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इसलिए मंदिर हैं आस्था के आकर्षण

हिंदू मंदिर और अन्य पूजा स्थल केवल पूजा, धार्मिक अनुष्ठान के केंद्र ही नहीं हैं, बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता, सामाजिक सद्भाव, शांति और समृद्धि के केंद्र भी हैं। मंदिर मूर्त-अमूर्त योगदान भी देते हैं

by अतुल जैन
Mar 7, 2024, 12:00 pm IST
in भारत, विश्लेषण
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भारत में मंदिर और अन्य पूजा स्थल केवल धार्मिक अनुष्ठानों के केंद्र नहीं हैं, वे उत्कृष्टता के केंद्र भी रहे हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता। मंदिर सामाजिक सद्भाव, शांति व समृद्धि के साथ आध्यात्मिकता, आस्था, विज्ञान, कला, सामाजिक मुद्दों, सांस्कृतिक-आर्थिक गतिविधियों व चर्चाओं, सामुदायिक प्रवचनों, रणनीतिक और आंतरिक सुरक्षा सहित कई अन्य विषयों के भी केंद्र रहे हैं। इसीलिए, हमारे लिए मंदिर आस्था के आकर्षण हैं। पुराने समय में बड़े-बड़े मंदिरों से ग्राम प्रशासन चलाया जाता था।

अतुल जैन
महासचिव, दीनदयाल शोध संस्थान

दक्षिण भारत में आज भी बहुत से मठों में ग्राम प्रशासन अनौपचारिक ढंग से चलाया जाता है। कोल्हापुर की तरह, लिंगायत समुदाय का 13वीं शताब्दी का कनेरी मठ अभी भी सभी धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक, शैक्षिक, कृषि, गतिविधियों आदि का केंद्र है। यह सब नियमित प्रशासन में बिना किसी हस्तक्षेप के अनौपचारिक तरीके से किया जाता है। वास्तव में, मठ एक सुविधा प्रदान करने वाले ‘मॉडरेटर’ के रूप में कार्य करता है। अतीत की तरह, शासक अभिजात्य वर्ग मठों और मंदिरों आदि के आदेशों पर बहुत हद तक निर्भर है।

उत्तर में हम इसे पंजाब में गुरुद्वारों, हरियाणा और अन्य जगहों पर समागमों के माध्यम से देख सकते हैं। कोल्हापुर में कनेरी मठ की मदद से इस पर सर्वेक्षण भी कराया गया था। हम सभी देश भर में विभिन्न मंदिरों द्वारा संचालित सर्वव्यापी स्कूलों और कॉलेजों को देख सकते हैं। दक्षिण में समृद्ध मंदिर तिरुमला तिरुपति, पद्मनाभ स्वामी, गुरुवायूर, गुजरात और राजस्थान में जैन मंदिर, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में गुरुद्वारा प्रबंधक समितियां अपने संस्थानों के माध्यम से शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। कई बार सरकार द्वारा संचालित संस्थानों की तुलना में निजी संस्थाओं की मांग बहुत अधिक होती है।

धर्मक्षेत्र और अन्नक्षेत्र

जब साधु-संत मंदिरों में जाते थे और वहां रुकते थे, तो वहां शुद्धता, पवित्रता, मितव्ययिता, उत्सव, कला और संस्कृति, सभी का माहौल रहता था। वे वास्तव में चतुष्पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) के केंद्र हैं। इसी प्रकार, प्रकृति के सभी तत्व आकाश, जल, वायु, अग्नि और पृथ्वी, पंचमहाभूत वहां पूर्ण संतुलन और सामंजस्य में पाए जाते हैं। मंदिरों के माध्यम से होने वाली मूर्त गतिविधियों में निम्नलिखित को सूचीबद्ध किया जा सकता है-

1. पर्यावरण संरक्षण (देव वन, अरण्य)
2. जल संरक्षण (सरोवर, पुष्करणी)
3. पशुपालन (गोशाला)
4. पक्षियों को खाना खिलाना (पर्यावरण और फसलों के परागण के लिए बहुत आवश्यक)
5. कृषि (परती भूमि, फसल चक्र, आदि के संबंध में निर्णय सहित)
6. दान में प्राप्त बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में परिवर्तित करना, जिससे मंदिर आत्मनिर्भर बनें
7. उत्सव (बुआई, कटाई, ऋतु, चातुर्मास, अन्नकूट, अमावस्या, पूर्णिमा आदि से संबंधित)
8. सांस्कृतिक प्रदर्शन (लोक गीत, लोक नृत्य, लोकगीत, कथा वाचन)
9. कौशल विकास (विभिन्न व्यवसायों को बढ़ावा देना)
10. विपणन मंच (मेले और हाट)
11. व्यापार और वाणिज्य (सामाजिक समारोहों के माध्यम से)
12. वास्तुकला (क्षेत्रीय, देशी, क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र के अनुसार)
13. इंजीनियरिंग (संरचनात्मक, जल विज्ञान, अनुप्रयुक्त विज्ञान)
14. मूर्तिकला
15. ललित कला (स्केचिंग, पेंटिंग, ड्राइंग, आदि)
16. कला प्रदर्शन (गीत, नृत्य, वाद्य, आदि)
17. शिक्षा (शास्त्रों और मौखिक परंपराओं, दोनों के माध्यम से)
18. पाक कला (प्रसाद बनाने के माध्यम से)
19. बागवानी के माध्यम से सौंदर्यशास्त्र
20. साहित्य (देवताओं और लोक-देवताओं के आह्वान के माध्यम से गद्य और पद्य की रचना)
21. प्रवचन, बहस, विचार-विमर्श
22. न्याय दिलाना
23. धर्मशालाएं
24. अन्नक्षेत्र
25. योजना केंद्र
26. स्वास्थ्य एवं चिकित्सा केंद्र (वैद्यों, फार्मासिस्टों का निवास)
27. स्वस्थ मनोरंजन
28 खेल-कूद
29. पुस्तकालय
30. प्रतियोगिताएं
31. वित्त और बैंकिंग
32. मध्यस्थता
33. परिधान निर्माण और ड्रेस कोड
34. सभ्यतागत विमर्श
35. अनुसंधान केंद्र
35. खगोल विज्ञान के केंद्र
37. अंतरराज्यीय सभाएं
38. रणनीति केंद्र
39. सेनाओं और जासूसों के लिए बंदरगाह (सीमावर्ती क्षेत्रों में, छोटे शहर अभी भी पैदल सैनिकों के लिए छलावरण का काम करते हैं)
41. पुरालेख
42. संग्रहालय
43. अनाथालय और वृद्धाश्रम
44. शासक और शासित के बीच पुल
45. सामाजिक विमर्श
46. दो युद्धरत राज्यों के बीच मध्यस्थ
47. जैव-विविधता के संरक्षक
48. सकारात्मक ऊर्जा और तरंगों के केंद- शंख-घंटियां और घड़ियाल आदि की ध्वनि के साथ।

आर्थिक कारणों के अलावा, भारत के लोगों की चिति (चेतना) उनके लोकाचार में इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी है कि वे अपने बच्चों को ऐसे संस्थानों में शिक्षा दिलाना पसंद करते हैं। मंदिर आपात स्थिति और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के केंद्र भी बन सकते हैं। अपने नियंत्रण में सभी संसाधनों के साथ वे अल्प सूचना पर वित्तीय, मानव संसाधन और रसद जुटा सकते हैं। अधिकांश मंदिरों के पास विशाल परिसर, जल संसाधन, चिकित्सा सुविधाएं आदि होती हैं। ऐसे में एनडीआरएफ और एसडीआरएफ जैसी एजेंसियां ऐसी जगहों पर भरोसा कर सकती हैं और उनके साथ मिलकर मॉक ड्रिल आदि कर सकती हैं।
मंदिर के कुछ मूर्त पहलू और योगदान हैं, और कई अमूर्त भी। जैसे-

  • भारतीय मूल्यों को आत्मसात करना।
  • भारतीय जीवनशैली को आंतरिक बनाना, जो मितव्ययी, टिकाऊ, कलात्मक, वैज्ञानिक, प्रकृति-केंद्रित हो।
  • राष्ट्रवाद को समझना, और इसकी अभिव्यक्ति
  • सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण एवं संवर्धन 

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