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दुनिया से इतर भारत कहीं बेहतर

ब्रिटेन, जर्मनी और जापान में आर्थिक उथल-पुथल, अमेरिका और चीन में मंथन से भारत की योजनाओं पर असर तो नहीं पड़ेगा, लेकिन उससे प्रतिकूल वैश्विक परिस्थितियों को दूर नहीं किया जा सकेगा

by के.ए. बद्रीनाथ
Mar 2, 2024, 08:36 am IST
in विश्लेषण, बिजनेस
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संकटग्रस्त यूनाइटेड किंगडम की अर्थव्यवस्था भी 2023 की आखिरी दो तिमाहियों के बाद आधिकारिक तौर पर मंदी की चपेट में आ गई है। इसका तत्काल प्रभाव पड़ा है। जापान वैश्विक आर्थिक स्वीपस्टेक्स में चौथे स्थान पर आ गया और उसकी जगह जर्मनी रैंकिंग में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। इस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि अगले दो माह में यहां लोकसभा चुनाव होने वाले हैं।

पिछले कुछ दिनों में तीन महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आए हैं। ये तीनों ही आंतरिक तौर पर जुड़े हुए हैं और अर्थव्यवस्था से संबंधित हैं, जिनका लंबे समय तक वैश्विक स्तर पर प्रभाव रहेगा। जापानी अर्थव्यवस्था 2023 में समाप्त लगातार दो तिमाहियों में सिकुड़ गई और मंदी की सूचना मिली। संकटग्रस्त यूनाइटेड किंगडम की अर्थव्यवस्था भी 2023 की आखिरी दो तिमाहियों के बाद आधिकारिक तौर पर मंदी की चपेट में आ गई है। इसका तत्काल प्रभाव पड़ा है। जापान वैश्विक आर्थिक स्वीपस्टेक्स में चौथे स्थान पर आ गया और उसकी जगह जर्मनी रैंकिंग में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। इस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि अगले दो माह में यहां लोकसभा चुनाव होने वाले हैं।

सबसे पहले यूनाइटेड किंगडम की बात करें, तो इसकी अर्थव्यवस्था जुलाई-सितंबर 2023 में 0.1 प्रतिशत और अक्तूबर-दिसंबर 2023 में 0.3 प्रतिशत के आर्थिक संकुचन के बाद स्थिरता से मंदी की ओर चली गई। इस वर्ष के चुनाव से पहले टोरीज और लेबर के बीच नकारात्मक उपभोक्ता भावना और राजनीतिक खींचतान के कारण वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रति रुचि की कमी ने मंदी में योगदान दिया, जिसे बैंक आफ इंग्लैंड और विश्लेषक ‘तकनीकी’ कहना पसंद करते हैं। हालांकि प्रधानमंत्री ऋषि सुनक आगे की संभावनाओं को लेकर उत्साहित हैं।

दूसरे, जापान के विचित्र मामले को महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। उम्रदराज लोगों की लगातार तीसरे वर्ष बढ़ती संख्या और अमेरिकी ग्रीनबैक की तुलना में येन के मूल्यांकन पर उत्पादन को प्रभावित करने वाले श्रमिकों की कमी को प्रमुख कारकों के रूप में पहचाना गया है। जापान की अर्थव्यवस्था में जुलाई-सितंबर 2023 में 3.3 प्रतिशत और अक्तूबर-दिसंबर 2023 में 0.4 प्रतिशत की सिकुड़न आई। येन के अवमूल्यन ने पूरे स्पेक्ट्रम में मूल्यांकन को प्रभावित किया है।

पिछले एक वर्ष या उससे अधिक के दौरान, प्रमुख मुद्राओं की तुलना में येन में 20 प्रतिशत की गिरावट, जबकि अमेरिकी डॉलर की तुलना में 30 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। 20 अक्तूबर, 2022 को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले येन अपने 150 के सबसे खराब स्तर पर फिसल गया। पिछले एक सप्ताह से यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 104.7-105 के आसपास मंडरा रहा है। अमेरिकी डॉलर की तुलना में येन का अवमूल्यन महत्वपूर्ण है, क्योंकि जापान संयुक्त राज्य अमेरिका से खाद्य और ऊर्जा उत्पादों, दोनों का बड़े पैमाने पर आयात करता है।

तीसरा, जापान के 4.19 ट्रिलियन डॉलर के मुकाबले जर्मनी 4.55 ट्रिलियन डॉलर के साथ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आगे बढ़ रहा है, जो कई कारणों से महत्वपूर्ण है। येन के लगातार अवमूल्यन ने जापान की जीडीपी को बहुत प्रभावित किया है, वहीं आर्थिक मोर्चे पर अपने श्रम मुद्दों, मानव संसाधनों की कमी और यूरो मूल्यांकन से निबटने में जर्मनी का प्रदर्शन मामूली रहा है। जर्मन अर्थव्यवस्था में 2023 में 0.3 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि विश्लेषकों को 2024 में 0.3 प्रतिशत की मामूली सकारात्मक वृद्धि की उम्मीद है। इसके बाद 2025 में इसकी अर्थव्यवस्था में 1.2 प्रतिशत की वृद्धि होगी। जर्मनी में व्यापार आधारित सुधार की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग में गिरावट और जर्मनी में उत्पादन संकट को देखते हुए इस संबंध में फिलहाल स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।

चौथा कारक है, जिसकी चर्चा बीच-बीच में और दबी आवाज में होती रहती है। ऐसा लगता है कि अमेरिका, सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सॉफ्ट लैंडिंग के साथ 2023 में मंदी से तो बच गया, लेकिन इस वर्ष इसके संकुचन मोड में फिसलने की संभावना है। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पहले से ही उच्च मुद्रास्फीति और खुदरा कीमतों के कारण गिरावट पर थी। हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी इस बाबत कुछ कहा नहीं गया है। पांचवां बड़ा कारक चीन है, जो बीते एक वर्ष के दौरान कई महीनों में बहुत कुछ झेल चुका है। वैश्विक स्तर पर यह दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था 2024 में 4.6 प्रतिशत और 2025 में 4 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।

यह ड्रैगन वर्ष, जिसमें सब कुछ अच्छा होने की उम्मीद की जाती है, उस ड्रैगन वर्ष की चीन की अर्थव्यवस्था किस मोड़ पर पहुंचेगी? चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासनकाल में लंबे समय तक कोविड से संबंधित प्रतिबंधों ने चीनी अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया है। हालांकि चीन दावा करता है कि आधिकारिक तौर पर 2023 में उसकी अर्थव्यवस्था में 5.6 प्रतिशत का विस्तार हुआ। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष इन आंकड़ों पर विश्वास नहीं करता। उसके अपने डेटा बिंदु हैं, जो चीनी अर्थव्यवस्था में बहुत कम विस्तार का अनुमान लगाते हैं। इस पृष्ठभूमि में भारत में क्या होगा, यह भारतीयों और आर्थिक मोर्चे पर वैश्विक मंदी का मुकाबला करने के लिए अपने संघर्ष में समर्थन की तलाश कर रही वैश्विक आबादी, दोनों के लिए ही देखना बहुत दिलचस्प होगा।

इन सबके बीच, अल नीनो में कमी और मानसून का पूर्वानुमान बहुत सकारात्मक होने के कारण भारत 6.5-7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ ‘सबसे चमकीला सितारा’ बना रहेगा। सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के अलावा, भारत द्वारा प्रेरित विस्तार वैश्विक स्तर पर सकारात्मक रुख बनाए रखने के लिए बाध्य है। हालांकि, विपरीत वैश्विक परिस्थितियों की अनदेखी नहीं की जा सकती। दुर्भाग्य से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध फिलहाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। वहीं, हमास और इस्राएल के बीच दूसरा खूनी संघर्ष और भी बदतर होता जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्रों, विशेषकर लाल सागर में शिपिंग लाइनें प्रभावित हुई हैं, जिससे जहाजों की सुरक्षित आवाजाही बाधित हो गई है। इसके अलावा, मौद्रिक नीति के मुद्दों पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फेडरल रिजर्व और यूरोपीय सेंट्रल बैंक से स्वतंत्र होकर काम करते हुए अपना ट्रैक रिकॉर्ड स्थापित किया है। निरंतर मजबूत घरेलू खपत, वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में विस्तार के साथ-साथ स्वस्थ पूंजी प्रवाह (घरेलू और विदेशी दोनों) केवल भारतीय आर्थिक पहिये को गतिमान रखेंगे। इस पृष्ठभूमि में स्थिर और मजबूत राजनीतिक व्यवस्था यह तर्क देने की ताकत प्रदान करती है कि 2027 तक या उससे थोड़ा पहले जापान और जर्मनी दोनों को पछाड़कर भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के भीतर और बाहर वादा किया है कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत 5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक मूल्यांकन के साथ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। मजबूत बुनियादी सिद्धांतों और लचीली आर्थिक व्यवस्था के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी में मौजूद सुधारक इस प्रक्रिया को तेज करने में मदद करेगा। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुमान के अनुसार, यदि अगले कुछ वर्षों में विश्व के आर्थिक हालात सुधरे तो भारत का उदीयमान नक्षत्र बनना सुनिश्चित हो जाएगा।

(लेखक नई दिल्ली स्थित थिंक-टैंक सेंटर फॉर इंटीग्रेटिड एंड होलिस्टिक स्टडीज के
निदेशक और मुख्य कार्यकारी हैं)

Topics: अर्थव्यवस्थाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीतकनीकीपाञ्चजन्य विशेषहमास और इस्राएलवैश्विक आर्थिक स्वीपस्टेक्स
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