इन दिनों अयोध्या का राममय वातावरण देखते ही बन रहा है। इस पर कबीर के पद की एक पंक्ति स्मरण आती है-
‘राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट।
अंत समय पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट।।’
राम नाम को साहित्य जगत में पर्याप्त स्थान प्राप्त है। जिस प्रकार वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामचरितमानस व रामलीला मंचन से रामकथा का प्रसार हुआ, उसी प्रकार साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से कथा, काव्य, दोहावली, श्लोक, गीत आदि के माध्यम से रामनाम को जन-जन तक पहुंचाया और चैतन्य रूप में स्थापित किया।
हिंदी साहित्य के काल को जब हम विभाजित करते हैं तो आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल व आधुनिक काल, इनमें भक्ति काल (सन् 1375 से 1700) का वर्णन आता है। इस काल में जिन भक्त कवियों ने विष्णु अवतार के रूप में श्रीराम की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया उन्हें ‘राम काव्यधारा’ के कवि कहा जाता है। इसके प्रमुख कवि हैं- रामानंद, अग्रदास, ईश्वरदास, तुलसीदास, नाभादास, केशवदास व नरहरिदास।
रामभक्ति काव्यधारा का प्रारंभ रामानंद से माना जाता है। ये रामानंदी (रामावत) व श्री संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इनकी प्रमुख रचनाएं रामार्चन पद्धति, वैष्णवमताब्ज, हनुमान जी की आरती (आरती कीजे हनुमान लला की), रामरक्षास्त्रोत हैं। अग्रदास ने स्वयं को ‘अग्रकली’ (जानकी की सखी) मानकर काव्य रचना की। उनकी रचनाओं में प्रमुख हैं- ‘ध्यान मंजरी’, ‘अष्टयाम’, ‘रामभजन मंजरी’, ‘उपासना बावनी’, ‘हितोपदेशी भाषा’।
गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘रामचरितमानस’ अद्भुत व सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसके अलावा उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं- ‘बरवै रामायण’, ‘रामाज्ञा प्रश्नावली’, ‘कलिकाल’, ‘हनुमानबाहुक’, ‘कवित रामायण’, ‘रामलला नहछु’, ‘जानकी-मंगल’, ‘विनय-पत्रिका’, कृष्ण ‘गीतावली’। राम काव्य धारा के कवियों में सर्वाधिक रचनाएं तुलसीदास की हैं। नाभादास तुलसी के समकालीन थे। इनकी प्रमुख रचना ‘भक्तमाल’ है, जिसमें 200 कवियों का वर्णन है। केशवदास की प्रमुख रचनाओं में ‘रामचंद्रिका’ है तो नरहरिदास की ‘पौरुषेय रामायण’।
महाभारत में द्रोण पर्व, शांति पर्व और आरण्यक पर्व में रामकथा का वर्णन आता है। वहीं हरिवंश, वायु, विष्णु, भागवत, कूर्म, अग्नि, नारद, गरुड़, स्कंध, ब्रह्मवैवर्त, ब्रह्मांड आदि पुराणों में रामकथा का उल्लेख है। अगस्त्य संहिता, कलि राघव और राघवीय संहिता में राम के प्रति दास्य भाव की भक्ति का वर्णन है। वहां अनेक ग्रंथों में श्रीराम के दिव्य रूप की उपासना का उल्लेख है।
रामकथा को आधार बनाकर संस्कृत में अनेक नाटक लिखे गए हैं। भास द्वारा रचित ‘प्रतिमा’ और ‘अभिषेक’, भवभूति रचित ‘महावीर चरितम्’ और ‘उत्तर रामचरितम्’, मुरारी रचित ‘अनंगराघव’, रामेश्वर रचित ‘बालरामायण’ व ‘हनुमन्नाटक’, आश्चर्य चूड़ामणि कृत ‘प्रसन्नराघव’आदि नाटकों में रामकथा को कथानक बनाया गया है। कालिदासकृत ‘रघुवंश’ महाकाव्य में नवम् से षोडश सर्ग तक रामकथा का वर्णन है। कुमारदास रचित ‘जानकीहरण’, क्षेमेन्द्र कृत ‘रामायण मंजरी’ व ‘दशावतार चरित’ महाकाव्यों में रामकथा का ही वर्णन है। कालिदासकृत रघुवंश में श्रीराम के अयोध्या आगमन का वर्णन इस तरह किया गया है-
स मौलरक्षोहरिमिश्रसैन्यस्तूर्यस्वनानन्दितपौरवर्ग:।
विवेष सौधोद्गतलाजवर्षां उत्तोरणां अन्वयराजधानीं।। 14.10।।
अर्थात् सेना सहित राम ने तुरही आदि वाद्यों से नागरिकों को आनंद विभोर करते हुए पुराने मंत्रियों, राक्षसों और वानरों के साथ रघुवंश के राजाओं की उस राजधानी अयोध्या में प्रवेश किया, जो सब ओर बन्दनवारों से सजी थी, और जिसके चूने से पुते भवनों से धान का लावा बरस रहा था।
मेहो जी कृत ‘रामायण’ कहती है-
‘अठसठ तीरथ जो पुन न्हाया, सुणौ रामायण काने,
पढियां नै मेहो समझावै, धायो धर्म धियाने।’
मेहो जी ने रामायण की रचना 1575 में की थी। 258 छंदों में रचित यह रामायण राजस्थानी भाषा में है। प्राणचंद चौहान ने संवत् 1667 में ‘रामायण महानाटक’ लिखा वहीं हृदयरमा ने ‘हनुमन्न’ नाटक की रचना की।
आधुनिक युग के रामकाव्य में रामचरित उपाध्याय का ‘रामचरित चिंतामणि’, रामनाथ ज्योतिषी का ‘श्रीराम चंद्रोदय’, मैथिलीशरण गुप्त का ‘साकेत’, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का ‘वैदेही वनवास’, बालकृष्ण शर्मा नवीन का ‘उर्मिला’ आदि महाकाव्य हैं जिनमें आधुनिक युग के अनुसार नवीन विचारों का समावेश किया गया है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ रचित ‘राम की शक्तिपूजा’, माया देवी द्वारा रचित ‘शबरी’, एवं नरेश मेहता कृत ‘संशय की एक रात’ राम कथा पर आधारित काव्य रचनाएं हैं।
हिंदी सिनेमा में अब तक रामायण पर 50 से अधिक फिल्मांकन हुए हैं। वहीं 20 से अधिक टीवी धारावाहिकों का भी निर्माण किया गया, लेकिन 1987 में रामानंद सागर निर्देशित टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ सबसे लोकप्रिय हुआ, जिसका गीत-संगीत लोगों को आज भी मंत्रमुग्ध करता है। 78 कड़ियों में निर्मित यह धारावाहिक टीवी पर पहली बार 25 जनवरी, 1987 से 31 जुलाई, 1988 तक प्रसारित हुआ। उस समय इसकी दर्शक संख्या लगभग दस करोड़ थी।
1968 में आई फिल्म ‘नील कमल’ में आशा भोंसले ने ‘ओरे रोम रोम में बसने वाले राम’ भजन गाया था। 1976 में लता मंगेशकर ने फिल्म ‘बजरंगबली’ में ‘हे राम तेरे राज में कैसे जियें सीताएं’ गाया था। किशोर कुमार ने भी 1977 में फिल्म ‘राम भरोसे’ में ‘राम से बड़ा राम का नाम, बनाये सबके बिगड़े काम’ गीत गाया। मोहम्मद रफी ने 1981 में भी ‘महाबली हनुमान’ फिल्म में ‘मन की आंखों से मैं देखूं रूप सदा सियाराम का’ भजन गाया था। ‘मंगल भवन अमंगल हारी’, रवीन्द्र जैन द्वारा तैयार एल्बम ‘जय जय श्री राम’ का एक अनूठा भजन है, जो गायक सतीश देहरा, दीप माला और रचना के साथ गया है। ‘हम कथा सुनाते हैं…’ टेलीविजन श्रृंखला रामायण में प्रदर्शित इस भजन में लव-कुश को भगवान श्रीराम की स्तुति गाते हुए दिखाया गया है।
सुदर्शन फाकिर द्वारा ‘हे राम हे राम’ रचित रामधुन की जगजीत सिंह द्वारा भावपूर्ण प्रस्तुति की गई। ‘जय राम राम रामनाम शरणम्’ भजन को महान गायिका लता मंगेशकर द्वारा भक्ति का सार दर्शाते हुए प्रस्तुत किया गया। कैलाश खेर द्वारा गाया गीत ‘राम का धाम’ अत्यंत प्रसिद्ध हुआ। यह अनु मलिक के संगीत निर्देशन में तैयार एल्बम ‘अयोध्या धाम का राम मंदिर’ का एक गीत है। ‘जय रघुनंदन जय सियाराम’-1961 में आई फिल्म घराना का एक शानदार भजन है, जिसे मोहम्मद रफी और आशा भोंसले ने गाया था। ‘श्री राम चंद्र कृपालु भज मन’-केदार पंडित द्वारा लिखी व अनुराधा पौडवाल द्वारा गाई भगवान श्री राम की महिमा है। ‘पल पल है भारी’-जावेद अख्तर लिखित, एआर रहमान द्वारा संगीतबद्ध भजन को मधुश्री, विजय प्रकाशन ने गाया है।
आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चात् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।
अर्थात् श्रीराम वनवास गए, वहां उन्होंने स्वर्ण मृग का वध किया। रावण ने सीताजी का हरण कर लिया, जटायु रावण के हाथों मारा गया। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। श्रीराम ने बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंका का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया। ये है रामायण।
(लेखक विद्या भारती, जोधपुर प्रांत के संगठन मंत्री हैं)
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