मध्यप्रदेश के धार स्थित ऐतिहासिक भोजशाला के दूसरे दिन के सर्वे के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की टीम भोजशाला पहुंच गई है। मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के आदेश पर ये सर्वे किया जा रहा है।
शुक्रवार से शुरू हुआ सर्वे
वाराणसी स्थित ज्ञानवापी की तर्ज पर एएसआई सर्वे शुक्रवार को कड़ी सुरक्षा के बीच पहले दिन एएसआई की टीम ने सर्वे किया। दोपहर में नमाज से पहले सर्वे टीम भोजशाला परिसर से बाहर आ गई। याचिकाकर्ता गोयल ने कल बताया था कि भोजशाला का एएसआई के पांच सदस्यों की टीम द्वारा सर्वे का काम शुरू किया गया।
#WATCH | A team of Archaeological Survey of India (ASI) arrives at Bhojshala Complex in Dhar, Madhya Pradesh.
The ASI began an archaeological survey of the Bhojshala Complex yesterday, 22nd March. pic.twitter.com/Y0FyT171Oi
— ANI (@ANI) March 23, 2024
सुबह टीम के अंदर जाने के साथ 20 से 25 श्रमिकों को भी अंदर भेजा गया। इसी के साथ उपकरण भी अंदर भेजे गए। ASI ने चिन्हों के वीडियो व फोटोग्राफी करने के साथ आगामी दिनों की रूपरेखा सर्वे को लेकर तैयार की गई। टीम द्वारा विभिन्न पैमाने पर सर्वे किया गया। इस दौरान मुस्लिम पक्ष की ओर से कोई भी मौजूद नहीं था।
मुस्लिम पक्ष को नहीं मिली थी राहत
गौरतलब है कि शुक्रवार को ही मुस्लिम सुप्रीम कोर्ट गया था भोजशाला के सर्वे को रोकने की मांग लेकर। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले में किसी तरह की राहत देने से इनकार करते हुए कहा था कि कोर्ट में पहले से ही काफी काम पेंडिंग है। इससे इस मामले पर तुरंत सुनवाई होना संभव नहीं है। मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी ने यह याचिका दाखिल की थी, जिसमें सर्वे से जुड़े उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक की मांग की गई थी।
भोजशाला में कभी नहीं थी मस्जिद
मुस्लिम समुदाय दावा करता है कि यहां मस्जिद हुआ करती थी। यहां पर अभी भी प्रति सप्ताह नमाज होती है, पर मंगलवार को हनुमान चालीसा और पूजा भी होती है। स्मारक अधिनियम के अंतर्गत इस स्थान को 1904 में संरक्षित घोषित कर दिया गया था। बाद में भी उस संरक्षा को दोहराया गया है।
आज यह स्थान ए.एस.आई. के आधिपत्य में है। इसका आधिपत्य कभी भी मुसलमानों के हाथ में नहीं था। इसलिए इसके वक्फ संपत्ति होने का कोई प्रश्न ही नहीं है। 1935 से पहले यहां के रेवेन्यू रिकॉर्ड में भोजशाला मंदिर लिखा हुआ है, परंतु कहीं पर भी इसको मस्जिद नहीं लिखा है। 1935 से पहले यहां नमाज भी कभी नहीं पढ़ी गई थी। पूजा स्थल कानून में उन सभी स्थानों के लिए एक छूट है, जो पुरातात्विक स्मारक के अंतर्गत संरक्षित नहीं हैं।
इसलिए यह उसमें भी नहीं आता है। इसका मूल चरित्र क्या है? खंभों पर वराह, राम, लक्षमण, सीता की मूर्ति हैं। जय-विजय द्वारपालों की मूर्ति है। इसके अलावा जमीन के अंदर का भाव क्या कहता है, इन सभी की विधिवत जांच हो रही है।
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