भोजशाला : 1935 से पहले वहां नमाज नहीं पढ़ी जाती थी
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भोजशाला : 1935 से पहले वहां नमाज नहीं पढ़ी जाती थी

भोजशाला का मामला बाकी सभी जगहों से अलग है। यहां पर अभी भी प्रति सप्ताह नमाज होती है, पर मंगलवार को हनुमान चालीसा और पूजा भी होती है। स्मारक अधिनियम के अंतर्गत इस स्थान को 1904 में संरक्षित घोषित कर दिया गया था।

by आलोक कुमार
Mar 18, 2024, 11:39 am IST
in भारत, विश्लेषण, संस्कृति, पश्चिम बंगाल
आलोक कुमार, अध्यक्ष, विश्व हिंदू परिषद

आलोक कुमार, अध्यक्ष, विश्व हिंदू परिषद

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भोजशाला का मामला बाकी सभी जगहों से अलग है। यहां पर अभी भी प्रति सप्ताह नमाज होती है, पर मंगलवार को हनुमान चालीसा और पूजा भी होती है। स्मारक अधिनियम के अंतर्गत इस स्थान को 1904 में संरक्षित घोषित कर दिया गया था। बाद में भी उस संरक्षा को दोहराया गया है।

आज यह स्थान ए.एस.आई. के आधिपत्य में है। इसका आधिपत्य कभी भी मुसलमानों के हाथ में नहीं था। इसलिए इसके वक्फ संपत्ति होने का कोई प्रश्न ही नहीं है।

1935 से पहले यहां के रेवेन्यू रिकॉर्ड में भोजशाला मंदिर लिखा हुआ है, परंतु कहीं पर भी इसको मस्जिद नहीं लिखा है। 1935 से पहले यहां नमाज भी कभी नहीं पढ़ी गई थी। पूजा स्थल कानून में उन सभी स्थानों के लिए एक छूट है, जो पुरातात्विक स्मारक के अंतर्गत संरक्षित नहीं हैं।

इसलिए यह उसमें भी नहीं आता है। इसका मूल चरित्र क्या है? खंभों पर वराह, राम, लक्षमण, सीता की मूर्ति हैं। जय-विजय द्वारपालों की मूर्ति है। इसके अलावा जमीन के अंदर का भाव क्या कहता है, इन सभी की विधिवत जांच हो रही है।

इसका हम सबको स्वागत करना चाहिए और विश्वास करना चाहिए कि इसमें हिंदू समाज को न्याय मिलेगा। मैं यह भी कहना चाहता हूं कि वहां पर एक बड़ा मकबरा है, जो कि उस सर्वे नंबर में नहीं है, जहां भोजशाला का मंदिर है। इसलिए इन दोनों को मिलाकर देखने का कोई अर्थ नहीं है।

 

Topics: भोजशाला मंदिरBhojshala Templeपुरातात्विक स्मारकArchaeological Monumentहनुमान चालीसाPlace of Worship Lawहिंदू समाजBhojshalahanuman chalisahindu societyपूजा स्थल कानूनपाञ्चजन्य विशेषभोजशाला
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