इस्लामिक कट्टरता का एक और उदाहरण, हिजाब के लिए कानून और सख्त बनाएगा ईरान, 'नूर' अभियान शुरू
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इस्लामिक कट्टरता का एक और उदाहरण, हिजाब के लिए कानून और सख्त बनाएगा ईरान, ‘नूर’ अभियान शुरू

हिजाब नहीं पहनने पर कथित मॉरल पुलिस ने महसा अमीन नाम की मुस्लिम लड़की को इतना पीटा कि पहले तो वो कोमा में चली गई और फिर उसकी मौत हो गई।

by सोनाली मिश्रा
Apr 15, 2024, 02:32 pm IST
in विश्लेषण
Iran tighten the hijab rule

प्रतीकात्मक तस्वीर

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ईरान की कट्टरपंथी सरकार इन दिनों सुर्खियों मे है। इजरायल पर हमला कर दिया गया है और साथ ही कई देशों को और भी धमकियाँ दी हैं। मगर इसके साथ ही ईरान ने अपने देश की महिलाओं पर भी शिकंजा कसा है। ईरान मे महिलाओं के लिए हिजाब को लेकर बहुत ही कड़े नियम हैं और 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद हिजाब पहनने को लेकर कई नियम निर्धारित किये गए थे।

यह भी अभी तक लोगों की स्मृति में है कि कैसे महसा अमीन की पुलिस हिरासत में मौत के बाद ईरान में अनिवार्य हिजाब को लेकर युवाओं ने विद्रोह कर दिया था। जगह-जगह आंदोलन हुए थे, मगर दुर्भाग्य से ईरान की सरकार ने अनिवार्य हिजाब का विरोध करने वाली महिलाओं और पुरुषों को जेल मे डाल दिया था। न जाने कितने लोगों को फांसी दे दी गई थी और न जाने कितनी लड़कियां अभी तक जेल मे हैं।

इसे भी पढ़ें: ईरानी हमले का मुंहतोड़ जबाव देगा इजरायल, वॉर कैबिनेट में बनी सहमति, समय और हमले के स्केल पर मंथन

ईरान द्वारा आंदोलन को इस प्रकार तोड़ने को लेकर कई देशों ने आलोचना की थी, मगर ईरान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा था, बल्कि “मॉरल पुलिस” को और अधिकार दे दिए गए थे, जिसके चलते कई और घटनाएं घटित हुई थीं। इसमें एक किशोरी को हिजाब न पहनने पर मेट्रो मे मॉरल पुलिस ने इतना पीटा था कि वह कोमा में चली गई थी और फिर उसके कुछ ही समय बाद वह जीवन की जंग हार गई थी। इस घटना की भी निंदा हुई थी, मगर निंदा से क्या जानें वापस आ सकती हैं?

हिजाब पर कानून और सख्त करेगा ईरान

इस्लामिक देश ईरान में अब हिजाब को लेकर अपने कानूनों को और सख्त करने जा रहा है। इसको लेकर उसने “नूर” नामक अभियान शुरू किया है। ये उन लड़कियों पर नियंत्रण करने के लिए शुरू किया है, जो अनिवार्य हिजाब का विरोध करती हैं। पुलिस चीफ अब्बास अली ने घोषणा की कि 13 अप्रैल 2024 से उन लड़कियों/महिलाओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी, जो हिजाब ड्रेस कोड का विरोध करती हैं। उन्हें पहले चेतावनी दी जाएगी और यदि वह नहीं मानती हैं तो फिर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।

रोचक बात यह है कि इस अभियान का नाम नूर है, जिसका अर्थ होता है प्रकाश। गश्त-ए-इरशाद नाम से बनी मॉरल पुलिस की यह जिम्मेदारी है कि वह हिजाब के कानूनों का पालन कराए और कई बार मीडिया में भी यह रिपोर्ट्स आई थीं कि कैसे वाहनों को जब्त किया गया और कैसे उन सभी लोगों को दंडित किया गया, जो बिना हिजाब वाली महिलाओं को लेकर जा रहे थे।

हिजाब को लेकर जहां, आज इस्लामिक सत्ता महिलाओं के शरीर को एक नया जंग का मैदान बना रही है और महिलाओं पर जबरन हिजाब पहनने को लेकर नए कानून बना रही है तो वहीं ईरान मे एक समय ऐसा भी था, जब सार्वजनिक स्थानों से हिजाब को बिल्कुल प्रतिबंधित कर दिया गया था। ईरान के शासक रेज़ा शाह पहलवी ने वर्ष 1936 में हिजाब को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था। यह कथित रूप से आधुनिकता की ओर बढ़ाया गया एक कदम था।

यह कानून पाँच वर्ष तक चला था। उसके बाद वर्ष 1941 से लेकर वर्ष 1979 तक हिजाब को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं था कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं, मगर कहा जाता है कि कई महिलाएं राजशाही और कथित पितृसत्ता का विरोध करने के लिए हिजाब पहनती थीं। या फिर वह अपने परिवार की इज्जत के लिए हिजाब पहनती थीं। इसे पहनने को या न पहनने को लेकर कानूनी रूप से कोई बाध्यता नहीं थी।

मगर जैसे ही वर्ष 1979 में इस्लामिक क्रांति आई, उसके बाद से महिलाओं के लिए हिजाब को लेकर नियम बना दिए गए। अब वे नियम इस सीमा तक सख्त हो गए हैं कि अब उन लोगों की जान भी प्रशासन के लिए मायने नहीं रखती है जो हिजाब का विरोध करते हैं।

महसा अमीन की मृत्यु के बाद जिस प्रकार से जनता में विद्रोह हुआ था, उसकी आंच ऐसा नहीं है कि शासन ने महसूस नहीं की थी। यही कारण था कि कई दिनों तक मॉरल पुलिस ने जानबूझकर ही शायद कोई कदम नहीं उठाया था या कहें मॉरल पुलिस की प्रोफ़ाइल को उतना महत्व नहीं दिया गया था। यह भी हो सकता है कि लोगों का गुस्सा शांत होने की प्रतीक्षा की गई हो। अब ये नियम और सख्त कर दिए गए हैं और सबसे दुर्भाग्य की बात यही है कि ये नियम सभी ईरानी महिलाओं के लिए हैं, फिर चाहे उनका धार्मिक विश्वास कोई भी हो।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या ईरान की महिलाओं को हिजाब के नाम पर कट्टरता का शिकार नहीं बनाया जा रहा है, क्या सारी लड़ाई उनकी देह के इर्द-गिर्द नहीं लड़ी जा रही है? यह एक ऐसा मामला है, जिस पर तमाम वे लोग भी मौन हैं, जो ईरान के इजरायल पर हमले का जश्न मना रहे हैं। क्या ऐसे कानूनों को लेकर वास्तव मे इतना सन्नाटा हो सकता है, जो महिलाओं के प्रति दमनकारी सोच रखकर बनाए जा रहे हैं?

Topics: ईरानIranfundamentalismकट्टरपंथईरान नूर अभियानइस्लामिक क्रांतिiran nour campaign#hijabislamic revolution#islamइस्लामहिजाब
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