुई थी। हमने अपनी रणनीति बदली और नक्सलियों पर जिस तरफ से हमला किया, उसके बारे में वह सोच भी नहीं सकते थे। यही वजह है कि हमने खूंखार नक्सलियों को मार गिराया है। इसके अलावा, बड़ी संख्या में नक्सली घायल भी हुए हैं, जिनकी तलाश में जल्दी ही आपरेशन चलाया जाएगा।’’

15 महिला नक्सली भी ढेर

सुरक्षाकर्मियों ने घटनास्थल से 7 एके 47 राइफल, 2 इंसास राइफल, .303 राइफल, 1 एसएलआर, 1 कार्बाइन और भारी मात्रा में हथियार गोला-बारूद बरामद किए हैं। डीआरजी कांकेर एवं बीएसएफ 94वीं वाहिनी की संयुक्त कार्रवाई में मारे गए नक्सलियों में 15 महिला नक्सली भी शामिल थीं। इन सभी के शव बरामद कर लिए गए हैं। मारे गए 29 में से 28 नक्सली पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की वर्दी में थे। रिपोर्ट लिखे जाने तक शंकर राव, ललिता सहित 16 नक्सलियों की पहचान की जा चुकी थी, शेष की पहचान की जा रही थी। शंकर राव, ललिता पर 25-25 लाख, जबकि माधवी पर 8 लाख रुपये का इनाम था।

बीते चार माह के दौरान सुरक्षाबलों ने बस्तर संभाग में नक्सलियों के खिलाफ घेराबंदी को मजबूत करते हुए 24 नई छावनियां स्थापित की हैं, जिनमें 3 नई हैं। इनमें बीजापुर के 8, सुकमा के 6, नारायणपुर व कांकेर के 3-3 तथा दंतेवाड़ा के 1 शिविर शामिल हैं। जिस जगह मुठभेड़ हुई, वहां से बीएसएफ की कंपनी करीब 12 किलोमीटर दूर थी।

बीएसएफ के एक अधिकारी ने बताया कि रणनीतिक दृष्टि से स्थापित ये शिविर इस बात की ओर संकेत करते हैं कि केंद्रीय सुरक्षा बल पूरे इलाके से नक्सलियों का खात्मा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस इलाके से नक्सली धीरे-धीरे भाग रहे हैं। हम अपनी आक्रामक कार्रवाई तब तक जारी रखेंगे, जब तक पूरे बस्तर से नक्सल समस्या को उखाड़कर फेंक नहीं देंगे।

मुठभेड़ पर कांग्रेस का विलाप

कांग्रेस ने मुठभेड़ को फर्जी करार देते हुए इस पर सवाल उठाए हैं। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि भाजपा शासनकाल में फर्जी नक्सली मुठभेड़ होते हैं। बीते चार महीनों के दौरान ऐसे मामले बढ़े हैं। बस्तर में पुलिस भोले-भाले ‘आदिवासियों’ को डराती है। जैसे ही उनके बयान की चौतरफा आलोचना शुरू हुई, उन्होंने इससे पल्ला झाड़ते हुए कहा, ‘‘मैं जवानों को बहुत बधाई देता हूं। वे बहुत बहादुरी से लड़े और बड़ी सफलता हासिल की है।’’

मुठभेड़ को फर्जी बताने पर राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भूपेश बघेल को लताड़ लगाते हुए कहा कि यदि मुठभेड़ फर्जी है तो वह इसे साबित करें। उन्हें हर चीज पर प्रश्न चिह्न खड़ा नहीं करना चाहिए। इससे पहले उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक को भी काल्पनिक कहा था। राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा ने कहा कि हर बात में राजनीति ठीक नहीं है। बघेल को सुरक्षाबलों के जवानों और राज्य की जनता से माफी मांगनी चाहिए। यह पहला मौका नहीं है, जब देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी के नेता टुकड़े-टुकड़े गैंग या नक्सलियों के पक्ष में खुलकर सामने आए हैं। इससे पहले भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, राज बब्बर, रंजीत रंजन नक्सलियों की वकालत कर चुके हैं। कोई नक्सलियों को भटका हुआ साथी कहता है तो कोई यह कह कर सुरक्षाबलों को चिढ़ाता रहा है कि नक्सली बुरे नहीं होते। यहां तक कि राहुल गांधी भी नक्सलियों को क्लीन चिट दे चुके हैं।

हत्यारों की ढाल अर्बन नक्सली

मोटे तौर पर समझा जाए तो आंध्र प्रदेश के नक्सलियों के दो गढ़ हैं। पहला, आंध्र प्रदेश का मैदानी क्षेत्र, जिसमें निजामाबाद, करीमनगर, वारंगल, मेडक, हैदराबाद, नलगोंडा जिले शामिल हैं। दूसरा क्षेत्र है दंडकारण्य, जिसमें सीमांध्र्र/तेलंगाना के आदिलाबाद, खम्मम, पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्तनम, ओडिशा का कोरापुट, महाराष्ट्र के भण्डारा, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, छत्तीसगढ़ के बस्तर, राजनांदगांव तथा मध्य प्रदेश के बालाघाट, मंडला जिले शामिल हैं। नक्सल प्रभावित दंडकारण्य कुल 1,88,978 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। नक्सली गुटों ने आपस में हाथ मिलाने के बाद अबूझमाड़ क्षेत्र को अपना ठिकाना बनाया है। गुरिल्ला जोन और गुरिल्ला बेस के बीच केवल शाब्दिक अंतर नहीं है। गुरिल्ला जोन को माओवाद प्रभावित इलाका कह सकते हैं यानी वह क्षेत्र जहां नियंत्रण के लिए संघर्ष हो रहा है।

मध्य माड़ इलाके को छोड़कर बस्तर संभाग के बहुतायत सघन वन क्षेत्र गुरिल्ला जोन के अंतर्गत आते हैं, जो नक्सलियों का आधार क्षेत्र है। यहां सुरक्षाबल आसानी से नहीं घुस सकते हैं। यहां नक्सलियों की एक समानांतर सरकार है, जिसे वे ‘जनताना सरकार’ कहते हैं। लेकिन धीरे-धीरे उनका यह प्रभाव क्षेत्र भी दरकने लगा है और बस्तर नक्सलियों का आखिरी गढ़ बच गया है। यदि अबूझमाड़, बीजापुर और सुकमा के अंदरूनी इलाकों में सिमटे नक्सलियों के आधार क्षेत्र को समाप्त कर दिया जाए, तो नक्सली संगठनों के लिए दूसरा आधार क्षेत्र बनाना कभी संभव नहीं हो सकेगा। इसलिए वे अपने इस गढ़ को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक देंगे।

यह लड़ाई केवल बंदूक से नहीं लड़ी जा सकती, क्योंकि शहरी नक्सली इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं। कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा ने एक साक्षात्कार में कहा था कि सलवा जुड़ूम की लड़ाई हम जमीन पर नहीं हारे, बल्कि दिल्ली के पावर पाइंट प्रेजेंटेशनों से हार गए। विवेचना का प्रश्न है कि जो लोग सलवा जुड़ूम के सशस्त्र संघर्ष के खिलाफ थे, वही माओवादियों के समर्थन में क्यों मुखर रहते हैं? इतना ही नहीं, नक्सली कैडर हमेशा मिलता रहे, इसके लिए शहरी नक्सलियों द्वारा हजारों साल से सह संबद्ध 30 से अधिक वनवासी जनजातियों को फांकों में बांटने की कोशिश हो रही है। यही प्रयास आदिम भाषा-बोली के साथ भी किया जा रहा है। आदिम देवगुड़ियां-मातागुड़ियां और घोटुल अब वीरान हो गए हैं। गायता, माझी, ओझा सब महत्वहीन हो गए हैं और समाज में अपनी परंपरागत जगह खोने लगे हैं।

सरकार की रणनीति

नक्सलियों के खिलाफ त्रिआयामी रणनीति के तहत कार्रवाई की गई। इसमें नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए कुशल रणनीति, राज्य और केंद्र सरकार के बीच बेहतर समन्वय और विकास के माध्यम से जनभागीदारी सुनिश्चित करना शामिल है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सैन्य बलों का बनोबल ऊंचा रखने के लिए जरूरी कदम तो उठाए ही, उन्हें बेहतर हथियार और आधुनिक तकनीक भी उपलब्ध कराई। साथ ही, नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ लगातार बैठकें कीं। राज्य की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करते हुए केंद्र ने अनेक विकास कार्यों को गति दी, जिससे नक्सली इलाकों में तेजी से सड़कों, बुनियादी ढांचों का विकास और संचार सुलभ हुआ है।

नक्सलियों पर अंकुश लगाने की केंद्र की इच्छाशक्ति को इसी से समझा जा सकता है कि जब सरकार पूरी तरह आश्वस्त हो गई कि वाम-अतिवाद कोई सामाजिक-आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि इसके विशुद्ध राजनैतिक कारक हैं और यह लोकतंत्र के विरुद्ध सीधी, किंतु छद्म लड़ाई है। इसके बाद ही सरकार ने उन पर नकेल कसने की पहल की। नक्सल दखल को कम करने के लिए उनके ‘सुरक्षा वैक्यूम तथा कोर एरिया’ को कम करने की जरूरत महसूस की गई, क्योंकि भौगोलिक और प्राकृतिक कारणों से कोर एरिया नक्सलियों की ताकत होते हैं। इसलिए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की घेराबंदी करते हुए लगातार सुरक्षाबलों के नए शिविर स्थापित किए गए। जरूरत पड़ने पर शिविरों के स्थान भी बदले गए।

चार नए ज्वाइंट टास्क फोर्स शिविर के साथ सीआरपीएफ की अनेक जवानों को पुन: तैनात किया गया। कुछ जवानों को अन्य राज्यों से निकाल कर उन परिक्षेत्रों में प्रतिस्थापित किया गया, जो माओवादी कोर एरिया माने जाते हैं। इसके अलावा, प्रतिरोधात्मक या रक्षात्मक नीति की जगह आक्रामक नीति अपनाई गई। सुरक्षाबलों ने नए तरीकों और योजनाओं से चुनौती देकर माओवादी थिंक टैंक को चौंका दिया है। सैन्य बलों की विशेषज्ञता और नॉलेज शेयरिंग की सहायता से केंद्रीय तथा राज्यों पुलिस बलों में विशेष आॅपरेशन दलों का गठन किया गया। माओवादी क्षेत्र कठिन होने तथा बार-बार उनके द्वारा आम लोगों को ढाल बनाने वाले गुरिल्ला तरीकों से निपटने के लिए सरकार ने सैन्य बलों को हवाई सुविधा भी मुहैया करा रही है। आपरेशन में मदद और घायलों को निकालने के लिए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हेलीकाप्टर तैनात किए गए हैं।

सरकार आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर नक्सलियों का दमन कर रही है। इसके लिए लोकेशन, फोन, मोबाइल, साइंटिफिक कॉल लॉग्स, सोशल मीडिया विश्लेषण आदि के लिए विभिन्न तकनीकी और फॉरेंसिक संस्थाओं से सहयोग लिया जा रहा है। इस प्रकार, केंद्र सरकार माओवाद की जड़ पर प्रहार कर रही है, जो राज्य सरकार के साथ समन्वयन के बिना संभव नहीं था। केंद्र सरकार बिना भेदभाव के राज्यों को मनोवांछित सुविधाएं व तकनीक दे रही है, नक्सल प्रभावित राज्यों को सीआरपीएफ, हेलीकॉप्टर, प्रशिक्षण तथा राज्य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए धन, उपकरण, हथियार और खुफिया जानकारी उपलब्ध करा रही है। सरकार द्वारा उठाए गए ये कदम किस तरह नक्सलियों की कमर तोड़ रहे हैं, उसे समझने के लिए 2022 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के निकट माओवादी थिंक टैंक दिलिप तेलतुम्बडे को धराशायी करने से लेकर कांकेर की घटनाओं को समग्रता से देखना होगा।

विकास बना हथियार

छत्तीसगढ़ में पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त प्रयासों से नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगा है। सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन एवं क्षेत्र में शांति व्यवस्था स्थापित करने के साथ-साथ विकास कार्यों को गति प्रदान करने के लिए भी सुरक्षाबलों की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। सुरक्षाबलों द्वारा सुरक्षा का माहौल निर्मित करने के कारण नक्सली और उनके समर्थक समाज की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं।

सुरक्षाबलों की कार्रवाई में दिसंबर 2023 से 10 अप्रैल, 2024 तक 64 मुठभेड़ों में 80 नक्सली मारे गए और 304 गिरफ्तार किए गए। इस वर्ष अभी तक नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षाबलों के 24 शिविर स्थापित किए गए हैं, जबकि आने वाले दिनों में 29 नए आधार शिविरों स्थापित किए जाने हैं। साथ ही, सुरक्षाबलों के नक्सल विरोधी अभियानों एवं सरकार की पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर बीते चार महीनों में 165 नक्सली आत्मसर्मपण कर चुके हैं।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बेहतर संपर्क स्थापित करने के लिए सड़क और पुल बनाए जा रहे हैं। इस वर्ष अभी तक 90 किलोमीटर लंबी 16 सड़कों, 2 पुलों और 72 पुलियों का निर्माण किया गया है। 118 मोबाइल टावर भी स्थापित किए गए हैं। सुरक्षाबलों के प्रत्येक शिविर के आसपास के 5-5 गांवों तक नियद नेल्ला नार (आपका अच्छा गांव) योजना सहित सभी सरकारी योजनाओं को पहुंचाया जा रहा है। सामुदायिक पुलिसिंग के कारण भी ग्रामीणों का नक्सलियों से मोह भंग हो रहा है। राज्य में नक्सली घटनाओं पर कुशल अनुसंधान एवं अभियोजन की प्रभावी कार्रवाई के लिए राज्य अन्वेषण एजेंसी का गठन किया गया है।

यह रास्ता नदी के पार नक्सलियों के गढ़ की ओर जाता है, पर नक्सली पुल नहीं बनने दे रहे हैं। (दाएं) छोटेबेठिया के वनांचल के विकास को बाधित करने वाला धरना स्थल

आसान नहीं है राह

बस्तर में नक्सल समस्या के समाधान में सबसे बड़ी बाधा है निरपेक्षता। यह लड़ाई वैसे तो वनवासियों के लिए है, लेकिन इसमें वे कहीं नहीं दिखते हैं। वे किसी भी विमर्श या अपने समाज से जुड़े संवेदनशील विमर्शों का हिस्सा नहीं बनते हैं। वह चाहे लेखन हो, पत्रकारिता हो या आंदोलन, स्पष्ट विभाजक रेखा खींच कर उन्हें दो हिस्सों में बंटा देखा जा सकता है। यह भी गंभीर परिस्थिति है, क्योंकि निरपेक्षता का अभाव वैचारिक लड़ाई को भी सरकार बनाम नक्सली बना देता है। इसकी आड़ में छद्म समाजसेवा और नकली आंदोलन के कतिपय मुखौटे भी अपनी रोटियां सेंक रहे हैं या बस्तर में अपने लिए फिर से अवसर तलाशने के प्रयास में हैं।

यही सही समय है, जब नक्सल क्षेत्रों की स्थितियों के मद्देनजर पुलिस सुधार पर गंभीरता से चर्चा हो, सुरक्षाबलों को आदिवासी क्षेत्रों में किस तरह काम करना चाहिए एवं उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसका प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर इसमें मनोवैज्ञानिकों का सहयोग भी लिया जाए। नक्सलवाद तो बस्तर अंचल का नासूर है, जिसे टीमवर्क से ही खत्म किया जा सकता है। इसमें शासन, प्रशासन, पत्रकार, सुरक्षाबल और आम-लोग सभी आते हैं। इस लड़ाई को जीतने के लिए मिशनरियों पर भी नजर होनी चाहिए, अनेक प्रकार की बुद्धिजीवियों, सफेदपोशों से भी भी लड़ना पड़ेगा। वह गिरोह, जिसमें कथित मानवाधिकारवादी, कथित गांधीवादी, पत्रकार, वकील और प्राध्यापक भी शामिल हैं, उन्हें भी कठघरे में खड़ा करना होगा। कांकेर में मिली सफलता उत्साहित करती है, लेकिन अभी भी बहुत काम बाकी है।

विकास में बाधक नक्सली

छोटेबेठिया थाना क्षेत्र से नक्सली इलाका शुरू हो जाता है। हिदूर और कलपर इसी थाना क्षेत्र में पड़ता है। गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था। कहा जाता है कि पूरा गांव नक्सली है। गांव वाले कुछ भी बोलने को तैयार नहीं थे। जो थोड़े बहुत जागरूक हैं, उन्होंने दबी जुबान में कहा कि हम तो शांति और विकास चाहते हैं, लेकिन नक्सली हमें डरा-धमका कर रखते हैं। इनके खिलाफ कुछ बोलने का मतलब है, अपना गला कटवाना। वे पुलिस का मुखबिर बताकर हमें मारते-पीटते हैं। नदी के उस पार हिदूर से लेकर कलपर तक पूरा नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। बरसात में नदी उफना जाती है, तो दो-तीन महीने के लिए संपर्क टूट जाता है। इसी समय नक्सलियों से राहत मिलती है।

छोटेबेठिया में सुखरंजन की दवा की दुकान है। वह कहते हैं कि इस आपरेशन से इलाके के लोग मन ही मन खुश हैं, लेकिन नक्सलियों के खौफ से कोई बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। यहां के लोग नक्सल समस्या से ऊब चुके हैं और इससे छुटकारा पाना चाहते हैं। अपने क्षेत्र में विकास और शांति चाहते हैं। यहां के लोग अपना व अपने परिवार का उज्ज्वल भविष्य चाहते हैं, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं।

सुखराम भी चाहते हैं कि जितनी जल्दी हो, इनका खात्मा किया जाए, क्योंकि वे विकास में बाधक बने हुए हैं। वह कहते हैं, ‘‘नक्सलियों ने हमारे भविष्य को गहन अंधकार में धकेल दिया है। वे हम पर अत्याचार करते हैं। हम खुलकर नहीं बोल सकते, क्योंकि वे हमें मार डालेंगे।’’ 32 वर्षीय सुनीत आढ़ती हैं। वह कहते हैं कि क्षेत्र के लोग विकास और शांति चाहते हैं, लेकिन नक्सली इसके खिलाफ हैं। वे पुलिस का मुखबिर बता कर ग्रामीणों को प्रताड़ित करते हैं। घरों में घुस कर लूटपाट करते हैं। ऐसे लोगों का साथ कौन देगा? इस इलाके में उनके खिलाफ बोलने की अनुमति किसी को नहीं है। जो भी मुंह खोलता है, उसे ये मार देते हैं। यही कारण है कि जब इनके खिलाफ सुरक्षाबल कार्रवाई करता है, तो लोग मन ही मन खुश होते हैं।

60 वर्षीया सुषमा ने बताया कि अब लग रहा है कि इस इलाके से आतंक का सफाया होकर ही रहेगा। दिन दूर नहीं, जब इस इलाके में शांति आएगी। नेकराम बताते हैं कि धीरे-धीरे नक्सली इस इलाके में कमजोर हो रहे हैं। पहले इस पूरे इलाके में उनका खूब दबदबा था। लेकिन अब सुरक्षाबलों की कार्रवाई में लगातार वे मारे जा रहे हैं। उनका इलाका भी सिकुड़ता जा रहा है। हमें विश्वास है कि सरकार हमें नक्सलियों के प्रभाव से मुक्त करेगी और हम भी शांति और सुख-चैन से रह सकेंगे।

खत्म होती वनवासी संस्कृति

बस्तर का अबूझमाड़ कन्वर्जन की जकड़न में है। ओरछा तक पहुंचते ही साफ दिखता है कि वनवासी समाज और उनकी संस्कृति मटियामेट होने की कगार पर है। यही स्थिति बीजापुर और सुकमा जिले की है, विशेषकर नक्सल प्रभावित इलाके जहां सड़क नहीं जाती है। गायताओं, माझियों और गुनियाओं का सम्मान समाज के भीतर से जानबूझ कर समाप्त किया गया, क्योंकि ऐसा करते ही स्वत: ग्रामीण अपने देवता और आस्था से दूर होने लगते हैं। लेकिन इसके विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठाता है। इस मौन के पीछे एक बड़ा कारण है माओवादी तंत्र।

इस क्षेत्र में देशी-विदेशी एनजीओ की अभिरुचि और माओवादियों के बीच इन सभी का सहजता से काम कर पाना उस भयावह अवगुण्ठन की ओर भी इशारा करता है, जिसमें परोक्ष रूप से विदेशी पैसे का आगमन भी सम्मिलित है। इसके साथ ही अनेक समान उद्देश्य बस्तर में उस मित्र की तरह कार्य कर रहे हैं, जो एक-दूसरे के पूरक सिद्ध हों। हिन्दू और गैर हिन्दू जैसे जुमले उछाल कर बस्तर के सामाजिक समरसता वाले माहौल में अनावश्यक दरारें पैदा करने की कोशिश की जा रही है। इन दरारों को जितना चौड़ा किया जाएगा, वह नक्सलियों और मिशनरियों के काम करने के लिए उतना ही उर्वर हो जाएगा।

साक्षात्कार

‘छत्तीसगढ़ से उखाड़ फेंकेंगे नक्सल समस्या को’

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय कहते हैं कि सुरक्षाबलों ने ऐतिहासिक कार्य किया है। बस्तर का हालिया घटनाक्रम नक्सल इतिहास की सबसे बड़ी सफलता है। हमारे जवानों ने अराजक तत्वों के कुचक्रों को कुचलकर रख दिया है। पाञ्चजन्य के विशेष संवाददाता अश्वनी मिश्र ने कांकेर की मुठभेड़ और नक्सली गतिविधियों के संदर्भ में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से बातचीत की। प्रस्तुत हैं वार्ता के मुख्य अंश- 

लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक दो दिन पहले सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
देखिए, यह ऐतिहासिक सफलता है। मैं इस मुठभेड़ में शामिल सभी जवानों और सुरक्षा अधिकारियों को बधाई देता हूं। मैं कहना चाहता हूं कि छत्तीसगढ़ के नक्सल मामलों के इतिहास की यह सबसे बड़ी सफलता है। यह बिल्कुल सच है कि माओवादी लोकतंत्र में आस्था नहीं रखते और हर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को हिंसात्मक गतिविधि से प्रभावित करते हैं। इस मामले में भी ऐसा लगता है कि माओवादी चुनाव को प्रभावित करने का कुचक्र रच रहे थे। लेकिन हमारे जवानों ने उनकी साजिश को नेस्तोनाबूद किया है।

चुनाव को प्रभावित करने से आपका तात्पर्य क्या है?
इसमें दो मुख्य बातें हैं। एक यह कि बस्तर में पड़ा हर वोट नक्सलियों द्वारा गढ़े गए लोकतंत्र के विरुद्ध झूठे नैरेटिव को, दुष्प्रचार को ध्वस्त करता है। स्याही लगी अंगुलियों को काट देने का फरमान जारी करते हैं माओवादी, और फिर भी हमारे आदिवासी भाई-बहन जम कर वोट करते हैं। मैदानी क्षेत्रों से अधिक मत प्रतिशत बस्तर में होता है। पिछले लोकसभा चुनाव में हमारे विधायक भीमा मंडावी जी की हत्या कर दी गई थी। उसके दो दिन बाद ही चुनाव थे। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि दिवंगत विधायक का परिवार फिर भी कतार में खड़ा था वोट डालने के लिए। यह समर्पण है लोकतंत्र के प्रति बस्तर के आदिवासियों का।

दूसरा सवाल चुनावी संभावनाओं को प्रभावित करने को लेकर है। हम सभी जानते हैं कि आज देश भर में भाजपा के पक्ष में सबसे अधिक संभावना है। छत्तीसगढ़ में भी हम सभी 11 लोकसभा सीट जीतने के प्रति आश्वस्त हैं। ऐसे में नक्सली चुनावी संभावनाओं को प्रभावित कर किसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, यह कहने की आवश्यकता नहीं है। हाल ही में एक बड़े अखबार ने बाकायदा रिपोर्ट प्रकाशित थी की कि माओवादी लगातार भाजपा के खिलाफ दल विशेष के पक्ष में वोट करने का दबाव बनाते हैं। इससे अधिक क्या कहा जाए?

अभी राज्य व केंद्र में भाजपा की सरकार है। छत्तीसगढ़ जल्द से जल्द नक्सल मुक्त हो इसके लिए क्या कर रहे हैं?
भाजपा की सरकार विकास में विश्वास रखती है। इसलिए हम सदैव नक्सलियों से कहते हैं कि बंदूक छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो जाओ। हिंसा से किसी का भला नहीं होने वाला है। खून-खराबे का खेल बंद हो। हम सदैव बातचीत के लिए तैयार हैं, पर हिंसा और जुल्म करके बात नहीं होगी। बात होगी शांति की, विकास की, समाज के सरोकार की। हमारी सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कई विकासकारी योजनाएं चलाती है। हर जगह विकास सुनिश्चित हो, इसके लिए हम काम कर रहे हैं। हमने ‘नियद नेल्ला नार’ अर्थात आपका अच्छा गांव योजना प्रारंभ की है, जिसमें हमारे ‘विकास कैम्प’ के आसपास के गावों तक हम शासकीय सुविधाओं और योजनाओं को पहुचा रहे हैं। लेकिन हां, यह भी किसी को गलतफहमी न हो कि हम हिंसा को सहन कर लेंगे। हम हर तरह की हिंसा से कड़ाई से निपटेंगे। हम माननीय प्रधानमंत्री जी के इच्छा के अनुरूप इस समस्या के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध हैं। जैसा कि भारत के माननीय गृह मंत्री जी ने आह्वान किया था – हमारी प्राथमिकता बस्तर को नक्सल मुक्त करने की है। हम सब उसी दिशा में काम कर रहे हैं।

आज छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की क्या स्थिति है? कितने जिले इससे प्रभावित हैं और कितने मुक्त हुए?
लगभग सौ दिनों में 63 मुठभेड़ों में 54 नक्सलियों के शव 77 हथियार और 135 विस्फोटक बरामद किए गए हैं। 304 माओवादियों को गिरफ्तार करने में सफलता मिली है। 165 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। नक्सल संबंधी कुल 26 प्रकरणों को एनआईए को सौंपा गया है। विगत 4 माह में 24 अग्रिम सुरक्षा शिविरों की स्थापाना की गई है। निकट भविष्य में 29 नए आधार शिविरों की स्थापना प्रस्तावित है।

 सुरक्षाबलों ने जान पर खेलकर इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया और खूंखार नक्सलियों को मार गिराया। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इसे फर्जी करार दे रहे हैं!

कांग्रेस का चरित्र ही है कि वह हर सही काम पर सवाल उठाती है। वह सुरक्षाबलों के शौर्य पर सवाल दागती है। उनसे साक्ष्य मांगती है। जब पूरा देश अपने जवानों के साथ खड़ा होता है तो कांग्रेस के नेता सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मांगते हैं। इस बार वे मुठभेड़ का सुबूत मांग रहे या इसे फर्जी करार दे रहे हैं तो कोई नई बात नहीं है। यह इनके चरित्र में है। मैं विपक्ष के लोगों से सिर्फ  इतना कहना चाहूंगा कि कुछ जगह राजनीति नहीं करनी चाहिए।

नक्सल विचारधारा पूरे समाज के लिए घातक है। ऐसे में उसके साथ किसी भी रूप में  खड़ा होकर कांग्रेस के नेता समाज को सही सन्देश नहीं दे रहे हैं। हम हर समूह से बातचीत के लिए तैयार हैं। अगर विपक्ष भी उस समूह से सहानुभूति रखता है, तो सीधे-सीधे सामने आए। हम उससे भी बातचीत करने को तैयार हैं, लेकिन मेरे आदिवासी भाई-बहनों की जान, उनके जंगल और जमीन की रक्षा हम हर कीमत पर करेंगे, उससे कोई भी समझौता नहीं करेंगे।

 

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