पेरिस में रूस—यूक्रेन युद्ध के दो साल पूरे होने पर सम्पन्न हुई दो दिवसीय शिखर वार्ता के बाद, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संकेत दिया कि यूरोप नहीं चाहता कि यूक्रेन यह युद्ध हार जाए इसलिए जरूरत पड़ी तो हमें अपनी सेनाएं यूक्रेन की कदद के लिए भेजनी होंगी। हालांकि इस शिखर वार्ता में इस बाबत कोई सहमति नहीं बन पाई। लेकिन मैक्रों ने इस विषय को उठाकर इस बारे में एक चर्चा जरूर शुरू कर दी है।
फ्रांस की राजधानी में लगभग 20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की उपस्थिति में दो दिन तक रूस—यूक्रेन युद्ध को लेकर अनेक आयामों पर चर्चा चली। इस बैठक में कतर के अमीर की भी उल्लेखनीय उपस्थिति रही। कतर इस्राएल—हमास युद्ध में मध्यस्थ की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
पेरिस वार्ता का कोई ठोस नतीजा निकलकर न आना यह बताता है कि यूरोपीय संघ के भीतर भी कुछ मुद्दों पर सर्वसहमति नहीं है। बैठक खत्म होने के फौरन बाद ही, कम से कम चार देशों की तरफ से बयान आ गए कि फिलहाल सेनाएं यूक्रेन भेजने को कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा है। हथियारों और पैसे से मदद की ही जा रही है। लेकिन, इसके बाद भी पत्रकारों से बात करते हुए मैक्रों ने उम्मीद जताई कि आगे ऐसा होने की संभावना तो बनी ही हुई है।
उल्लेखनीय है कि यह बैठक भी मैक्रों की पहल पर ही बुलाई गई थी। इसीलिए बैठक की जानकारी देते हुए मैक्रों ने कहा कि कह नहीं सकते कब ऐसे हालात बन जाएं कि यूरोपीय देशों को अपनी सेनाएं यूक्रेन की मदद के लिए भेजनी पड़ें। आज भले इस बात पर सहमति नहीं बन पाई है लेकिन आगे के बारे में अभी से कुछ कहा नहीं जा सकता। हालांकि मैक्रों ने यह खुलासा नहीं किया है कि वे कौन से देश हैं जो सेनाएं भेजने के बारे में सोच रहे हैं। लेकिन मैक्रों ने फिर से बलपूर्वक कहा कि हम हर वह कदम उठाएंगे जिससे रूस युद्ध न जीते।
फ्रांस के राष्ट्रपति ने बैठक में मौजूद यूरोप के नेताओं से यह कहा भी युद्ध के मैदान में रूस के हमलों का प्रतिकार करने के लिए यूक्रेन को अपना समर्थन देना ही होगा। मैक्रों ने कहा कि यूक्रेन की सुरक्षा में हमारी अपनी सामूहिक सुरक्षा ही पुख्ता कर रहे हैं।
यूरोप के कुछ नेताओं को इस बात की भी चिंता है कि कहीं अमेरिका यूक्रेन की मदद से पीछे न हट जाए, क्योंकि अमेरिकी कांग्रेस कीव को सहायता दिए जाने में आनाकानी का मूड बनाती दिख रही है। चिंता इस बात की भी है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कहीं वापस व्हाइट हाउस में लौटे तो अमेरिका की नीतियों में व्यापक बदलाव आ सकता है।
राष्ट्रपति के महल एलीसी पैलेस में हुई इस बैठक में लगभग सभी का भाव यही था कि कैसे भी रूस यह युद्ध न जीत सके। बैठक में जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज, पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा सहित बाल्टिक देशों के अनेक नेता भी उपस्थित थे। मैक्रों ने अपनी भूमिका में संकेत किया कि इधर कुछ महीनों से रूस की आक्रामकता बढ़ी है। रूस नए हमलों की तैयारी में है।
इस बैठक में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमीर जेलेंस्की वीडियो के माध्यम से जुड़े। उन्होंने यूरोप के नेताओं से यह पक्का करने की अपील की कि राष्ट्रपति पुतिन को हम अपनी उपलब्धियों को बर्बाद नहीं करने दे सकते।
हालांकि विदेश नीति और रक्षा जानकारों का मैक्रों के उक्त विचार पर यही कहना है कि यूरोपीय देशों की सेनाओं को यूक्रेन की मदद के लिए जमीन पर उतारना बहुत महंगा पड़ सकता है और युद्ध अनियंत्रित होकर व्यापक हो सकता है। ऐसा हुआ तो कई देश रूस से दुश्मनी के निशाने पर आ जाएंगे। यूक्रेन से युद्ध एक बात है लेकिन रूस से हमेशा के लिए संबंध बिगाड़ लेना दूसरी ही बात है। इसलिए इस मुद्दे पर कोई सहमति बनना बहुत टेढ़ी खीर है।
इस बैठक में अमेरिका की तरफ से यूरोप के शीर्ष राजनयिक जेम्स ओ’ब्रायन मौजूद थे तो ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड कैमरून वहां थे। यूरोप के कुछ नेताओं को इस बात की भी चिंता है कि कहीं अमेरिका यूक्रेन की मदद से पीछे न हट जाए, क्योंकि अमेरिकी कांग्रेस कीव को सहायता दिए जाने में आनाकानी का मूड बनाती दिख रही है। चिंता इस बात की भी है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कहीं वापस व्हाइट हाउस में लौटे तो अमेरिका की नीतियों में व्यापक बदलाव आ सकता है।
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