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उपवास के बहाने चर्च का बीजेपी विरोधी एजेंडा !

बेंगलुरु के आर्कबिशप पीटर मचाडो और कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने ईसाई विश्वासियों से 22 मार्च को देशभर में शांति और सद्भाव के लिए प्रार्थना और उपवास के दिन के रूप में मनाने का आह्वान किया है।

by Alok Goswami
Mar 21, 2024, 04:06 pm IST
in विश्लेषण
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आम चुनाव को लेकर चर्च का दखल बढ़ता जा रहा है। वह देश के ईसाई समुदाय और आम मतदाताओं को बीजेपी और हिंदुत्व समर्थक संगठनों के खिलाफ लामबंद कर रहा है। बेंगलुरु के आर्कबिशप पीटर मचाडो और कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने ईसाई विश्वासियों से 22 मार्च को देशभर में शांति और सद्भाव के लिए प्रार्थना और उपवास के दिन के रूप में मनाने का आह्वान किया है। चर्च की ओर से जारी अपील में कहा गया है कि उपवास और प्रार्थना की शक्ति “हमारे हाथ में सबसे प्रभावी साधन है, जिसके साथ हम साहसपूर्वक असत्य और विभाजनकारी ताकतों का सामना कर सकते हैं।”

यह स्पष्ट है कि ऐसी अपीलें और ऐसे कार्यक्रम किसका हित साधते हैं। ऐसी  ‘प्रेरणादायक’ अपीलों का मुखौटा तब टूट जाता है जब राजनीतिक संकेत दिए जाते हैं तो स्थिति संदिग्ध हो जाती है, जिससे एक सवाल उठता है,  कि इन चुनावों में चर्च की इतनी दिलचस्पी क्यों है ? 22 मार्च का कार्यक्रम अचानक नहीं दिया गया है। जनवरी – फरवरी के पहले हफ्ते बेंगलुरु में कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) की 36वीं द्विवार्षिक सभा में इसकी रूपरेखा तैयार कर ली गई थी। इस बैठक में 180 के लगभग भारतीय बिशपों के समक्ष सामाजिक-राजनीतिक स्थिति पर बोलते हुए वेटिकन के राजदूत मोनसिग्नोर लियोपोल्डो गिरेली (Apostolic Nuncio Monsignor Leopoldo Girelli) ने कहा था, “चर्च समाज के नैतिक चरित्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।”

वेटिकन के राजदूत ने बिशप्स कॉन्फ्रेंस में म्यांमार की सीमा से लगे मणिपुर राज्य में जारी खूनी जातीय संघर्ष का जिक्र करते हुए चर्च से भारत के लोगों की अंतरात्मा को छूने वाली शांति की संस्कृति विकसित करने पर जोर दिया था। गौरतलब है कि दिसंबर के दूसरे हफ्ते में वेटिकन के राजदूत ने मणिपुर के कुछ राहत शिविरों का दौरा किया था और राहत सामग्री बांटी थी। चर्च को एक “ठोस सुझाव” के रूप में, वेटिकन के राजदूत ने कहा, सभी ईसाइयों को आम चुनाव के समय अपना वोट डालने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है, और आपको अपना वोट उस उम्मीदवार को देना चाहिए जो धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता हो, मानवीय गरिमा बनाए रखता हो और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देता हो। आम चुनावों में किसी विदेशी राजनयिक का सीधा हस्तक्षेप कम ही देखा जाता है। लियोपोल्डो गिरेली जो पहले इंडोनेशिया, यरुशलम और फिलिस्तीन के राजदूत के रूप में कार्यरत रहे है, ने कहा कि शांति की संस्कृति विकसित करें। चर्च या आर्कबिशप पीटर मचाडो वेटिकन के इसी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।

चर्च बड़ी चालाकी से बढ़ती गरीबी, पूंजीपतियों का बढ़ता एकाधिकार, अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, शिक्षित युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी… नफरत भरे भाषणों का निर्बाध प्रसार, नागरिकता के मुद्दे… अल्पसंख्यक अधिकारों का हनन, मामूली आरोपों पर अल्पसंख्यकों पर हमलाें को मुद्दा बना रहा है। दरअसल, चर्च का सबसे बड़ा एजेंडा अपनी गतिविधियों को बिना किसी बाधा के चलाना, कन्वर्जन विरोधी कानून को रद्द करवाना, केंद्र में एक ऐसी सरकार बनवाने के लिए ऐसा वातावरण तैयार करना जो चर्च विचारधारा के प्रति उदारता दिखाए और दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलवाना है, क्योंकि इससे चर्च को अपना साम्राज्यवाद बढ़ाने में मदद मिलेगी।

वर्तमान समय में चर्च भारत के आम ईसाइयों में भारतीय जनता पार्टी और हिंदू संगठनों को लेकर डर का माहौल पैदा कर रहा है। जबकि आज भी देश में ईसाइयों और हिंदू समाज के बीच आपसी सौहार्द बना हुआ है। समस्याएं तभी उत्पन्न होती हैं जब आप दूसरों की आस्था में अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं। पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट ने चर्च नेतृत्व से अपील की है कि वह अपने निजी हितों के लिए ईसाई समुदाय को अनावश्यक रूप से अलग-थलग न करें।

 

 

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