7 मार्च 2009। इसी दिन बीजू जनता दल के मुखिया नवीन पटनायक ने भारतीय जनता पार्टी के साथ 11 साल से चले आ रहे गठबंधन को एकतरफा तोड़ दिया था। कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए 1998 में यह गठबंधन हुआ था। इस 11 साल के कालखंड में बीजद ने अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा को कमजोर करने के साथ—साथ अपनी शक्ति में बढ़ोतरी की और जब उसे लगा कि अब भाजपा की आवश्यकता नहीं है, उसने गठबंधन तोड़ दिया।
नवीन पटनायक ने तब स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद कंधमाल में हुई हिंसा का बहाना बना कर तथा भाजपा को ‘सांप्रदायिक’ बताकर गठबंधन तोड़ा था। अब समय चक्र घूम चुका है और 15 साल बीत चुके हैं। 2024 के आम चुनाव से पूर्व बीजद उसी भाजपा से गठबंधन करने के प्रयास में लगा था, जिसे उसने कभी सांप्रदायिक बता कर गठबंधन तोड़ दिया था।
हालांकि इसमें बीजद को सफलता नहीं मिली। जो पार्टी लगातार 24 साल से शासन में हो तथा दो तिहाई सीटों पर जीतने का दावा कर रही हो, उसे किसी और पार्टी से गठबंधन करने की आवश्यकता महसूस हो रही थी, ओडिशा में इस बार राजनैतिक स्थिति का आकलन इसी से किया जा सकता है।
परेशानी में है बीजद
बात 2009, 2014 या फिर 2019 चुनाव की हो, बीजद हर बार चुनाव में काफी आश्वस्त दिखता रहा है। लेकिन अब पहली बार बीजद को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पिछले 24 साल से सत्ता में होने के बाद इस बार उसे सत्ता विरोधी हवा का सामना करना पड़ रहा है। नवीन पटनायक की संगठन पर पकड़ भी ढीली पड़ रही है। इससे पहले वह टिकट से वंचित नेताओं को समझा-बुझा लेते थे, लेकिन इस बार टिकट न मिलने की स्थिति में बागियों के खड़े होने की अधिक संभावना दिख रही है।
चुनाव के केन्द्र में पांडियन
इस बार ओडिशा के चुनाव के केन्द्र में भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक सेवानिवृत्त अधिकारी वीके पांडियन हैं। वे मूल रूप से तमिलनाडु के हैं। वह मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के सचिव रहे हैं। उनकी कार्यशैली विवादों में रही है। वह काफी दिनों तक पर्दे के पीछे से बीजू जनता दल को नियंत्रित कर रहे थे। लेकिन उन्होंने विगत छह माह में ओडिशा के सभी जिलों का हेलिकॉप्टर से दौरा किया और यह बताया कि वह लोगों की शिकायत सुनने के लिए दौरा कर रहे हैं। सभी जिलों में अनेक स्थानों पर सभाएं आयोजित कीं।
सभा के मंच पर वह अकेले होते और लोगों से सीधा संवाद कर घोषणाएं करते। स्थानीय बीजद मंत्री व विधायकों की इस पूरे प्रक्रिया में काफी अनदेखी की गई। स्थानीय विधायक व मंत्री पांडियन की सभाओं को सफल करने व भीड़ जुटाने के कार्य में लगे रहे। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि पांडियन पूरे प्रदेश में इस तरह का अभियान चला कर अपने आप को नवीन पटनायक के उत्तराधिकारी होने का संदेश देना चाह रहे थे। राजनीतिक में उतरने पर बाद विवाद होने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी से स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। वर्तमान में वह बीजद के नेता हैं।
24 साल सत्ता में रहने के बावजूद लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए बीजद के पास उम्मीदवार नहीं हैं। अभी तक बीजद ने 21 में से 20 लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा की है। 20 में से छह प्रत्याशी ऐसे हैं, जो कुछ दिन पहले भाजपा से या फिर कांग्रेस से बीजद में गये हैं। कुछ तो ऐसे हैं, जिन्होंने सुबह पार्टी छोड़ी व उसी दिन दोपहर को उन्हें लोकसभा के लिए बीजद का टिकट मिल गया। उदाहरण के लिए भृगु बक्सीपात्र ने सुबह भाजपा से त्यागपत्र दिया था और दोपहर में उन्हें ब्रह्मपुर लोकसभा सीट से बीजद प्रत्याशी बना दिया गया। 24 साल से सत्ता में रहने वाले बीजद की ऐसी स्थिति कभी नहीं रही।
चुनावी मुद्दों का अभाव
बीजद के पास इस बार मुद्दों का अभाव है। 2009 के बाद से ही बीजद केन्द्र सरकार द्वारा ओडिशा की अनदेखी किये जाने को मुद्दा बनाता आ रहा है। लेकिन नरेन्द्र मोदी के दस साल के कार्यकाल में बीजद के पास यह मुद्दा बचा ही नहीं है। इतना ही नहीं, नवीन पटनायक भी प्रधानमंत्री के काम पर टिप्पणी करते हुए उन्हें दस में से 8 अंक दे चुके हैं। हालांकि बीजद के नेता अपनी सरकार द्वारा 24 साल में किये गये कार्यों के आधार पर वोट मांग रहे है, लेकिन यह भी सत्य है कि 24 साल के लगातार शासन के बाद भी ओडिशा विकास के अनेक पैमानों पर अन्य राज्यों की तुलना में काफी खराब स्थिति में। बीजद के पास मुद्दों का कितना अभाव है, उसका अंदाजा उनके एक वरिष्ठ मंत्री रणेन्द्र प्रताप स्वाईं के उस बयान से लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा, नवीन पटनायक के परिवार में कोई नहीं है। इसे भावनात्मक मुद्दे के रूप में उठाने का प्रयास किया जा रहा है, जो पहले के किसी भी चुनाव में नहीं देखा गया था।
हिन्दू विरोधी तुष्टीकरण नीति
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अनिल बिश्वाल बताते हैं कि भाजपा इस बार नवीन पटनायक सरकार की हिन्दू विरोधी नीति व तुष्टीकरण को चुनावी मुद्दा बनायेगी। राज्य में आस्था के सबसे बड़ेकेन्द्र पुरी स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर के कुप्रबंधन, पुरी मंदिर की जमीन को बेचा जाना, पुरी मंदिर के रत्नभंडार की चाभी खो जाना, मंदिर के चार द्वारों को खोलने के बजाय सिर्फ एक द्वार से श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति देने आदि विषय चर्चा में हैं। बीजद सरकार पुरी के शंकराचार्य व पुरी के गजपति महाराज का भी मंदिर प्रबंधन के मामले में अनदेखी करती है। इसके अलावा सरकार और प्रशासन की आंखों के सामने राज्य में धड़ल्ले से गोवंश की तस्करी होती है, लेकिन सब मूक दर्शक बने रहते हैं। गैरकानूनी तरीके से कन्वर्जन को रोकने के लिए कानून होने के बावजूद इसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है, जिसके चलते व्यापक पैमाने पर कन्वर्जन हो रहा है। ये सभी मुद्दे इस बार जनता के सामने हैं।
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प्रधानमंत्री की लोकप्रियता
2019 में ओडिशा के लोगों की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति प्यार की झलक साफ देखने को मिली थी। 2014 में भाजपा को जहां 21.9 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे, वहीं 2019 में वोट प्रतिशत बढ़कर 38.9 प्रतिशत हो गया। बीजद का वोट प्रतिशत 2014 में 44.8 से घटकर 2019 में 43.3 प्रतिशत हो गया। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2014 में जहां 26.4 था वहीं 2019 आते आते यह घटकर 14 प्रतिशत रह गया। इस कारण 2014 के चुनाव की तुलना में बीजद की सीटें 2019 में 20 से घटकर 12 रह गईं, जबकि भाजपा की सीटों की संख्या 1 से बढ़कर 8 हो गई। हालांकि विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मतदान लगभग 33 प्रतिशत रहा। इस कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर लोकसभा के लिए ओडिशा के लगभग छह प्रतिशत मतदाताओं का स्विंग देखने को मिला। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि 2019 के बाद ओडिशा की जनता में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और बढ़ी है। इस कारण 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा बीजद को पछाड़ सकती है ।
पश्चिम ओडिशा में भाजपा का संगठन पहले से ही काफी शक्तिशाली रहा है। इस कारण पार्टी ने पश्चिम ओडिशा की संबलपुर, वरगढ़, बलांगीर, कलाहांडी, सुंदरगढ़ की सीटें भाजपा ने जीती थीं। इसके साथ साथ भुवनेश्वर, बालेश्वर व मयूरभंज की सीटें भी भाजपा की झोली में आई थीं। पुरी सीट से संबित पात्रा काफी कम मतों से पराजित हुए थे। ढेंकनाल, भद्रक व क्योंझर सीट पर भी बहुत कम अंतर रहा था। इस बार भाजपा राज्य में अधिक लोकसभा सीटें जीतने की संभावना को लेकर चुनाव में उतरी है।
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