न्यायपालिका : धर्म मार्ग और न्याय का मंदिर
July 14, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

न्यायपालिका : धर्म मार्ग और न्याय का मंदिर

भारतीय संस्कृति में धर्म को कर्तव्य माना गया है। यानी आपका कर्म ही धर्म है। सर्वोच्च न्यायालय भी न्याय धर्म का पालन करे, उसका विस्तार करे, इसे याद दिलाने के लिए उसके प्रतीक चिन्ह पर लिखा है- ‘यतो धर्मस्ततो जय:’

by राजेश गोगाना
Mar 21, 2024, 02:16 pm IST
in भारत, विश्लेषण
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

भारत का राष्ट्रीय चिन्ह और भारत के उच्चतम न्यायालय का प्रतीक चिन्ह अपने आप में अद्भुत है। इसके केंद्र में आप सारनाथ में अशोक स्तंभ से प्राप्त अशोक चक्र की एक छवि भी देख सकते हैं। 24 तीलियों वाला यह धम्म चक्र, धर्म (न्यायधर्मिता) और कानून के व्यापक स्वरूप को प्रदर्शित करता है। धम्म चक्र के नीचे ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ लिखा है। इसका अर्थ है कि जहां धर्म है वहां जय (जीत) है।

राजेश गोगाना
महामंत्री, ह्यूमन राइट्स डिफेंस इंटरनेशनल

धम्म चक्र धर्म की स्थापना का प्रतीक है। यह एक शाश्वत परिवर्तन का प्रतीक भी है, क्योंकि यह चक्र हमेशा घूमता रहता है, अपने आप को परिष्कृत करता है, संशोधित करता है और परिपे्रक्ष्य के हिसाब से अपने आप को बदलता है। भारतीय संदर्भ में समय और काल अपने चेहरे तो बदलता है, लेकिन उसकी आत्मा शाश्वत ही रही है और यह आत्मा स्वयं को दो महान वाक्यों में प्रस्तुत करती रही है-‘सत्यमेव जयते’ और ‘यतो धर्मस्ततो जय:।’ धम्म चक्र और इन दोनों वाक्यों का कालखंड और परिपे्रक्ष्य एकदम अलग है, लेकिन यह सब एक ही बात की प्रतिस्थापना करते हैं कि अंततोगत्वा सत्य की ही विजय होती है और धर्म सदा सत्य की ओर ही होता है।

इसी परिपेक्ष्य में, भारतीय न्याय परंपरा अपनी विविधता और गहराई के लिए विख्यात है, जो हजारों वर्षों से विकसित हो रही है। यह परंपरा धार्मिक, नैतिक और कानूनी विचारों का एक समृद्ध मिश्रण प्रस्तुत करती है, जिसमें वेदों, स्मृतियों और धर्मशास्त्र के साथ-साथ भारतीय दर्शन की विभिन्न परंपराओं के ग्रंथों से लिए गए विचार शामिल हैं।

न्यायशास्त्र के सिद्धांत पर प्रकाश डालने वाला सबसे पहला दस्तावेज, जो व्यावहारिक शासन का हिस्सा है, कौटिल्य का अर्थशास्त्र है, जो लगभग 300 ईसा पूर्व पुराना है। वैदिक काल में न्याय का आधार वेदों का दिव्य ज्ञान था। वेद, जो हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं, समाज में सही और गलत के मानदंड स्थापित करते थे। उस समय लोग वेदों के निर्देशों का पालन करते थे, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान और नैतिक शिक्षाएं शामिल थीं। इस प्रकार, न्याय की अवधारणा न केवल कानूनी सिद्धांतों पर, बल्कि धार्मिक आस्था और नैतिक जीवन पर टिकी थी। यह समाज के हर व्यक्ति को एक नैतिक दिशा प्रदान करती थी, जिससे व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में संतुलन और सद्भाव बना रहता था।

वैदिक काल में न्याय की अवधारणा को समझने के लिए ऋग्वेद की एक प्रसिद्ध ऋचा सहायक है, जो अक्सर नैतिकता, धर्म और सत्य के महत्व पर प्रकाश डालती है-‘सत्यं वद् धर्मं चर।’ इसका अर्थ है, ‘सत्य बोलो, धर्म का पालन करो।’ यह ऋचा हमें यह याद दिलाती है कि सत्य और धर्म (नैतिकता और कर्तव्य) वैदिक जीवन के मूल स्तंभ हैं। यह वैदिक समाज में व्यक्ति के आचरण को दिशा देने वाले मूलभूत सिद्धांतों में से एक था। इस ऋचा के माध्यम से, वैदिक समाज में न्याय और धार्मिकता के महत्व पर बल दिया गया था, जो व्यक्तियों को उनके दैनिक जीवन में सत्य और धर्म के पथ पर चलने की प्रेरणा देता था।

धर्मशास्त्र और स्मृति का काल भारतीय इतिहास में विधि और नैतिकता के नियमों को विस्तार से प्रस्तुत करने का समय था। मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति जैसे ग्रंथ इस युग के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं, जिनमें समाज के व्यवहार, न्यायिक प्रक्रियाओं और धार्मिक आचारों के नियम स्थापित किए गए थे। इन ग्रंथों में जीवन के हर पहलू पर विस्तृत दिशानिर्देश दिए गए, जिससे समाज में व्यवस्था और न्याय सुनिश्चित हो सके।

याज्ञवल्क्य स्मृति का एक प्रसिद्ध श्लोक है-‘धर्मेण हीना: पशुभि: समाना:।’
इसका अर्थ है धर्म के बिना, मनुष्य पशुओं के समान होते हैं।

यह श्लोक धर्म के महत्व को बल देता है और यह समझाता है कि धार्मिक आचरण ही मनुष्य को पशुओं से अलग करता है, जिससे समाज में व्यवस्था और सदाचार की स्थापना होती है। एक विशेष श्लोक,जो धर्म और सामाजिक आचार के महत्व को दर्शाता है, मनुस्मृति से है-‘सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यमप्रियं। प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन:॥’

इसका अर्थ है-सत्य बोलो, लेकिन प्रिय बोलो; अप्रिय सत्य न बोलो। प्रिय बोलो, परंतु झूठ न बोलो। यही सनातन धर्म है। यह श्लोक एक व्यक्ति को सत्य और प्रिय दोनों का संतुलन बनाए रखने की शिक्षा देता है, जिससे सामाजिक संबंधों में सद्भाव और सम्मान बना रहे। यह धार्मिक और नैतिक शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है और सनातन धर्म के केंद्रीय सिद्धांतों में से एक को प्रस्तुत करता है।

न्याय दर्शन, जो अक्षपाद गौतम द्वारा प्रतिपादित है, भारतीय दर्शन की आठ प्रमुख परंपराओं में से एक है। इस दर्शन का मूल आधार तर्क और विवेचना है, जिसके माध्यम से सत्य की खोज की जाती है। न्याय दर्शन ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रमाणों (स्रोतों) और अनुमानों का महत्व बताता है। इसका उद्देश्य विश्व की सही समझ प्राप्त करना और जीवन में दुखों से मुक्ति पाना है। यह दर्शन सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए व्यक्ति को विचारशीलता और संशयवाद की ओर प्रेरित करता है, ताकि सत्य की गहराई तक पहुंचा जा सके।

न्याय दर्शन में विशेष रूप से मंत्र या ऋचाओं की परंपरा नहीं है, क्योंकि यह तार्किक विवेचना और दार्शनिक विचार पर आधारित है। हालांकि, न्याय सूत्र इस दर्शन के मूल ग्रंथ हैं, जिसमें ज्ञान की प्रक्रिया, प्रमाणों के प्रकार और तर्क के नियमों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस दर्शन के अनुसार, विश्लेषण और तर्क से सत्य की खोज संभव है, और यही सत्य जीवन में दुखों के निवारण का मार्ग प्रशस्त करता है।

ब्रिटिश राज के दौरान भारत में आधुनिक न्यायिक प्रणाली की नींव रखी गई, जिसने देश के कानूनी परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल दिया। अंग्रेजों ने अपने कानूनी ढांचे और विचारधाराओं को लागू किया, जिससे भारतीय न्याय-प्रणाली में पश्चिमी सिद्धांतों का आगमन हुआ। इस प्रक्रिया में बहुत सी भारतीय पारंपरिक कानूनी प्रथाओं को पश्चिमी कानूनी प्रणाली के साथ सम्मिलित या उनके द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। अदालती प्रणाली, जिसमें न्यायिक संरचना और अपीलीय प्रक्रिया शामिल है, को ब्रिटिश मॉडल पर आधारित किया गया। यह परिवर्तन भारतीय समाज में न्याय की पहुंच और प्रशासन में एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया।

भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत भारत के संघीय न्यायालय के निर्माण तक उच्च न्यायालयों को सभी मामलों के लिए सर्वोच्च न्यायालय होने का गौरव प्राप्त था। संघीय न्यायालय को प्रांतों और संघीय राज्यों के बीच विवादों को सुलझाने और उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार था।

1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत को संविधान के अस्तित्व में आने के साथ देश का सर्वोच्च न्यायालय भी अस्तित्व में आया और इसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को हुई। 1956 में यह निर्णय लिया गया कि हार्डिंग ब्रिज के सामने हार्डिंग एवेन्यू पर त्रिकोणीय भूखंड में सर्वोच्च न्यायालय भवन का निर्माण किया जाना चाहिए। इस भवन का ‘डिजाइन’ न्याय के तराजू की एक जोड़ी के साथ एक संतुलन के आकार में है।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 4 अगस्त, 1958 को सर्वोच्च न्यायालय के भवन का उद्घाटन करते हुए इसे ‘न्याय का मंदिर’ कहा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने हजारों वर्षों की सत्य, न्याय तथा समता की महान परंपरा को सर्वोच्च न्यायालय में स्थापित कर दिया।

भारत की आधुनिक न्याय प्रणाली हमेशा से ही विवादों के घेरे में रही है। कई लोगों का मानना है कि यह व्यवस्था कभी भी सफल नहीं हो पाएगी, क्योंकि इसकी आत्मा भारत की न्यायिक परंपरा के शरीर में स्थापित नहीं है। महात्मा गांधी, जिन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पितामह माना जाता है, ने आधुनिक न्याय व्यवस्था पर गहरे विचार व्यक्त किए थे। गांधी जी के अनुसार, ‘‘सच्चा न्याय सिर्फ कानूनी प्रक्रियाओं और अदालतों द्वारा नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, नैतिकता और आत्म-नियमन के माध्यम से प्राप्त होता है।’’ उन्होंने आधुनिक न्यायिक प्रणाली की जटिलता और उसके व्यवसायीकरण की आलोचना की थी, जिससे अक्सर समाज के कमजोर वर्गों के साथ अन्याय होता है।

भारतीय विचारक और स्वदेशी आंदोलन के पुरोधा श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने आधुनिक न्याय व्यवस्था पर अपने विशिष्ट विचार प्रकट किए। उन्होंने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में स्वदेशी और स्वावलंबन के महत्व पर जोर दिया और इसे न्याय व्यवस्था में भी अपनाने की वकालत की। श्री ठेंगड़ी का मानना था कि आधुनिक न्याय व्यवस्था, जो मुख्यत: पश्चिमी मॉडल पर आधारित है, भारतीय समाज की मौलिक संस्कृति और मूल्यों से मेल नहीं खाती है।

उनके विचारों में, ‘‘भारतीय न्याय व्यवस्था को भारतीय दर्शन, मूल्यों और परंपराओं पर आधारित होना चाहिए।’’ ठेंगड़ी जी ने भारतीय संविधान में संस्कृति और परंपरा के मूल्यों को समाहित करने की भी वकालत की, ताकि न्याय व्यवस्था भारतीय समाज की विविधता और संवेदनशीलता को बेहतर ढंग से समझ सके और उसका सम्मान कर सके। ठेंगड़ी जी के विचार भारतीय न्याय व्यवस्था को अधिक स्वदेशी और समाज के अनुरूप बनाने के लिए प्रयत्नरत थे, जहां परंपरागत मूल्यों और आधुनिकता के बीच एक सामंजस्य स्थापित किया जा सके।

हालांकि, भारत की अदालतें देश की महान न्यायिक परंपरा का वहन कुछ हद तक करती हैं, लेकिन इस व्यवस्था का अभारतीयकरण अपने आप में गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है। भारत की न्यायपालिका एक बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। 2022 तक जिला और तालुका अदालतों में 4.1 करोड़ से अधिक मामले और विभिन्न उच्च न्यायालयों में लगभग 59 लाख मामले लंबित थे। इसके साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय में लगभग 71,000 मामले लंबित हैं। अदालतों में अंग्रेजी का प्रभुत्व इसे लगभग पूर्णतया अंग्रेज बना देता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि संस्थाएं अपने आप के महान होने का दावा तो करें, लेकिन जब न्याय देने की स्थिति आए तो असहाय हो जाएं और भारत के आम आदमी दशकों तक न्याय मिलने का इंतजार करते-करते इस लोक से उस लोक में चले जाएं।

भारत के सभी नागरिक आशा करते हैं और परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि भारत की न्यायिक संस्थाएं अपने आप को अधिक भारतीय, संवेदनशील तथा नागरिक उन्मुख बनाएंगी और नागरिकों को न्याय देने के लिए महान भारतीय परंपराओं से प्रेरणा ले ‘सर्वे भवंतु सुखिना, सर्वे संतु निरामया’ के आदर्श वाक्य को प्रतिस्थापित करेंगी।

Topics: राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसादसत्य बोलोSupreme Courtधर्म का पालन करोन्यायSarve Bhavantu Sukhinaसत्यSarve Santu Niramayaसत्यमेव जयतेSatyam Bruyat Priyam Bruyat Na Bruyat Satyampriyam.Satyamev Jayateभारत का राष्ट्रीय चिन्सर्वे भवंतु सुखिनाभारत के उच्चतम न्यायालय का प्रतीक चिन्हसर्वे संतु निरामयार्वोच्च न्यायालयसत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यमप्रियं। प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन:
Share4TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Uttarakhand Illegal Majars

हरिद्वार में 10 बीघा सरकारी जमीन पर बना दी अवैध मजार, हिंदू संगठनों में रोष, जांच के आदेश

Supreme court OBC reservation

केरल की निमिषा प्रिया को यमन में फांसी पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई, केंद्र से जवाब तलब

Donald Trump

ब्राजील पर ट्रंप का 50% टैरिफ का एक्शन: क्या है बोल्सोनारो मामला?

Supreme court OBC reservation

सुप्रीम कोर्ट की नौकरियों में ओबीसी आरक्षण: क्या यह सामाजिक न्याय की नई शुरुआत है?

UMEED portal waqf

केंद्र सरकार ने लागू किए UMEED नियम: वक्फ संपत्तियों का डिजिटल प्रबंधन शुरू

women layer digitel arrest

महिला वकील को 9 दिन डिजिटल अरेस्ट में रखकर 3.25 करोड़ की साइबर ठगी: SC ने जताई चिंता

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

उत्तराखंड में पकड़े गए फर्जी साधु

Operation Kalanemi: ऑपरेशन कालनेमि सिर्फ उत्तराखंड तक ही क्‍यों, छद्म वेषधारी कहीं भी हों पकड़े जाने चाहिए

अशोक गजपति गोवा और अशीम घोष हरियाणा के नये राज्यपाल नियुक्त, कविंदर बने लद्दाख के उपराज्यपाल 

वाराणसी: सभी सार्वजनिक वाहनों पर ड्राइवर को लिखना होगा अपना नाम और मोबाइल नंबर

Sawan 2025: इस बार सावन कितने दिनों का? 30 या 31 नहीं बल्कि 29 दिनों का है , जानिए क्या है वजह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies