‘पहले खुद से गड्ढा खोद कर उसमें गिर जाओ और फिर दूसरों से बचाने की गुहार लगाओ’ यही हाल केरल की वामपंथी सरकार का है। केरल की पी विजयन की अगुवाई वाली सरकार ने अपने आर्थिक कुप्रबंधन के कारण राज्य की आर्थिक स्थिति को बदतर कर दिया है। उसके पास अपने कर्मचारियों को सैलरी देने के पैसे तक नहीं हैं। लेकिन वह अपने दैनिक खर्चों के लिए केंद्र सरकार से फंड मांग रहा है। लेकिन, अब उसकी कोशिशों को सुप्रीम कोर्ट ने उसे करारा झटका दिया है। शीर्ष अदालत केरल सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि अपने आर्थिक कुप्रबंधन और दुर्दशा के लिए वह खुद ही जिम्मेदार है।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल को अधिक कर्ज लेने के लिए इजाजत की मांग को खारिज कर दिया है। जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने केरल सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया। दरअसल, लोकसभा चुनाव के मद्देनजर केरल की वामपंथी सरकार केंद्र सरकार से और अधिक लोन लेना चाहती थी। इसके लिए उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि वो केंद्र सरकार को लोन देने का आदेश दे। हालांकि, उसके मंसूबों पर पानी फिर गया।
इस बीच दो जजों की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के लोन लेने की सीमा को तय करने के मामले को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को सौंप दिया है, जिसके बाद अब ‘केरल सरकार बनाम केंद्र’ मामले की सुनवाई पांच जजों की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 131 के तहत केरल सरकार को किसी भी तरह से राहत देने से साफ इनकार कर दिया। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने राज्यों को अतिरिक्त लोन की सीमा 13608 करोड़ रुपए तय कर रखी है। खास बात ये है कि केरल सरकार इस लोन लिमिट को पार कर चुकी है।
गौरतलब है कि केरल की पी विजयन की अगुवाई वाली वामपंथी सरकार लगातार मीडिया में आकर चीख चिल्लाहट करती है और केंद्र सरकार पर लोन नहीं देने का आरोप लगातका आऱोप लगाती रहती है। लेकिन, उसने सुप्रीम कोर्ट जाकर गलती कर दी। वहां उसका यह तिकड़म काम नहीं आया। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केरल सरकार के वित्त प्रबंधन में कई तरह की खामियां हैं। वर्ष 2023-24 में केरल सरकार को अतिरक्त लोन देना न तो विवेकपूर्ण है औऱ न ही उसके हित में है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2021-22 के लिए केरल की (GSDP) के परसेंटेज के तौर पर राजस्व घाटे को 3.17 प्रतिशत दिखाने के लिए रिकॉर्ड आंकड़े लाए हैं, जो कि बाकी राज्यों के 0.46 फीसदी से काफी अधिक है। यह केरल के राजकोषीय घाटे से कहीं अधिक है। पूरे राज्य का औसत 2.80 फीसदी की तुलना में यह केरल के लिए 4.94 प्रतिशत होगा।
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