केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन इन दिनों सीएए यानी नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध करते हुए भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। इन्हीं प्रयासों में वह इतिहास के नायकों को भी उस पहचान में ढालने की चाल चल रहे हैं, जो उन नायकों के साथ अन्याय है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, जोकि मात्र पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर पीड़ित गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने का अधिनियम है, उसे किस प्रकार मुस्लिम विरोधी साबित किया जाए, इसके लिए वामदल एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसी क्रम में वे ऐसे विद्वेषपूर्ण वक्तव्य दे रहे हैं, जो देश के लिए हानिकारक हैं। सीएए के विरोध में एक रैली में केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने कहा कि संघ के नेता जनता से भारत माता की जय और जय हिंद के नारे लगवाते हैं। क्या उन्हें पता है कि ये नारा अजीमुल्लाह खान ने दिया था। वे 19वीं सदी में मराठा पेशवा नाना साहेब के मंत्री थे। ऐसे ही ‘जय हिंद’ नारा भी मुस्लिम पूर्व डिप्लोमैट आबिद हसन ने दिया था।
केरल के मुख्यमंत्री विजयन को सीएए को मुस्लिम विरोधी ठहराने का इतना दुराग्रह है कि लगता है कि उन्होंने ढंग से रिसर्च भी नहीं की है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है और यदि है तो वह हर घटना को हिन्दू और मुस्लिम करके ही देखते हैं। और संघ और भाजपा के साथ अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में वह सब कुछ भूल चुके हैं।
सबसे पहले तो जो क़ानून भारत के मुस्लिमों के लिए है नहीं, उसे भारत के मुस्लिमों के साथ जबरन जोड़कर देख रहे हैं और दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात वह उन महान क्रांतिकारियों को मजहबी पहचान दे रहे हैं, और उन्हें उस पहचान के साथ जोड़ रहे हैं, जो वह मुस्लिम होते हुए भी उनके साथ साझा नहीं करते हैं, जो भारत का विभाजन करके पाकिस्तान चाहते थे। चूंकि सीएए मजहब के आधार पर बने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक पहचान के आधार पर पीड़ित हो रहे गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने के सम्बन्ध में है तो इसमें जब उन मुस्लिमों का नाम जोड़ा जाता है, जिनका पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं था, तो वह अत्यंत विभाजनकारी राजनीति का भाग होता है। मुख्यमंत्री विजयन ने अजीमुल्ला खान का नाम लेते हुए कहा कि भारत माता की जय का नारा अजीमुल्ला खान ने दिया था, तो क्या संघ इस नारे को लगाएगा?
उन्होंने दारा शिकोह की भी बात की और कहा कि दारा शिकोह ने संस्कृत में लिखे गए 50 से अधिक उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया था। विजयन ने एक प्रकार से उदारवादी या कहा जाए भारतीय पहचान को आत्मसात करने वाले मुस्लिमों को भी ऐसे मुस्लिमों के रूप में ढालने का प्रयास किया है, जिन्होनें भारतीयता को कुचलने का प्रयास किया। यह सच है कि दारा शिकोह ने भारतीय ग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराया था, मगर विजयन यह क्यों नहीं बताते हैं कि उसी दारा शिकोह का सिर काटकर दारा के उसी कट्टर भाई ने अपने अब्बा शाहजहाँ के पास थाल में भिजवाया था, जिसे वामपंथी इतिहासकार “ज़िन्दापीर” कहते नहीं थकते हैं। ये प्रश्न तो वामदलों से होना चाहिए कि क्या वह भारतीय मुस्लिमों द्वारा लगाए गए “मादरे वतन जिंदाबाद” का नारा लगाएंगे? क्या वह भारत माता की जय का नारा लगाएंगे? क्या वह जय हिन्द का नारा लगाएंगे?
यह कहा जाता है कि 1857 की क्रान्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कानपुर के अजीमुल्ला खान नाना साहब पेशवा बाजीराव द्वितीय के दीवान थे। नाना साहब पेशवा बाजीराव द्वितीय के अजीमुल्ला बहुत ही निष्ठावान सलाहकार थे। और इन सबसे परे आइये यह देखते हैं कि स्वातंत्र्य वीर सावरकर अजीमुल्ला खान के विषय में क्या लिखते हैं। वीर सावरकर अपनी पुस्तक THE INDIAN WAR OF INDEPENDENCE 1857 में अजीमुल्ला खान के विषय में लिखते हैं कि
“1857 के क्रांतिकारी युद्ध के महत्वपूर्ण पात्रों में से अजीमुल्लाह खान का नाम सबसे यादगार है। जिन कुशाग्र बुद्धि और दिमागों ने सबसे पहले स्वतंत्रता संग्राम के विचार की कल्पना की थी, उनमें अजीमुल्लाह को एक प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए, और जिन कई योजनाओं के द्वारा क्रांति के विभिन्न चरणों को विकसित किया गया था, उनमें अजीमुल्लाह की योजनाएं विशेष ध्यान देने योग्य हैं।“
वे लिखते हैं कि अजीमुल्ला खान नाना साहेब के निष्ठावान दीवान थे, जो उनका मुकदमा लड़ने के लिए इंग्लैंड गए थे। उन्होंने अजीमुल्ला खान के प्रयासों का उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है। और जिन अजीमुल्ला खान को वह मुस्लिम पहचान में बाँधना चाहते हैं, उनके विषय में आज़ादी का अमृत महोत्सव की वेबसाइट पर लिखा है कि
“अज़ीमुल्लाह ने 1857 की क्रान्ति के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी शक्तिशाली काव्यात्मक अभिव्यक्तियों ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के निकट एकीकृत सह-अस्तित्व का माहौल बनाया। साथ ही उन्होंने क्रांति की बागडोर अपने हाथों में रखी और अधिकांश घटनाओं को स्वयं नियंत्रित किया।
देशभक्ति गीत क्रांतिकारी अजीमुल्ला खान द्वारा रचित था और नाना साहब द्वारा संरक्षित दैनिक समाचार पत्र “पेमे आज़ादी” में प्रकाशित हुआ था। इसकी एक मूल प्रति ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन द्वारा सुरक्षित रखी गयी है।“
इसके साथ ही इस पृष्ठ पर उनके गीत की छवि भी प्रकाशित है।
https://amritmahotsav.nic।in/district-reopsitory-detail।htm?1859
विजयन यह भूल गए हैं कि भारतीय मुस्लिमों ने भारतीय पहचान को धारण किया तो उन्होंने उस पहचान के लिए युद्ध लड़ा, और उस पहचान को बनाए रखने के लिए अपने भाई के हाथों भी मरना पसंद किया जैसे कि दारा शिकोह, मगर यह वामपंथी इतिहासकार हैं, जो अभी तक औरंगजेब को जिंदा पीर कहते हैं, जिसने न केवल अपने सभी भाइयों को मरवाया, बल्कि अपने अब्बा को कैद किया! जब उसके अब्बा शाहजहाँ कैद थे, तो उनके प्रिय बेटे और हिन्दुओं के प्रति समदृष्टि रखने वाले दारा शिकोह की हत्या करके उसका सिर अपने अब्बा के पास भिजवाया।
जिन्होंने भारत भूमि का विभाजन किया और पाकिस्तान माँगा उन्होंने अपनी उस पहचान को खोकर पाकिस्तान जाना स्वीकार किया, जो पहचान भारत के प्रति आदर का नारा गढ़ने वालों की थी। विजयन की रिसर्च बहुत कमजोर है, और उन्हें अध्ययन की आवश्यकता है, ऐसा कांग्रेस के नेता शशि थरूर का भी कहना है। उन्होंने विजयन के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें हैरानी होती है कि क्या उनके पास कोई स्टाफ मेंबर नहीं है जो गूगल कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में वामदलों का योगदान शून्य है और वे झूठ के सहारे इसका लाभ ले रहे हैं।
नारे किसने गढ़े, किसने कहे, इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि इन नारों को बोल कौन रहा है? केरल के मुख्यमंत्री विजयन के अनुसार यदि नारे किसी मुस्लिम ने गढ़े तो वे अपनी रैलियों में इन नारों को लगवाने से क्यों हिचकते हैं? क्या वे मुस्लिमों को आदर नहीं देना चाहते हैं? या फिर वह केवल अपने राजनीतिक लाभों के अनुसार ही सारे मामले देखते हैं या केवल राजनीतिक विद्वेष उत्पन्न करना उद्देश्य है? दरअसल वाम विचार को भारत बोध वाली पहचान से घृणा है, क्योंकि तभी अशफाक उल्ला खान से लेकर भारत रत्न एपीजे कलाम तक को वे नकारते हैं।
जब शहला राशिद उन मामलों पर बात करती हैं जो कश्मीर की वास्तविक समस्याएं हैं और जब वह कश्मीर के मुस्लिमों की भारतीय पहचान को लेकर बात करती हैं तो उन्हें लेफ्ट इकोसिस्टम से उसी प्रकार बाहर कर दिया जाता है, जैसे अब तक के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति एवं मिसाइल मैन ना से विख्यात श्री एपीजे कलाम को बाहर कर दिया गया, क्योंकि वह उनके विभाजनकारी एजेंडे में फिट नहीं साबित होते हैं!
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