जालना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने कहा कि घुमंतू समाज अपने व्यवसाय के लिए नहीं, बल्कि धर्म के लिए जीता है। घुमंतू समाज के ज्ञान से पूरे समाज को लाभ हुआ और आज भी होता है। धातु तंत्र, चिकित्सा उपचार आदि की जानकारी घुमंतू समुदाय को थी। विदेशी शासकों द्वारा घुमंतू समाज की दुर्गति हुई, जिसको हमने भी नजरअंदाज कर दिया, लेकिन हमारे संतों ने उन्हें मुख्यधारा में लाने का महान कार्य किया। उनके द्वारा बेचे गए सामान की सबसे पहले पूजा की जाती है।
जालना में पू. संत भगवान महाराज आनंदगड़कर के कार्यों के महत्व को बताने वाले ग्रंथ ‘आनंद निधान’ का लोकार्पण सरसंघचालक जी ने किया। इस अवसर पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, हिंदुस्तान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेशजी पतंगे, संत भगवान महाराज आनंदगड़कर उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जयश्री कुमावत ने किया, परिचय रघुनंदन निकरट ने किया। सरसंघचालक ने आनंदगड़ में सभी महापुरुषों के और मंदिरों में जाकर दर्शन किये। आजादी के नायक टंट्या मामा भील की नियोजित प्रतिमा स्थल पर भूमिपूजन किया गया। शबरीधाम, संत सेवालाल महाराज मंदिर और गौशाला में जाकर गायों को गुड़ खिलाया।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि ‘ज्ञान और कर्म तभी उपयोगी हैं, जब आप उन्हें एक साथ चाहते हैं और यदि भक्ति नहीं है तो वह किसी काम की नहीं है। विचार मनुष्य को देवता और राक्षस बनाता है। इसे समझने का ज्ञान संतों के पास है। हम भगवान को अपनी कल्पना में अनंत आकाश की रचना करते हुए देखते हैं, लेकिन यह संत ही हैं, जो ज्ञान प्रदान करते हैं। वे हमारी कल्पना से परे देखते हैं। इसलिए कहा, संतों के उपदेश का पालन करना हमारा कर्तव्य है। साथ ही, हिन्दू समाज ने पुरुषार्थ किया, राम को कई वर्षों तक अपने हृदय में रखा, इसलिए हमने अयोध्या में एक स्वर्णिम क्षण देखा। आज दुनिया भारत से सीख ले रही है। उन्होंने कहा कि हमें दुनिया को सुखी करने के लिए बड़ा होना चाहिए।
भगवान बाबा ने यह भावना व्यक्त की कि मोहन भागवत एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक शक्ति हैं
कार्यक्रम से पहले सरसंघचालक ने संत भगवान महाराज आनंदगड़कर के भक्तों से संवाद कर उनके अनुभव प्राप्त किये। सभी श्रद्धालु भावविभोर होकर अपने अनुभव व्यक्त कर रहे थे। पूज्य भगवान बाबा ने उनके जीवन का उद्धार किया। इस संवाद सत्र में डॉ. मोहन भागवत ने कहा, ”जातियां भगवान ने नहीं, समाज ने बनाई हैं। इसलिए व्यक्ति को समता और ममत्व की समझ के साथ रहना चाहिए। राम, भरत हमारे आदर्श हैं। यही हमारा बंधुत्व है। इसी आदर्श के साथ हमें अपना जीवन ईश्वर की पूजा समान सात्विक रूप से जीना है। पूज्य भगवान बाबा के सहवास में आने से आपका सबका जीवन धन्य हो गया, इसलिए आप सभी भाग्यशाली हैं।
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