यूरोप के लगभग सभी देशों में इस्लामवादी तत्व शरणार्थियों के बाने में जा पहुंचे हैं। वहां जिस प्रकार की कट्टरपंथी हरकतें ये लोग कर रहे हैं उससे हर वह देश परेशान है जिसने ‘मानवता’ के नाम पर इन्हें अपने यहां बसने दिया है। लेकिन फ्रांस ऐसा यूरोपीय देश है जिसने इन मजहबी कट्टर तत्वों की मनमानी पर काफी हद तक विराम लगाया है। इस देश ने अपने कानूनों को बदलने की प्रक्रिया शुरू की है जिससे ऐसे तत्वों के हौंसले पस्त हों। अब फ्रांस ने इन मजहबी कट्टरपंथी शरणार्थियों को देश से निकाल बाहर करने का एक नया कदम उठाया है और संभवत: इस माह में वह करीब 23 हजार प्रवासियों को बाहर कर देगा।
इन ‘शरणार्थियों’ के विरुद्ध फ्रांस की इस कार्रवाई से जो करीब 23 हजार प्रवासी निकाले जाने हैं उनमें पाकिस्तान सहित कम से कम दस देशों के लोग शामिल हैं। ये देश हैं इराक, सीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया, मिस्र और मोरक्को।
संतोष की बात यह भी है कि फ्रांस के इन सख्त कदमों को देखकर कुछ अन्य यूरोपीय देश भी गलत रास्तों से देश में आने वाले प्रवासियों पर लगाम लगाने की कार्रवाई कर रहे हैं। एक अन्य देश ब्रिटेन ने भी रवांडा शरणार्थियों के बारे में यह कार्रवाई शुरू की हुई है।
फ्रांस के संबंध में अभी तक की जानकारी के अनुसार, इस माह वहां से ऐसे करीब 23 हजार अवैध प्रवासियों को देश से बाहर किया जाने वाला है। उल्लेखनीय है कि आगामी अगस्त माह में फ्रांस में ओलंपिक खेल होने हैं। इस आयोजन के लिए आवश्यक सुरक्षा और सतर्कता बरती जा रही है। देश में पहले से ही उपद्रव मचाते आ रहे कट्टरपंथी प्रवासियों को सुरक्षा के लिहाज से खतरा माना जा रहा है। इसलिए शायद इसी को ध्यान में रखते हुए उन्हें देश से बाहर करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। गत वर्ष भी फ्रांस ने ऐसे ही करीब 38 हजार प्रवासियों को उनके देश भेजा था।
जैसा पहले बताया, यूरोप के अनेक देशों सहित फ्रांस में भी इन पाकिस्तानियों और दूसरे देशों से आए कट्टर मजहबी तत्वों ने स्थानीय नागरिकों का जीना मुहाल किया हुआ है। अपराध का ग्राफ बढ़ गया है और महिला सुरक्षा भी दाव पर लगी है। डकैती, बलात्कार, हत्या जैसे अपराधों में तेजी देखी गई है। इतना ही नहीं, इस्लामवादियों ने ‘इस्लाम के हकों’ और शरिया लागू करने को लेकर कई उग्र प्रदर्शन भी किए हैं।
यूरोप में फ्रांस ऐसे तत्वों को बर्दाश्त न करने वाला देश माना जाता है। यही वजह है कि वहां की संसद ने एक नया आप्रवासन विधेयक पारित किया है। इसका मकसद अवैध रूप से प्रवासियों को उस देश में आने देने से रोकना है। ऐसा ही एक कानून ब्रिटेन भी लागू करने की प्रक्रिया में है।
फ्रांस में तो गत दिसम्बर माह में राजधानी पेरिस में जर्मन पर्यटक पर चाकुओं से हमला करके उसे जान से मार डाला गया था। वह इस्लामवादी हमलावर गाजा पर इस्राएली हमले को लेकर आक्रोश में था। इससे दो माह पहले, उक स्कूल में शिक्षक की चाकू मारकर हत्या की गई थी। उससे भी पहले सीरिया के एक प्रवासी ने चार बच्चों पर तेज धार हथियार से हमला किया था।
इसी तरह वहां दूसरे देशों के मुल्ला मौलवी आकर जिस प्रकार की उकसावे वाली तकरीरें करते हैं उसे भी फ्रांस बर्दाश्त नहीं करता। हाल में ऐसे दो मौलवियों को उस देश ने देश से बाहर भेज दिया था। उन पर यहूदी विरोधी भावनाएं भड़काने और मजहबी उन्माद फैलाने के आरोप थे। फ्रांस में मजहबी दंगे भी हो चुके हैं। ये उपद्रव मुस्लिम ‘शरणार्थियों’ द्वारा किए गए थे।
यूरोप में फ्रांस ऐसे तत्वों को बर्दाश्त न करने वाला देश माना जाता है। यही वजह है कि वहां की संसद ने एक नया आप्रवासन विधेयक पारित किया है। इसका मकसद अवैध रूप से प्रवासियों को उस देश में आने देने से रोकना है। ऐसा ही एक कानून ब्रिटेन भी लागू करने की प्रक्रिया में है। हालांकि फ्रांस में विपक्षी दल इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि इससे देश की ‘उदार’ छवि को नुकसान पहुंचेगा। लेकिन सरकार का मानना है कि ‘उदारता’ के नाम पर मजहबी कट्टरता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
अभी जनवरी माह में पारित हुए इस कानून को विपक्षी दल नस्लवादी कह रहे हैं। लेकिन विशेषज्ञों की राय में इस कानून से देश में अवैध प्रवासियों के आने पर लगाम लगेगी। इतना ही नहीं, इससे सबक लेकर यूरोप के अन्य देश भी अपने यहां इस संबंध में सख्ती करने को प्रेरित होंगे।
अब सवाल है कि फ्रांस कितनी जल्दी इस कानून को अपने यहां लागू कर पाएगा। माना जा रहा है कि फ्रांस का यह कदम ऐतिहासिक होगा और दूसरे के लिए प्रेरक भी।
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