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कलंक मिटा, कश्मीर खिला

धारा 370 जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता के नाम पर शेष भारत से काटती थी। वहां रहने वालों को केन्द्र की लाभकारी योजनाओं से दूर रखती थी। यह पाकिस्तान को घाटी में जिहादी षड्यंत्र चलाने की सहूलियत देती थी। इस अस्थायी धारा को हटाने के लिए किए गए मोदी सरकार के प्रयासों को दर्शाती है ‘आर्टिकल 370’

by Alok Goswami
Mar 13, 2024, 01:30 pm IST
in भारत, विश्लेषण, जम्‍मू एवं कश्‍मीर
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तेईस फरवरी, 2024 से देशभर के सिनेमाघरों में एक गजब की फिल्म प्रदर्शित हो रही है। आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर राज्य में पाकिस्तान परस्त नेताओं और अलगाव परस्त कट्टर मजहबियों की शह पर राज्य की तत्कालीन संविधान परिषद द्वारा जोड़ी गई धारा 370 की कलई खोलने वाली फिल्म। भारत के संविधान में 17 नवम्बर 1951 से लेकर 5 अगस्त 2019 तक शामिल रही इस ‘अस्थायी’ धारा ने कैसे कश्मीर को भारत से काटने के पाकिस्तानी मंसूबों को हवा दी, कैसे घाटी के नेताओं ने केन्द्र से विकास के लिए भेजे अरबों रुपयों पर ऐश की और भारत विरोधियों की जमात तैयार की…इस सबको चुन-चुनकर उजागर करती फिल्म। 70 साल से इस धारा को सींचती, सहेजती आने वाली जिहादी सोच को परास्त करके 2019 में केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को शांति और विकास के रास्ते पर लाने के लिए की गई जद्दोजहद को उसकी बारीकियों तक झलकाती फिल्म।

धारा 370 को निरस्त करना केन्द्र की मोदी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए आसान नहीं रहा था। क्यों? इसे समझने के लिए आजादी के बाद से ही आहत रही ऋषि कश्यप और शैव मत की धरती जम्मू-कश्मीर की पृष्ठभूमि पर नजर डालना उपयुक्त होगा।

आरम्भ से मचता रहा मजहबी उत्पात

…उन्नीस सौ सैंतालिस में विभाजन के दंश के साथ भारत आजाद हुआ। लेकिन भारत के पड़ोस में मजहब के नाम पर अलग देश बनाने के बाद भी मोहम्मद अली जिन्ना के शागिर्दों के शैतानी दिमाग में हिन्दू बहुल भारत के लिए ऐसी चिढ़ पैदा हो गई कि 1947 में कबाइलियों के बाने में पाकिस्तान की सेना ने भारत के भाल जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया। मंशा थी उस हिस्से को कब्जाना।

इधर राजा हरि सिंह भारत के साथ रियासत का विलय करने को तैयार थे, तो उधर गांधी जी से कथित निकटता की वजह से भारत के पहले प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू अपने दोस्त शेख अब्दुल्ला को रियासत का ‘प्रधानमंत्री’ बनाने की शर्त पर ही विलय होने देने पर अड़े थे। पाकिस्तानी सेना के रियासत में निर्बाध अंदर तक चले आने से बेचैन राजा हरि सिंह को रियासत की सुरक्षा की खातिर जवाहरलाल की वह बेतुकी शर्त माननी पड़ी। विलय हुआ।

दिल्ली ने फिर सेना रवाना तो की, लेकिन तब तक इतनी देर हो चुकी थी कि पाकिस्तानी सेना रियासत के काफी बड़े हिस्से तक घुस आई थी, जिसे भारत के बहादुर सैनिक खदेड़ते हुए पाकिस्तान के बहुत अंदर तक जा पहुंचे थे। लेकिन एक बार फिर जवाहरलाल ने भारत के हित को चोट पहुंचाते हुए संयुक्त राष्टÑ में संघर्षविराम स्वीकार किया औरकश्मीर का एक बड़ा भूभाग पाकिस्तान के गैरकानूनी कब्जे में ही छोड़कर, अपनी सेनाएं लौटा लीं।

जवाहरलाल की उस ऐतिहासिक भूल के दम पर शेखी बघारते हुए ‘सदरे-रियासत’ शेख अब्दुल्ला ने आगे भारत के संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने वाली धारा 370 जुड़वा ली।…बस, तभी से भारत का अभिन्न हिस्सा होते हुए भी जम्मू-कश्मीर घाटी के कट्Þटर मजहबी और अलगाव पसंद तत्वों की खुली ऐशगाह बन गया।

1952 में भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक देश में ‘दो प्रधान, दो विधान, दो निशान’ के विरुद्ध आंदोलन करते हुए जान की बाजी लगा दी थी। कहते हैं, शेख अब्दुल्ला यही चाहते थे कि मुखर्जी घाटी से जिंदा न लौट पाएं। श्रीनगर की जेल में रातोंरात डॉ. मुखर्जी की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।

फिल्म में यामी गौतम धर और प्रियामणि ने उल्लेखनीय अभिनय किया है

जिहादी आतंक और लापरवाह दिल्ली

70 से ज्यादा साल तक पाकिस्तान परस्त तीन सियासी कुनबे जम्मू-कश्मीर का मिल-बांटकर दोहन करते रहे, प्रदेश को गरीब और पिछड़ा बनाए रखा। केन्द्र की विकास योजनाओं को प्रदेश में लागू नहीं होने दिया, देश का पैसा लूटा जाता रहा। पाकिस्तान को वहां भारत विरोधी जिहाद पनपाने की खुली छूट दी। 1989 में पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई घाटी में खुलकर मनमानी कर रही थी। भाड़े के जिहादियों के जरिए कश्मीर में प्राचीन काल से बसे कश्मीरी पंडितों को पलायन करने को मजबूर कर दिया गया। जनवरी 1990 से वहां हिन्दुओं को चुन-चुनकर मारा गया।

जम्मू एवं कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग था, है और रहेगा

22 फरवरी, 1994 को भारतीय संसद के दोनों सदनों में जम्मू एवं कश्मीर पर सर्वसम्मति से पारित हुए प्रस्ताव के संपादित अंश इस प्रकार हैं:
यह सदन…
—भारत के लोगों की ओर से, दृढ़तापूर्वक घोषणा करता है कि: जम्मू एवं कश्मीर राज्य भारत का अविभाज्य अंग था, है और रहेगा तथा शेष भारत से इसे पृथक करने की किसी भी कोशिश का सभी आवश्यक साधनों से प्रतिरोध किया जायेगा;
भारत के पास इसकी एकता, संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता के विरुद्ध सभी षड्यंत्रों के दृढ़तापूर्ण मुकाबले हेतु इच्छाशक्ति एवं क्षमता मौजूद है।
—मांग करता है कि: पाकिस्तान भारतीय राज्य जम्मू एवं कश्मीर के उन क्षेत्रों को अवश्य ही खाली कर दे, जिस पर उसने आक्रमण के द्वारा कब्जा कर लिया है;
—संकल्प करता है कि: भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के सभी प्रयासों का दृढ़तापूर्वक मुकाबला किया जायेगा।

आतंक की हद भी हद से पार जा चुकी थी। मस्जिदों से हिन्दुओं को खुलेआम धमकाया गया-‘‘अपनी बहू-बेटियों को यहीं छोड़कर घाटी से चले जाओ या कन्वर्ट हो जाओ, नहीं तो मार दिए जाओगे।’’ केन्द्र की तत्कालीन सेकुलर सरकार से किसी भी प्रकार की मदद न मिलती देख, 19 जनवरी 1990 की कुहासे भरी सर्द रात में लगभग 5 लाख कश्मीरी पंडित जान बचाकर जम्मू और देश के दूसरे हिस्सों में पलायन कर गए।

1951-52 में डॉ. मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर सहित पूरे भारत की अखंडता का जो बीज रोपा था उसे अंकुरित होने देने का महती काम शायद ईश्वर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों कराने का सोच रखा था। तभी तो 1952 के बाद दिल्ली में कितनी ही सरकारें आईं, संसद के कितने ही सत्र हुए, लेकिन कश्मीर के नेताओं की धौंस के आगे किसी सरकार की हिम्मत न हुई कि उस ‘अस्थायी’ धारा 370 को चिमटी से भी छू पाती जिसने कश्मीर को भारत से काट कर एक विशेष दर्जा दिया हुआ था।

आखिरकार 5 अगस्त 2019 को केन्द्र की मोदी सरकार ने धारा 370 और 35 ए को निरस्त किया। जम्मू-कश्मीर में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। वहां विकास और शांति की बयार बही। कश्मीरियों ने लोकतंत्र की ताकत पहचानी और धूर्त कुनबाई नेताओं से किनारा किया।

‘‘हम ऐतिहासिक भूल सुधारने जा रहे हैं’’

6 अगस्त 2019 को धारा 370 निरस्त करने के लिए लोकसभा में प्रस्तुत बिल पर सांसदों के सवालों और आपत्तियों के जवाब देते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह ने जो वक्तव्य रखा उसके संपादित अंश इस प्रकार हैं—

फिल्म में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की भूमिका में किरन करमरकर

…370 को लेकर जनमानस में एक संशय था। आज यह कलंक मिट गया।
…इतिहास में यह दिन स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।
…पीओके पर हमारा दावा उतना ही मजबूत है, जितना पहले था।….बिल में पीओके और अक्साई चिन दोनों का जिक्र है।
…20 जनवरी,1948 को संयुक्त राष्ट्र ने यूएनसीआईपी का गठन किया और 13 अगस्त 1948 को उसके प्रस्ताव को भारत, पाकिस्तान दोनों ने स्वीकार कर लिया। 1965 में पाकिस्तानी सेना ने हमारी सीमा का अतिक्रमण किया था तो यूएनसीआईपी का प्रभाव खत्म हो गया था।…शिमला समझौते के वक्त भी इंदिरा गांधी ने दोहराया कि संयुक्त राष्ट्र कोई दखल नहीं दे सकता।
…मैं पूछना चाहता हूं कि जब 1948 में हमारी सेना पाकिस्तानी कबीलों द्वाराकब्जाए हिस्से को जीत रही थी तो एकतरफा संघर्षविराम किसने किया? यह नेहरूजी ने किया था और उसी वजह से आज पीओके है। सेना को नहीं रोका होता तो पीओके आज भी हमारे साथ होता। आज की घटना का जब भी जिक्र होगा तो इतिहास नरेंद्र मोदी को सालों-साल याद करेगा।
…370 जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध था। उसे हटाना इसलिए जरूरी था क्योंकि यह संसद के अधिकार को कम करता था। पाकिस्तान अलगाववाद की भावना भड़का रहा है तो 370 की वजह से।
…70 साल तक इस मुद्दे पर चर्चा करते-करते थक गए, 3 पीढ़ियां आ गईं। किससे चर्चा करें? जो पाकिस्तान से प्रेरणा लेते हैं, उनसे चर्चा करें? हम हुर्रियत से चर्चा नहीं करेंगे।…घाटी की जनता से जितनी ज्यादा हो सकेगी हम चर्चा करेंगे और उन्हें अपने कामों से आश्वस्त करा देंगे कि वे हमारे लिए खास हैं।
…मैं इससे सहमत नहीं हूं कि बेकारी के कारण आतंकवाद बढ़ा। बेरोजगारी कई जगहों पर है लेकिन वहां आतंकवाद क्यों नहीं उभरा? कश्मीर में यह पाकिस्तान के इशारे पर हो रहा है, बेरोजगारी की वजह से नहीं।
…1989 से लेकर अब तक 41,900 लोग मारे गए हैं, तो क्या हम दूसरा रास्ता भी न सोचें! इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या अब तक जिस रास्ते पर चले, वह जिम्मेदार नहीं है? हम ऐतिहासिक भूल करने नहीं बल्कि ऐतिहासिक भूल को सुधारने जा रहे हैं। 370 जम्मू-कश्मीर के विकास, लोकतंत्र के लिए बाधक है। गरीबी को बढ़ाने वाली है, आरोग्य, शिक्षा से दूर करने वाली है। यह महिला, आदिवासी, दलित विरोधी है। यह आतंकवाद का खाद और पानी, दोनों है। आर्टिकल 370 इस देश का कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू होने से रोकता है। जम्मू-कश्मीर के सियासतदानों और 3 परिवारों ने अपने लिए इसका विरोध किया। शिक्षा का अधिकार कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो पाया। जमीन अधिग्रहण, दिव्यांगों के लिए, बुजुर्गों के लिए बने कानून भी स्वीकार नहीं किए गए। डिलिमिटेशन देश भर में हुआ, लेकिन जम्मू-कश्मीर में नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि वोट बैंक की राजनीति थी। अब ऐसा नहीं होगा।
…वहां के 3 परिवार नहीं चाहते कि उनके भ्रष्टाचार पर रोक लगे। 370 की वजह से राज्य के विकास को रोका गया है, जनता की भलाई को रोका गया है और लोकतंत्र का गला घोंटा गया है। पंचायती राज व्यवस्था को नहीं लागू होने दिया।
…2004 से 2019 तक 2,77,000 करोड़ रुपये भारत सरकार ने राज्य को दिये, लेकिन वे कहां गये? 370 की वजह से महिलाओं के साथ अन्याय हुआ। अब जम्मू-कश्मीर की बेटी कहीं भी शादी करे, उसे उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकेगा।….मानवाधिकार की बात करते हैं, क्या कश्मीरी पंडितों के मानवाधिकार नहीं थे?

पर्दे पर जीवंत हुआ घटनाक्रम

जम्मू-कश्मीर के माथे पर लगा 370 का कलंक कैसे धुला और उसके धुलने से पहले और बाद में, राजनीतिक-सामाजिक और सुरक्षा के स्तर पर क्या क्या चुनौतियां सामने आर्इं, इसको बखूबी सामने रखती है फिल्म ‘आर्टिकल 370’। निर्माता आदित्य धर, ज्योति देशपांडे व लोकेश धर और निर्देशक आदित्य सुहास जंभाले ने फिल्म के माध्यम से एक अनूठा प्रयास किया है।

पाकिस्तान के पैसे पर घाटी में पल रहे जिहादी बुुरहान वानी को आईबी की टीम द्वारा मुठभेड़ में मारने से शुरू हुई यह फिल्म आगे कश्मीर घाटी में प्रशासन में लगी दीमक और रोपे गए आईएसआई एजेंटों की असलियत दिखाती है। ‘गरीब श्क्षििक के बेटे’ बुरहान की मौत को भुनाने की जिहादियों, अलगाववादियों और नई दिल्ली के सेकुलर मीडिया की करतूतों से पर्दा उठाती यह फिल्म कश्मीर घाटी में गुपकार रोड से चल रही भारत विरोधी सियासत का पर्दाफाश करती है।

फिल्म में पुलवामा हमले का दृश्यांकन रोंगटे खड़े कर देता है तो संसद में मोदी सरकार द्वारा धारा 370 को निरस्त कराने का पूरा घटनाक्रम रोमांचक बन पड़ा है। इसमें इस धारा की तकनीकी बारीकियां समझाने का ईमानदार प्रयास किया गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय की सूझबूझ और गृहमंत्रालय के साथ उसका समन्वय उद्देश्य की पूर्ति में कितने सहायक रहे थे, यह इस फिल्म के कथानक से साफ नजर आता है।

फिल्म में कलाकारों ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय करने की पूरी कोशिश की है। चूंकि यह फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है इसलिए पात्रों में असल चरित्रों से काफी साम्यता दिखती है। जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के हावभाव और बोलने के तरीकों को बहुत हद तक वैसा ही प्रस्तुत किया गया है। इसमें पात्रों का चयन और अदाकारी का कमाल दिखता है। मुख्य पात्रों में यामी गौतम धर, प्रियामणि, अरुण गोविल, किरन करमरकर का अभिनय लुभाता है। छायांकन ने घाटी के घटनाक्रमों और संसद में बहस के दृश्यों में जान डाली है। गीत-संगीत भी संतुलित है।

जम्मू-कश्मीर पर लगा कलंक मिटने के बाद घाटी खिल उठी है। विकास के साथ साथ लोगों में स्वाभिमान फिर से जागने लगा है और वे भारत के नागरिक के नाते गर्व से देश की प्रगति में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। इस बदलाव की पायदानों को पर्दे पर दिखाने में यह फिल्म कामयाब रही है।

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