बंगाल में बढ़ते मजहबी उन्माद के कारण कानून-व्यवस्था नियंत्रण से बाहर जा रही है। एक ओर हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है तो दूसरी ओर ममता के तुच्छ स्वार्थ ने अराजक तत्वों के हौसले इतने बुलंद कर दिये हैं कि ‘भद्रजन’ की धरती की संस्कृति और सभ्यता को ही मिटाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
हाल ही की संदेशखाली की घटना इसका बड़ा उदाहरण है कि कैसे एक बंगलादेशी मुसलमान भारत आया मजदूरी करते करते उसने अपने जैसे लोगों को इकठ्ठा कर अपना जनाधार बनाया और सत्ता के निकट पहुंचा। इसके धीरे धीरे क्षेत्र में अपनी हनक बढ़ता गया और वहां के स्थानीय हिंदू और जनजाति समुदाय के लोगों का उत्पीडन कर अपनी संपत्ति और अपनी हनक को और बढ़ाता चला गया। ये सब कुछ ऐसे ही नहीं हो गया संदेशखाली के आरोपी शेख को संरक्षण प्राप्त था TMC सुप्रीमों और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का।
वैसे तो ममता का बांग्लादेशियों के प्रति प्रेम जगजाहिर है। और इस बात को मजबूती मिलती है उनके बयानों से। ऐसा ही एक बयान ममता बनर्जी ने वर्ष 2020 में मार्च के महीने में 3 तारीख को दिया था। उस समय उन्होंने साफ और स्पष्ट रूप से कहा था कि जो लोग बांग्लादेश से आए हैं और चुनाव में वोट डाल रहे हैं वे भारतीय नागरिक हैं और उन्हें नागरिकता के लिए नए सिरे से आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने कहा था कि “जो लोग बांग्लादेश से आए हैं, वे भारत के नागरिक हैं….उन्हें नागरिकता मिल गई है। आपको दोबारा नागरिकता के लिए आवेदन करने की जरूरत नहीं है। आप चुनावों में वोट डालते रहे हैं, पीएम और सीएम चुनते रहे हैं, अब वे कह रहे हैं कि आप ‘नागरिक नहीं है….उन पर विश्वास मत कीजिए।”
ममता बनर्जी ने तो यहां तक कहा डाला था कि वह ”एक भी व्यक्ति” को बंगाल से बाहर नहीं जाने देंगी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में रहने वाले किसी भी शरणार्थी को नागरिकता से वंचित नहीं किया जाएगा।
बंगाल की मुख्यमंत्री का यह बयान उस समय आया था जब दिल्ली हिंसा भड़की हुई थी और तब-तक लगभग 42 लोगों की जान जा चुकी थी। जिसके बाद केंद्र सरकार ने सख्ती दिखाते हुए उपद्रवियों पर कार्रवाई की थी। उसी कार्रवाई को लेकर ममता बनर्जी का यह बयान आया था और उन्होंने यहाँ तक कह डाला था कि, “यह मत भूलो कि यह बंगाल है। दिल्ली में जो हुआ वह यहां कभी नहीं होने दिया जाएगा। हम नहीं चाहते कि बंगाल दूसरी दिल्ली या दूसरा उत्तर प्रदेश बने।”
ममता बनर्जी अक्सर “मुस्लिम तुष्टिकरण” और “वोट बैंक की राजनीति” के लिए अल्पसंख्यक समुदाय और घुसपैठियों को संरक्षण प्रदान करती रहीं है जिसका सबूत शेख शाहजहां जैसे व्यक्ति है। जिसने सत्ता की आड़ में हिंदू और जनजातीय महिलाओं का न केवल उत्पीडन किया बल्कि उनकी जमीन इज्जत आबरू को भी लूटने का काम किया है। ये प्रकरण भी तब खुला जब संदेशखाली की महिलाओं ने एकजुट होकर अपनी आवाज उठाई जिसके बाद ये राष्ट्रीय मुद्दा बना। लेकिन ऐसे ही ना जाने कितने शेख शाहजहां जैसे लोग बंगाल में संरक्षण लेकर पल रहे है। जो धीरे-धीरे अपना वर्चस्व बढ़ा रहे हैं और भारत के नागरिकों के लिए परेव्शानी का सबब बन्ने को तैयार हैं।
ममता के राज में फलफूल रहे मुसलमान
तृणमूल कांग्रेस की ममता सरकार के पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने के बाद से जैसे मुसलमानों को पूरी तरह से हिन्दुओं को निशाना बनाने की छूट मिल गई है। इस सेकुलर सरकार के रवैये के कारण हिन्दुओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है। नदिया जिला बंगलादेश की सीमा से सटा हुआ है और पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी करीब 30 फीसद है। बंगलादेश की सीमा से सटे नदिया जिले में बंगलादेशी घुसपैठिये बड़ी आसानी से पहुंचते हैं जिससे पूरे हिन्दुओं पर हमलों में तेजी आई है। वे नादिया से लेकर उत्तरी बंगाल तक अपना वर्चस्व फैलाना चाहते हैं। इस समय कालीगंज, जुरानपुर और नाओदाह के अलावा हंसखली और मल्लिकपुर भी इसमें शामिल हो गए हैं।
ममता राज में तस्करी से आबाद हो रहीं हैं मस्जिदें
उत्तर 24 पगरना जिले के बशीरहाट और बादुरिया जैसे सीमावर्ती इलाकों में तीन चीजें कदम-कदम पर दिखती हैं- मछली का कारोबार, र्इंट भट्ठे और आलीशान मस्जिदें। स्थानीय लोगों की मानें तो इस इलाके में 10 साल पहले बहुत कम मस्जिदें थीं और आज इन्हें गिनना मुश्किल है। लोगों का कहना है कि इलाके में तस्करी जमकर होती है। टांकी के दीप (परिवर्तित नाम) एक राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं। वे बताते हैं, ‘‘10 साल पहले यहां के मुसलमानों की आर्थिक स्थिति जर्जर थी। उनके पास साइकिल खरीदने तक के पैसे नहीं थे। आज वे करोड़पति हैं और उनके पास सभी संसाधन हैं। क्योंकि वे गाय से लेकर सोना, हथियार और ड्रग्स तक की तस्करी करते हैं। तृणमूल के मुस्लिम नेता सीधे तौर पर तस्करी से जुड़े हुए हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि गोतस्करी का कारोबार ही हजारों करोड़ का है। यह बात किसी से भी छिपी नहीं है। इसी तस्करी के पैसे से बंगाल में कई बड़ी-बड़ी मस्जिदें खड़ी की जा रही हैं। आज बादुरिया-बशीरहाट क्षेत्र में ही अकेले 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी मस्जिदें हैं।’’ अगर केंद्रीय एजेंसी से जांच कराई जाए तो मस्जिदों और मदरसों का सच सबके सामने आ जाएगा।’
खुली सीमा से होती है घुसपैठ और तस्करी
एक बात और गौर करने वाली है कि मालदा और बांग्लादेश की सीमा 172 किलोमीटर लम्बी है। इसमें 50 किलोमीटर की सीमा खुली है। इस सीमा में कई नदियों की जल सीमा है। लेकिन मालदा के उन्नयन प्रखंड की सीमा जिहादी और असामाजिक तत्व, पशु तस्करी और जाली मुद्रा की तस्करी के लिए सबसे सरल है, जहां से वे बड़ी आसानी के साथ अपना काम करते हैं। समय-समय पर विभिन्न खुफिया एजेंसी इसको लेकर सचेत करती रहती हैं।
सीमा के गांवों में है जिहादी गुटों के शिविर
इस प्रखंड से बंग्लादेश के तलकूप्पी, मानाकासा, अलकूनी गांवों की दूरी केवल आधा किलोमीटर ही है। इन बंगलादेशी गांवों से ढाका 400 किमी. की दूरी पर है। राजधानी शहर ढाका से दूरी और दुर्गम स्थान पर जमात-ए-इस्लामी सहित विभिन्न जिहादी गुटों ने अपने आधार शिविर इन्हीं गांवों में बनाए हैं।
आईएसआईएस का मिल रहा संरक्षण
कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस जमात-ए-इस्लामी को भरपूर सहयोग दे रहा है। तो दूसरी ओर जाली मुद्रा का कारोबार भी इनको धन मुहैया कराता है। बांग्लादेश के विभिन्न स्रोतों से पता चला है कि पांच जाली मुद्राओं में से तीन मुद्रा आईएसआई द्वारा चलाई जाती हैं। सभी जिहादी गुट बंंग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। जब इस बात की भनक हसीना सरकार को हुई तब जाकर जिहादी गुटों के खिलाफ अभियान चलाया गया, वह भी अचानक।
उल्लेखनीय है कि ऐसे जिहादी तत्वों को भारत के अंदर से भी मदद के प्रयास किए गए, इसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सीमाक्षेत्र पर उनके लोग हर तरह से उनकी मदद करते हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों की मानें तो जिन-जिन गांवों से बंग्लादेश की सीमा सटी है, वहां चौकसी के नाम पर खास इंतजाम नहीं है। कभी भी यहां कोई आ-जा सकता है। यहां से तस्कर एवं अन्य असामाजिक गाहे-बगाहे तत्व आते-जाते हैं। जिसके चलते कई बार यहां से कई आतंकी भी पकड़े गए हैं।
टिप्पणियाँ