13 अप्रैल, 2024 को भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर 40 गौरवशाली वर्ष पूरे किए। 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के तहत सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में लेकर भारतीय सेना ने अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प की अनूठी मिसाल कायम की। हिमालय की काराकोरम पर्वत श्रृंखला में स्थित सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। यह क्षेत्र समुद्र तल से 5,400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके अलावा यह अपनी कठिन परिस्थितियों और बर्फीली चोटियों के लिए भी जाना जाता है। 1984 से यानी पिछले 40 सालों से इस इलाके पर नियंत्रण को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद चल रहा है। लेकिन जब से भारतीय सेना यहां पहुंची है तब से यहां भारत का तिरंगा शान से लहरा रहा है।
ऐसे में भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के 40 साल पूरे होने पर एक वीडियो जारी किया है। जिसमें दिखाया गया कि दुर्गम इलाकों में भारतीय सेना के जवान बड़ी सतर्कता के साथ वहां खड़े हैं। वीडियो में भारतीय सेना के जवानों को सफेद चादर से ढके ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ते हुए दिखाया गया है। वीडियो में ‘सियाचिन ग्लेशियर’ में ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल के सफर को दिखाया गया है। सियाचिन ग्लेशियर पर फहराए गए तिरंगे को भी शेयर किया गया है।
पाकिस्तानी जनरलों ने अपना दावा मजबूत करने के लिए 1983 में सियाचिन में सेना की एक टुकड़ी भेजने का फैसला किया। भारतीय सेना के पर्वतारोहण अभियानों के कारण उन्हें यह डर सताने लगा कि कहीं भारत सियाचिन पर कब्जा न कर ले। इस कारण उन्होंने पहले अपनी सेना भेजने का निर्णय लिया। इसके लिए पाकिस्तान ने लंदन के एक सप्लायर को ठंड से बचाने वाले कपड़ों का ऑर्डर दिया था, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वही सप्लायर भारत को भी ठंड से बचाने वाले कपड़े सप्लाई करता है।
जब भारत को इस बात का पता चला तो उसने पाकिस्तान से पहले सियाचिन में सेना भेजने की योजना तैयार की। भारत ने उत्तरी लद्दाख में सेना और ग्लेशियर के कई अन्य हिस्सों में अर्धसैनिक बलों को तैनात करने का निर्णय लिया। इसके लिए 1982 में अंटार्कटिका में एक अभियान में भाग लेने वाले ऐसे सैनिकों का चयन किया गया, जो ऐसी विपरीत परिस्थितियों में रहने के आदी थे।
भारतीय सेना ने पाकिस्तान की निर्धारित तिथि 17 अप्रैल से केवल चार दिन पहले 13 अप्रैल 1984 को पाकिस्तानी सेना को हराने और ग्लेशियर पर कब्जा करने का फैसला किया। इस ऑपरेशन का कोडनेम ‘ऑपरेशन मेघदूत’ रखा गया। इस ऑपरेशन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून को दी गई। वह उस समय जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर 15 कॉर्प के जनरल कमांडिंग ऑफिसर थे। भारतीय सेना के कर्नल नरिंदर कुमार के नेतृत्व में चढ़ाई शुरू हुई।
ऑपरेशन मेघदूत की शुरुआत वायु सेना के जहाजों के माध्यम से सेना के जवानों को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के साथ हुई। इसके लिए वायुसेना ने सामान ढोने के लिए एनएन-12, एएन-32 और आईएल-76 विमान तैनात किए, जो सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित एयरबेस पर सैनिकों और सामान को पहुंचाने लगे। इसके बाद एमआई-8, चेतक, एमआई-17 और चीता हेलीकॉप्टरों के जरिए सेना को वहां से आगे पहुंचाया गया।
इस ऑपरेशन का पहला चरण मार्च 1984 में शुरू हुआ, जब सेना ने ग्लेशियर के पूर्वी बेस पर अपना पहला कदम रखा। इस टीम का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल डीके खन्ना ने पाकिस्तानी रडार से बचने के लिए आगे का रास्ता पैदल ही तय करने का फैसला किया था। इसके लिए सेना को कई टुकड़ियों में बांट दिया गया। मेजर आरएस संधू के नेतृत्व में पहली टुकड़ी को ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए आगे भेजा गया।
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