1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के मात्र 11 वर्ष बाद ही राष्ट्रनिष्ठा महिलाओं ने भी राष्ट्र सेविका समिति संगठन की स्थापना कर यह सिद्ध कर दिया कि बात चाहे परिवार की हो या राष्ट्र की इस हवन यज्ञ में वे भी आहुति बन कार्य करेंगी।
इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है और पूरे देश में महिला संगठनों द्वारा महिला सम्मेलनों का आयोजन भी किया गया है। संघ की ही प्रेरणा से चलने वाले विविध महिला संगठनों की कार्यकर्ताओं ने प्रत्येक प्रांत में जिला व विभाग स्तर पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया है।
अगस्त 2023 से फरवरी 2024 तक आयोजित हुए महिला कार्यक्रमों का उद्देश्य यही था कि 18 वर्ष से ज्यादा आयु वर्ग की प्रत्येक कार्यकर्ता अपने संगठन से इतर व्यापक संपर्क कर स्त्री विमर्श को भारतीय समाज तक पहुंचाए ताकि समाज व देश के विकास में महिलाओं की सहभागिता बढ़े।
ये कार्यक्रम 3 सत्रों में आयोजित किए गए। उद्घाटन सत्र में भारतीय चिंतन में महिला विषय लिया गया, वहीं चर्चा में स्थानीय महिलाओं की स्थिति, उनकी समस्याओं पर आधारित प्रश्न व समस्या तथा किन कार्यों को करने की आवश्यकता है, इस प्रकार के विषय लिए गए। समापन सत्र में भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका पर भी चर्चा की गई व सांस्कृतिक कार्यक्रमों, कला योग, शस्त्रकला, नृत्य नाटिका आदि का प्रदर्शन भी किया गया।
इन कार्यक्रमों के आयोजन से पूर्व विभिन्न स्तरों पर बैठकों का आयोजन किया गया ताकि कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो। इसके लिए संयोजिका, सहसंयोजिका व विभिन्न संगठन प्रमुखों के साथ बैठक की गई।
केंद्रीय संचालन समिति, प्रांत टोली व सम्मेलन संचालन समिति के कार्यकर्ताओं ने प्रांत स्तर पर प्रवास व संपर्क किया। यह कार्य इतना भी आसान नहीं था। केंद्र्रीय स्तर पर 1000 वक्ताओं की सूची तैयार की गई। केंद्र्रीय स्तर पर 325 वक्ताओं का प्रशिक्षण किया गया तथा 858 प्रमुख वक्ता रहे तथा चर्चा प्रवर्तकों की कुल संख्या 1587 रही। 44 प्रांतों में 453 सम्मेलनों में 5,59,570 प्रतिभागियों की सहभागिता रही।
भारत के सुदूर प्रांतों यथा तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, कोंकण, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाकौशल, चित्तौड़, जयपुर, जोधपुर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, मेरठ, उत्तराखंड, ब्रज, अवध, कानपुर, काशी, बिहार, झारखंड, बंग प्रदेश, ओड़ीशा, असम, अरुणाचल, त्रिपुरा समेत देश के हर कोने में आयोजित इन कार्यक्रमों में लगभग साढ़े 5 लाख से भी अधिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया व इनसे लाभान्वित हुईं।
महिला सम्मेलन के लिए पूरे देश में साहित्य, पत्रक, कार्यक्रम की रूपरेखा, महिला विषय, लिखित गीत व उनका स्वर, सम्मेलन वृत्त का प्रारूप, प्रांत स्तर पर महिला समस्याओं की सूची, वक्ताओं की सूची, सम्मेलन रूपरेखा भेजी गई ताकि कार्यक्रम विधिवत संपन्न हो तथा उसमें एकरूपता भी रहे।
इन कार्यक्रमों के सफल आयोजन में 10 से अधिक भाषाओं में महिलाओं के जीवन पर 353 प्रदर्शनियां लगाई गईं तथा 2261 प्रेरक महिलाओं की सचित्र जानकारी दी गई। आकर्षक रंगोली, मंच सज्जा, पुष्प सज्जा, प्रांतीय वेशभूषा में अतिथियों व कार्यकर्ताओं का सम्मान किया गया। आत्मनिर्भर भारत, स्वदेशी स्टॉल, वनवासी व ग्रामीण क्षेत्रों में बनाई गई वस्तुओं के लगभग 1463 स्टॉल लगाए गए तथा महिला विषयक साहित्य के स्टॉल पर भी खूब भीड़ रही।
विभिन्न प्रांतों में विशिष्ट कार्य करने वाली 2795 महिलाओं को सम्मानित किया गया जो आरोग्य, सामाजिक कार्य, सेवा, खेल, पर्यावरण क्षेत्रों में कार्यरत हैं तथा कुछ तो पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित हैं। इन कार्यक्रमों में आकर्षण का केंद्र वे मुख्य अतिथि रहे जिन्होंने अपने सामाजिक कार्यों के माध्यम से समाज में नाम कमाया है जिनमें पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त कर्ता चंद्रयान वैज्ञानिक माधवी ठाकरे, प्रसिद्ध खिलाड़ी पी.टी. उषा, मिसाइल वूमन टेसी थॉमस, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा, लेफ्टिनेंट जनरल माधुरी कानेटकर, माननीय राज्यपाल, विभिन्न मत जरूरत है कि संप्रदायों की साध्वियां, अभिनेत्री, मुस्लिम समाज सुधारक, महिला कुलपति आदि रहीं।
भारतीय स्त्री चिंतन और भूमिका पुस्तिका भी कार्यकर्ताओं में वितरित की गई जिसका 9 भाषाओं में अनुवाद हुआ है। विभिन्न प्रांतो में आयोजित इन कार्यक्रमों की खबरें समाचार पत्रों व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छाई रहीं। 913 समाचार पत्रों में समाचार आए, वहीं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से 392 स्थानों के कार्यक्रमों के समाचार छपे।
इन कार्यक्रमों में विभिन्न प्रांतों की कुछ घटनाओं ने सभी को अभिभूत कर दिया। तमिलनाडु के एक सम्मेलन में जहां एक दिव्यांग बहन ने सांकेतिक भाषा में सभी विषय समझाए वहीं दिल्ली के एक कार्यक्रम में सभी को रक्षा सूत्र बांधे गए। ओड़िशा में एक भिक्षा मांगने वाली महिला का सम्मान हुआ जो घर-घर जाकर सब्जी के डंठल एकत्र कर गायों को देती थी।
पंजाब के पठानकोट में सम्मेलन में 8014 की संख्या रही। अंदमान निकोबार, लेह, पांडिचेरी में कार्यक्रमों में जनजातीय महिलाएं भी शामिल रहीं।
महिला समन्वय कार्यक्रमों में देश की लगभग 8 लाख बहनों से संपर्क हुआ तथा 400 स्थानों पर महिला टोली का गठन किया गया। इन सम्मेलनों से जो बड़ी बात निकलकर आई वह है कि देश की महिलाएं अब घर गृहस्थी, चूल्हा-चौके से आगे बढ़कर देश की प्रगति व उत्थान में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रही हैं। समाज में बेहतर कार्य करने वाली सैकड़ों महिलाओं और संस्थाओं से समाज परिचित हो रहा है तथा महिलाएं सरकारी योजनाओं, वीमेन हेल्पलाइन तथा महिला विषयक कानूनों से परिचित हुई हैं। महिला विषयक भारतीय चिंतन भी लाखों महिलाओं तक पहुंचा है तथा अनेक सामाजिक संस्थाओं व संगठनों में महिलाओं की सहभागिता बढ़ी है।
इन कार्यक्रमों में महिलाओं की सहभागिता देखकर ध्यान में आया कि ऐसे कार्यक्रम समय-समय पर देश के विभिन्न प्रांतों में आयोजित किए जाने चाहिए ताकि महिलाओं को स्थानीय स्तर पर भी मंच प्रदान किया जाए जहां वे सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करें, मंथन करें तथा देश-समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने में अपना योगदान दे सकें। वे संदेशखाली में हुई बर्बरता के विरुद्ध संगठित व मुखर होकर उसका विरोध कर सकें क्योंकि महिला केवल भोग्या नहीं है, उसे भी समाज में सिर उठाकर जीने का अधिकार है।
ये महिला सम्मेलन देश के विकास में मील का पत्थर हैं। आज प्रत्येक महिला दृढ़ निश्चय व संकल्प से सामने आए क्योंकि अब सोने का नहीं जागने का समय है, अपने कर्तव्यों व अधिकारों के लिए उठ खड़े होने का समय है।
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